“शेरपुरिया ठग नहीं बल्कि सिस्टम का पैदा किया हुआ मिडिल मैन है”

संजय राय को करीब से जानने वाले बताते हैं कि इसके सामने मार्च में गिरफ्तार हुआ किरन पटेल बहुत छोटा फ्रॉड है. उसका सब हवाहवाई था इसका सब कागज पर है.

WrittenBy:अवधेश कुमार
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संजय राय शेरपुरिया का नाम हाल ही में काफी सुर्खियों में रहा है. इनकी तस्वीरें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत, भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा, केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर, उत्तर प्रदेश डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य समेत कई अन्य नेताओं के साथ सोशल मीडिया पर वायरल हैं. एसटीएफ द्वारा शेरपुरिया की गिरफ्तारी के बाद लोगों के जहन में यह सवाल बार-बार आ रहा है कि इतना बड़ा जालसाज कैसे देश के उच्च राजनीतिज्ञों के संपर्क में था.

संजय शेरपुरिया का नाम तब सामने आया जब एसटीएफ ने बीते 25 अप्रैल को दिल्ली से गाजीपुर जाते वक्त उसे कानपुर रेलवे स्टेशन से गिरफ्तार किया. इसके बाद एसटीएफ के इंस्पेक्टर सचिन कुमार ने लखनऊ के विभूतिखंड थाने में उनके खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराई. संजय शेरपुरिया के खिलाफ आईपीसी की धारा 420,467,468,469 एवं आईटी एक्ट की धारा 66 (डी) के तहत मामला दर्ज किया गया है.  

शेरपुरिया पर आरोप है कि उन्होंने दिल्ली के बड़े बिजनेसमैन गौरव डालमिया से छह करोड़ रुपए की डील की थी, जिसमें उन्होंने केंद्रीय जांच एजेंसी (ईडी) का केस रफा-दफा कराने का वादा किया था. इस डील के चलते संजय की संस्था 'यूथ रूरल एंटरप्रेन्योर फाउंडेशन' (वाइआरईएफ) के खाते में पहली बार 21 जनवरी, 2023 को पांच करोड़ रुपए और दूसरी बार 23 जनवरी 2023 को डालमिया फैमिली ऑफिस ट्रस्ट के खाते से एक करोड़ रुपए ऑनलाइन भेजे गए. इसके बाद उनकी गिरफ्तारी हुई और फिर उन पर आरोपों की झड़ी लग गई. 

10वीं पास शेरपुरिया इतना ताकतवर कैसे बना, उसकी पहुंच पीएमओ और गृह मंत्रालय तक कैसे थी. गार्ड की नौकरी से सफर शुरू करने वाला यह शख्स कैसे कई कंपनियों और अरबों का मालिक बन गया. न्यूज़लॉन्ड्री ने इसकी पड़ताल की है.

संजय का असली नाम संजय प्रकाश बालेश्वर राय है. लेकिन गिरफ्तारी के बाद उसकी पहचान संजय शेरपुरिया के नाम से हुई. दरअसल, यह मूल रूप से उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के शेरपुर गांव का रहने वाला है. संजय ने अपने नाम के आगे गांव का नाम जोड़ दिया इस तरह यह संजय शेरपुरिया हो गया. 

हिंदुस्तान अखबार के लिए पिछले 20 सालों से ज्यादा वक्त से काम कर रहे 61 वर्षीय पत्रकार जय शंकर राय शेरपुर खुर्द गांव के हैं. वह बताते हैं कि उनका गांव संजय राय के गांव से दो किलोमीटर की दूरी पर है. संजय राय के गांव नाम शेरपुर कलां है. 

वह कहते हैं, “हाईस्कूल तक पढ़े संजय राय के पांच भाई हैं. इनके पिता का नाम बालेश्वर राय था, इनके सबसे बड़े भाई त्रिलोकी राय हैं जो कि सेना में थे और अब रिटायर हो गए हैं. वह फिलहाल गुजरात में ही रहते हैं. दूसरे नंबर के भाई ओमप्रकाश राय हैं, जो कि बनारस के मुगलसराय में कोई नौकरी करते हैं. पहले यह प्रॉपर्टी डीलर का काम करते थे. तीसरे नंबर पर हैं- राम प्रकाश जो कि गुजरात में ही रहते हैं. इसके बाद चौथे नंबर पर संजय शेरपुरिया हैं. और सबसे छोटे और पांचवे नंबर पर हैं जय प्रकाश राय, जो गुजरात में ही प्लाईवुड का काम करते हैं.” 

असम में पिता की थी परचून की दुकान

जय शंकर राय कहते हैं कि संजय के पिताजी असम में छोटी सी परचून की दुकान चलाते थे. उनके साथ इनके ताऊ भी असम में ही काम करते थे लेकिन उन्हें नक्सलियों ने मार दिया. इस घटना के बाद इनका परिवार असम छोड़कर वापस गांव आ गया था. 

इसके बाद कुछ कहासुनी के बाद संजय शेपुरिया अपने घर से मुंबई भाग गए. जहां सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी की. फिर किसी होटल में भी काम किया. बाद में वह गुजरात चले गए. 

