दिन ब दिन की इंटरनेट बहसों और खबरिया चैनलों के रंगमंच पर संक्षिप्त टिप्पणी.
अपने हिस्से का काम छोड़कर बाकी सबके काम में अपनी नाक, कान और टांग घुसेड़ने का रिवाज अब आम हो चुका है. मसलन पत्रकार का काम है जन प्रतिनिधियों से सवाल पूछना, जनप्रतिनिधि का काम है उसका जवाब देना. लेकिन नेताजी को पत्रकार का सवाल पूछना अब अच्छा नहीं लगता. स्मृति ईरानी केंद्रीय मंत्री हैं. अमेठी में एक पत्रकार के सवाल से कपड़ा मंत्री इतना भड़क गई कि पत्रकार का कपड़ा ही उतरवा लिया. इस पर विशेष टिप्पणी.
टिप्पणी के इस अंक में हम खबरों का नया बुलेटिन लेकर आए हैं. इसका नाम है ‘विश्वगुरु बुलेटिन’. जी हां, अब देश में आज़ादी की यही परिभाषा है, यहां मीडिया मदारी है, जनता तमाशा है. नेता चुनावों में वोट मांगेंगे और काम के समय नोट मांगेंगे.
देश के हाईकोर्टों में मौजूद महामहिम न्यायमूर्तियों ने भारत को विश्वगुरू बनाने का बीड़ा अपने सिर पर उठा लिया और ऐसा उठाया कि मानों आसमान सिर पर उठा लिया. महामहिमों की इस मुहिम से बहुतों को लगा कि उनकी बात का कोई सिर पैर नहीं है. लेकिन ऐसा लगता है कि ये महामहिम संविधान की शपथ खाकर मनुस्मृति की श्रद्धा में नतमस्तक हैं.
 तिहाड़ शिरोमणि का व्यंग्य वार और ठग, जालसाज, उचक्कों की बम-बम
तिहाड़ शिरोमणि का व्यंग्य वार और ठग, जालसाज, उचक्कों की बम-बम इस्लाम, मजहब और सियासत पर हिलाल अहमद से बातचीत
इस्लाम, मजहब और सियासत पर हिलाल अहमद से बातचीत