संगमनेर में 6 जून को हुई हिंसा की पड़ताल: “सारी मस्जिदें तोड़ दो! तभी हिंदुओं का शक्ति प्रदर्शन होगा”

सकल हिंदू समाज के द्वारा 6 जून को निकाली गई रैली में मुसलमानों के खिलाफ नारेबाजी और हमले भी हुए. इसमें सुरेश चव्हाणके का भाषण भी हुआ.

WrittenBy:प्रतीक गोयल
Date:
Article image
  • Share this article on whatsapp

महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले के संगमनेर शहर में 6 जून को सुबह 9.15 बजे, अजहर पठान, दिल्ली नाका इलाके में स्थित अपने वड़ा पाव रेस्टोरेंट में थे, कुछ ग्राहक वहां नाश्ता कर रहे थे. तभी परिसर के बाहर करीब 100-150 लोगों की भीड़ जमा हो गई. पठान का कहना है कि उन्होंने "जय श्री राम" और "या लांड्या ना मारा" यानी उन लांड्याओं को पीटो जैसे नारे लगाने शुरू कर दिए. लांड्या महाराष्ट्र में मुसलमानों के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला अपमानजनक शब्द है.

34 साल के पठान डरे हुए थे. उन्होंने कहा कि भीड़ में शामिल कुछ लोगों ने उनसे उनका रेस्टोरेंट बंद करने के लिए कहा.

उन्होंने बताया, “मैंने तुरंत हामी भर दी. मैंने अपने ग्राहकों से कहा कि मैं बंद कर रहा हूं, लेकिन भीड़ ने मेरी दुकान में तोड़फोड़ शुरू कर दी. उन्होंने काउंटर पलट दिया, कुर्सियां तोड़ दीं और खाने का सामान नष्ट कर दिया. उन्होंने मेरे कर्मचारी के पैर पर खौलते हुए तेल की कड़ाही गिरा दी. खुशकिस्मती से उन्होंने हमें मारा नहीं. वो दुकान में तोड़फोड़ करने के बाद चले गए.”

subscription-appeal-image

Support Independent Media

The media must be free and fair, uninfluenced by corporate or state interests. That's why you, the public, need to pay to keep news free.

Contribute

यह हिंसा संगमनेर में सकल हिंदू समाज द्वारा आयोजित एक मार्च की देन थी, जो कथित तौर पर 28 मई को मामूली से ट्रैफिक मुद्दे के खिलाफ निकाला गया था. लेकिन भगवा मोर्चा के नाम से निकले इस जुलूस में शामिल लोगों ने, कथित तौर पर पथराव, लोगों के घरों में घुसपैठ और अज़हर जैसों की दुकानों में तोड़फोड़ की.

लेकिन सकल हिंदू समाज का एक बड़ा उद्देश्य है- यह पिछले एक साल से पूरे महाराष्ट्र में हिंदुत्व के कई मुद्दों को लेकर विरोध जुलूस आयोजित कर रहा है. लेकिन 6 जून को हुई हिंसा को लेकर जुलूस के एक आयोजक ने न्यूज़लॉन्ड्री से ज़ोर देकर कहा कि उसे “मुसलमानों ने शुरू किया.”

ट्रैफिक का मसला, सुरेश चव्हाणके व हिंसा

28 मई वाला ट्रैफिक का मुद्दा जोर्वे नाका पर हुआ था. शहर के एक सामाजिक कार्यकर्ता अब्दुल अजीज के अनुसार, मुस्लिम समुदाय के लोगों ने वहां एक सड़क पर अतिक्रमण कर स्टाल और भोजनालय चला रहे थे, जिससे यातायात जाम हो गया. अधिकारियों से शिकायत करने के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं हुई थी.

अजीज बताते हैं, “28 मई को एक टेंपो ने इस क्षेत्र से गुजरने की कोशिश की. वह बार-बार हॉर्न बजा रहा था. एक स्टॉल के मालिक ने उसे हॉर्न न बजाने के लिए कहा. उनमे बहस हो गई और फिर ड्राइवर चला गया. वह 15 मिनट बाद छह-सात लोगों के साथ लौटा और गर्मागर्मी हो गई. इसके बाद स्टॉल मालिकों ने उन्हें पीट दिया.”

अजीज ने आरोप लगाया कि टेंपो चालक ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई और फिर "100-150 लोगों की भीड़ इकट्ठा कर ली.”

अजीज ने कहा, "उन्होंने मुसलमानों के खिलाफ गालियां देनी शुरू कर दीं, जिन्होंने उन पर हमला कर दिया. पुलिस ने हस्तक्षेप किया लेकिन उन पर भी पथराव किया गया. तब स्थिति पर काबू किया गया और एक प्राथमिकी दर्ज की गई.”

