अल जजीरा की डॉक्यूमेंट्री ‘इंडिया: हू लिट द फ्यूज़’ इन दिनों खूब चर्चा में है.
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने भारत में अल जजीरा की डॉक्यूमेंट्री के प्रसारण पर कुछ समय के लिए रोक लगा दी है. कोर्ट ने इसके पीछे डॉक्यूमेंट्री के चलते गलत परिणाम सामने आने की आशंका जताई है. हाईकोर्ट ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान ये आदेश दिए.
अल जजीरा की डॉक्यूमेंट्री ‘इंडिया: हू लिट द फ्यूज़’ अरबी भाषा में रिलीज हो चुकी है और सोशल मीडिया पर चर्चा का विषय बनी हुई है.
लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, सुधीर कुमार ने कोर्ट में दायर जनहित याचिका में आरोप लगाया है कि डॉक्यूमेंट्री, भारत में मुस्लिम अल्पसंख्यकों के डर के साए में जीने और सार्वजनिक घृणा की भावना पैदा करने वाली विघटनकारी कहानी का चित्रण करती है, जो की हकीकत से कोसों दूर है.
याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस अश्विनी कुमार मिश्रा और आशुतोष श्रीवास्तव की बेंच ने सूचना और प्रसारण मंत्रालय एवं अल जजीरा को 6 जुलाई तक मामले में अपनी प्रतिक्रिया दर्ज करने को कहा है. हालांकि, अदालत में अल जजीरा की ओर से कोई प्रतिनिधि मौजूद नहीं था और न ही ये डॉक्यूमेंट्री अदालत के अवलोकन के लिए उपलब्ध थी. इसलिए अदालत ने याचिका कर्ता सुधीर को अगले 48 घंटों के भीतर इसे पेश करने को कहा है.
वहीं, अदालत ने केंद्र सरकार को तब तक उचित उपाय करने का निर्देश दिया है. साथ ही ये भी कहा है कि जब तक डॉक्यूमेंट्री को जांच नहीं लिया जाए तब इसे प्रसारित करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए.
अदालत ने कहा कि उसने कुमार के आरोपों की "गंभीरता" पर विचार किया "जिसके दूरगामी परिणाम होने की संभावना है." साथ ही अदालत ने कहा कि भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता "भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(2) द्वारा लगाए गए उचित प्रतिबंधों के अधीन है"
हालांकि, इस मामले को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर बीबीसी द्वारा बनाई गई डॉक्यूमेंट्री के विवाद से भी जोड़कर देखा जा रहा है. गौरतलब है कि जनवरी में, मोदी सरकार ने यूट्यूब और ट्विटर को आदेश देने के लिए आईटी अधिनियम के तहत आपातकालीन प्रावधानों का उपयोग किया कि वे दोनों भाग की श्रृंखला के लिंक हटा दें, जिसमें अन्य बातों के अलावा, गुजरात दंगों में कथित तौर पर पीएम मोदी की भूमिका की छानबीन की गई थी.