किसान आंदोलन में दलित मजदूरों ने बढ़चढ़कर हिस्सा लिया, लेकिन ये दलित किसान आंदोलन को सहयोग देने के साथ-साथ अपने साथ हो रहे भेदभाव को खत्म करने के लिए भी लड़ रहे थे.
"आंदोलन का मुख्य स्टेज ऊंची जात के किसान संचालित करते हैं. मजदूर यहां केवल भीड़ बढ़ाने और नारे लगाने के लिए बुलाए गए हैं." रामरूप कहते हैं.
पिछले एक साल से दिल्ली से सटे सिंघु, गाजीपुर और टिकरी बॉर्डर पर बैठे आंदोलनकारी किसान केंद्र सरकार द्वारा पारित विवादित तीनों कृषि कानूनों का विरोध कर रहे थे. इस बीच 19 नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अचानक से देश को संबोधित करते हुए तीनों विवादित कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा की.
बीते एक साल में आंदोलन कर रहे किसानों ने कई उतार चढ़ाव देखे हैं. इस आंदोलन की खास बात यह रही है कि यह सभी जाति, धर्म, समुदाय और लिंग को एक मंच पर ले आया. और उनके जैसे तमाम मजदूर तबके के लोग जो आंदोलन से जुड़े रहे, उनका कहना है कि आंदोलन भले ही इस रूप में सकारात्मक रहा कि इसने सभी वर्गों को एकजुट कर दिया लेकिन जाति आधारित बंटवारा अभी रुका नहीं है.
"किसान मजदूर एकता जिंदाबाद," यह नारा आंदोलन में किसान और मजदूरों की एकता का प्रतीक है. आंदोलन की वजह से खेतों में काम करने वाले दो तबके, किसान और मजदूर साथ आ गए. लेकिन यह बहुत कम लोग जानते होंगे कि मजदूर और किसान के काम जाति के आधार पर बंटे हुए हैं.
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