तत्पश्चात समाज ने इस घटनाक्रम के विरोध में इस मार्च का आह्वान किया. उसके सदस्यों ने एक हफ्ते से ज्यादा समय आस-पास के गांवों में भीड़ जुटाने, उनसे भाग लेने का आग्रह करने में बिताया. ग्राम पंचायतों और समुदाय के नेताओं ने मोर्चे का समर्थन करने के लिए प्रस्ताव भी पारित किए. इन प्रस्तावों में से कुछ को नीचे देखा जा सकता है. न्यूज़लॉन्ड्री के पास ऐसे 29 प्रस्तावों की प्रतियां हैं.

इस तरह भगवा मोर्चा 6 जून को सुबह 9 बजे समय पर शुरू हो गया. स्थानीय लोगों ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि हिंसा की लहर तभी शुरू हो गई थी. कुछ हिस्सा लेने वालों ने "लाठी उठाओ और लांडे को भगाओ" के नारे लगाए.

एक ने कहा, "सारी मस्जिदें तोड़ दो! तभी हिन्दुओं का शक्ति प्रदर्शन होगा.”

भीड़ में शामिल अन्य लोगों ने कहा, "सब कुछ बंद हो गया है, यह हिंदुओं का आतंक है. कुछ दिनों बाद हम उन्हें घसीट कर घरों से निकालेंगे और पीटेंगे.”

लेकिन जब यह सब हो रहा था तब पुलिस कहां थी?

पठान ने आरोप लगाया कि उनकी दुकान में तोड़फोड़ “एक पुलिसकर्मी के ठीक सामने” की गई.

उन्होंने कहा, "उन्होंने उन्हें नियंत्रित करने की कोशिश की लेकिन उन लोगों ने उनकी बात नहीं मानी. मुझे 40,000 रुपए का नुकसान हुआ है. मैं शाम करीब 5 बजे पुलिस स्टेशन गया लेकिन मुझे एफआईआर दर्ज करने के लिए रात 10 बजे तक इंतजार करना पड़ा. मैं एक व्यापारी हूं. मेरा राजनीति से कोई लेना देना नहीं है. मेरा जो कर्मचारी घायल हुआ है, वह खुद एक हिंदू है.”

एक ध्यान देने वाली बात यह भी है कि 6 जून की रैली में एक हाई-प्रोफाइल व्यक्ति भी उपस्थित था- सुदर्शन न्यूज़ के प्रधान संपादक और नफरती भाषा के महारथी सुरेश चव्हाणके. एक जगह पर उन्होंने "लव जिहाद" के खिलाफ आगाह करते हुए मोर्चे में उपस्थित लोगों को संबोधित किया और चेतावनी दी कि संगमनेर "जल्द ही पाकिस्तान में बदल सकता है". उन्होंने यह भी कहा कि खुद को बचाने के लिए मुस्लिम लड़कियों को "हिंदू पुरुषों से शादी करनी चाहिए".

‘हमने कुछ गलत नहीं किया’

हिंसा शहर की सीमा से बाहर भी करीब पांच किमी दूर सामनापुर गांव तक पहुंच गई, जहां से रैली में हिस्सा लेने वाले गुजरे थे.

70 वर्षीय हुसैन फकीर मोहम्मद शेख पर जब रैली में भाग लेने वालों ने कथित तौर पर हमला किया, तब वे अपने घर के बाहर एक चारपाई पर लेटे हुए थे. उनकी 63 वर्षीय पत्नी रशीदा पर भी कथित रूप से हमला हुआ, उन्होंने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि उनके पति की दाढ़ी और टोपी ने उन्हें एक सरल निशाना बनाया था.

रशीदा ने कहा, “मेरे पति बस चारपाई पर आराम कर रहे थे. भीड़ ने हमें लांड्या कहना शुरू कर दिया. हम चुप रहे और कोई जवाब नहीं दिया. उन्होंने पथराव किया और फिर घर में घुसकर हम पर हमला किया. उन्होंने मेरे पति के सिर पर एक कुदाल से वार किया. उन्होंने मुझे नीचे धकेल दिया और लात मारी. हमने कुछ भी गलत नहीं किया- हम दोनों चुपचाप अपने घर में बैठे थे.”

रशीदा ने कहा कि उन्हें ज्यादा चोट नहीं आई है, लेकिन उनके पति इस समय नासिक के शताब्दी अस्पताल में आईसीयू में हैं. साथ ही उन्होंने कहा, "उन्होंने यह सब पुलिस के सामने किया."

शेख के भाई 55 वर्षीय चांद फकीर मोहम्मद ने इस घटनाक्रम की पुष्टि की. वे खुद भी सामनापुर के निवासी हैं, और उन्होंने कहा कि रैली उनके गांव से होकर गुजरी, साथ ही उसमें हिस्सा लेने वालों ने "पत्थर फेंके और 'लांड्या मुर्दाबाद' जैसे नारे लगाए. पुलिस वहां थी. पुलिस ने उन्हें रोकने की कोशिश नहीं की."

सामनापुर के ही रहने वाले वसीम इनामदार ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि उनके भाई का हाथ एक प्रदर्शनकारी द्वारा उन्हें कथित रूप से "मोटरसाइकिल से टक्कर मारने" पर टूट गया. "उन्होंने उसे पीछे से मारा. वह गिर गया, उन्होंने उसका हाथ पर मारा और फिर वो भाग गए... वे हर जगह पथराव कर रहे थे. उन्होंने बार-बार मुसलमानों के लिए अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल किया.”

वसीम के भाई 34 वर्षीय रईस बिलाल शेख, इस समय संगमनेर के कुटे अस्पताल में हैं.

सामनापुर के रहने वाले हुसैन शेख ने कहा कि ग्रामीण पुलिस "खाली खड़ी थी" और शहर की पुलिस के आने पर ही हिंसा समाप्त हुई.

उन्होंने कहा, "हमने मार्च से तीन दिन पहले कलेक्टर और पुलिस से शिकायत की थी. हमने कहा कि मोर्चे का एकमात्र उद्देश्य दो समुदायों के बीच तनाव पैदा करना था और हमने उनसे इसे रोकने का अनुरोध किया. लेकिन किसी ने हमारे अनुरोध पर ध्यान नहीं दिया.” उन्होंने कहना था कि उन्होंने पालक मंत्री राधाकृष्ण विखे पाटिल और कांग्रेस विधायक बालासाहेब थोराट को भी पत्र भेजे.

लेकिन बजरंग दल के जिला समन्वयक और सकल हिंदू समाज के आयोजकों में से एक कुलदीप ठाकुर ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि सामनापुर में हिंसा "रैली के बाद" ही हुई और मुसलमानों ने उन्हें "प्रतिकार" के लिए मजबूर किया.

उन्होंने दावा किया, "प्रतिभागी समनापुर से गुजर रहे थे जब वहां के मुसलमानों ने उन्हें गाली देना शुरू कर दिया और धार्मिक अपमानजनक टिप्पणियां कीं. उन्होंने भाग लेने वालों पर पथराव शुरू कर दिया. इसलिए हमारे लोगों ने जवाबी कार्रवाई की और वो भी पुलिस के पहुंचने के बाद.”

रैली में हिस्सा लेने वाले अनुराग ताजने ने कहा, “हमारे लड़के वापस जा रहे थे, तभी समनापुर में कुछ मुसलमानों ने गालियां दीं और पथराव शुरू कर दिया. उन्होंने ऐसा करने की हिम्मत की क्योंकि हमारे लड़के संख्या में कम थे. लेकिन तभी कई लड़के मौके पर पहुंच गए. लांडे मुर्दाबाद जैसे नारे सिर्फ इसलिए लगाए गए क्योंकि 28 मई को हमारे लोगों पर हमला हुआ था, हमारे लड़के गुस्से में थे.”

ठाकुर ने मुस्लिम समुदाय पर 28 मई को यातायात के मुद्दे को "तूल देने" का आरोप भी लगाया. उन्होंने कहा, "महाराष्ट्र में गोहत्या के खिलाफ कानून होने के बावजूद यहां के मुस्लिम इसमें शामिल हैं. हर दिन वे 200-250 गायों का वध करते हैं. ड्रग्स और लव जिहाद के मामले भी लाते हैं. एक घंटा भी ऐसा नहीं जाता जब संगमनेर में लव जिहाद के मामले न होते हों. संगमनेर में हिंदू इसे लंबे समय से सहन कर रहे हैं, और मोर्चा इस तरह की गतिविधियों के खिलाफ हमारी आपत्ति थी.”

ठाकुर ने इन आरोपों के लिए डाटा उपलब्ध नहीं कराया.

न्यूज़लॉन्ड्री ने हिंसा और पुलिस कार्रवाई के बारे में पूछने के लिए अहमदनगर के पुलिस अधीक्षक राकेश ओला से संपर्क किया. ओला ने कहा कि अब तक 17 लोगों को गिरफ्तार किया गया है और जांच जारी है.

मोर्चा की अनुमति क्यों दी गई? ओला ने जोर देकर कहा कि "रैली के दौरान कुछ नहीं हुआ". सामनापुर में हमला रैली खत्म होने के बाद हुआ."

लेकिन चव्हाणके की नफरती भाषा के बारे में क्या? ओला ने कहा, “हो सकता है ऐसा हुआ हो. हम उनके भाषण की ट्रांसक्रिप्ट हासिल करेंगे. अगर हमें कुछ भी आपत्तिजनक मिला तो हम जांच करेंगे."

Also see
article imageबालासोर ट्रेन हादसा: हिंदू-मुस्लिम रंग देने की कोशिश, पड़ताल में पाया गया झूठ
article imageडिजिटल हिंदू कॉन्क्लेव: फिजिकल से डिजिटल तक नफरत फैलाते हिंदुत्व के हरकारे
subscription-appeal-image

Power NL-TNM Election Fund

General elections are around the corner, and Newslaundry and The News Minute have ambitious plans together to focus on the issues that really matter to the voter. From political funding to battleground states, media coverage to 10 years of Modi, choose a project you would like to support and power our journalism.

Ground reportage is central to public interest journalism. Only readers like you can make it possible. Will you?

Support now

You may also like