असम के सवाल पर जय शंकर राय कहते हैं कि अगल-बगल के गांव के कई लोग असम में काम करते थे. पड़ोसी गांव कुंडेसर के लोग पहले से असम में थे. जैसे गांव के लोग जीवनयापन के लिए चले जाते हैं. वैसे ही शेरपुरिया का परिवार भी असम गया था.

पत्रकार राय कहते हैं, “पिछले तीन-चार सालों से ही संजय राय का शेरपुर गांव में आना जाना बढ़ा है. इससे पहले यह गुजरात में ही रहते थे. गाजीपुर से 15 किलोमीटर दूरी पर करहेला गांव हैं, सहेड़ी के पास जमीन ली थी. संभवतः कोई फैक्ट्री खोलने की भी योजना चल रही थी. इस जमीन पर एक बहुत भव्य कार्यक्रम भी हुआ था. वहां पर कई सांसद, विधायक और मंत्री भी पहुंचे थे. साथ ही डीएम, एसपी भी मौजूद थे.”

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इसकी पहुंच का अंदाजा इससे लगा सकते हैं कि कार्यक्रम में श्रृंगेरी मठ के शंकराचार्य भी आए थे. सांसद मनोज तिवारी, भोजपुरी गायक पवन सिंह, इन दोनों ने ही मंच साझा कर गाने गाए थे. यह कार्यक्रम करीब दो साल पहले हुआ था.   

“कोरोना काल में संजय ने काफी काम किया. दो-तीन एंबुलेस मरीजों के लिए लगवाई थीं, जो कि जिलेभर में घूमती थीं. शवों के दाह संस्कार के लिए लकड़ी बैंक खोला था, जिसकी शाखाएं शहर के अलावा कई गांवों में भी थी. इन्होंने यहां एक वॉलीबॉल का टूर्नामेंट भी कराया था. जिसमें देशभर से टीमें शामिल हुई थीं. इनकी अचानक से बढ़ी सक्रियता को देखते हुए लोगों को अंदाजा हो गया था कि राय कोई चुनाव लड़ने वाले हैं.” उन्होंने कहा.

संजय ने करीब सालभर पहले गांव के मोहम्मदाबाद इंटर कॉलेज में रोजगार मेले का आयोजन भी करवाया था, जिसमें विभिन्न कंपनियों में क्षेत्र के सैकड़ों लड़कों को रोजगार के लिए चुना गया था. 

पीएमओ के करीबी

वे कहते हैं, “संजय खुद को पीएमओ का करीबी बताते थे. इनकी गिरफ्तारी का गांव के लोगों ने विरोध किया है और इसको लेकर एक बैठक भी हुई है. गांव के लोगों का कहना है कि शेरपुरिया केंद्र और यूपी सरकार की राजनीति का शिकार हुए हैं. इन्हें एक षडयंत्र के तहत फंसाया गया है.” 

“गांव में इनके चाचा-चाची रहते हैं. इनकी गिरफ्तारी के बाद गांव में ईडी आई थी. लेकिन इससे संबंधित किसी अखबार ने यहां कोई खबर नहीं की. ईडी ने इनके चाचा चाची से 4-5 घंटे पूछताछ की थी और फिर चली गई.” उन्होंने कहा. 

शेरपुरिया गांव निवासी और संजय के पड़ोसी अजय राय भी लगभग कुछ ऐसी ही दास्तां बयान करते हैं. वे बताते हैं कि संजय ने अपने रुतबे वाले सफर की शुरुआत गुजरात से की थी. यहां उसने पत्नी के साथ मिलकर कारोबार शुरू किया. पत्नी कंचन राय एक संपन्न परिवार से थीं. संजय और कंचन ने प्रेम विवाह किया है. 

कम समय में बन गए थे कई कंपनियों के मालिक

अजय राय अमर उजाला अखबार में संवाददाता भी हैं. वह कहते हैं कि इन्होंने गुजरात में ही सबसे पहले प्रधानमंत्री रोजगार योजना के तहत एक लाख रुपए का लोन लिया था. इसी पैसे से उन्होंने सबसे पहले बिजनेस शुरू किया था. इस दौरान इन्होंने पेट्रोलियम पदार्थों को बेचने का काम किया. उन्हें ससुराल वालों का काफी सपोर्ट मिला और इसके बाद इन्होंने एक बड़ा एंपायर खड़ा किया और कई कंपनियों के मालिक बन गए. शेरपुरिया कम ही समय में करीब 4-5 कंपनियों के मालिक बन गए थे. इसके लिए उन्होंने कई बड़े लोन भी लिए. 

वह कहते हैं जैसी मेरे पास जानकारी है, उसके मुताबिक इनकी पत्नी का कुछ रिश्ता या कह लीजिए दूर-दराज का रिश्ता अमित शाह से भी है. इसी के चलते ये एक के बाद एक सीढ़ियां चढ़ते चले गए. उसके बाद ये लोन नहीं चुकाने के चलते दिवालिया भी हो गए. 

वह कहते हैं, शेरपुरिया एक बात हमेशा झूठ बोलते हैं कि इनके दादा स्वतंत्रता सेनानी थे जबकि ऐसा कोई भी दस्तावेज नहीं है, जिससे ये साबित हो सके कि इनके पिताजी स्वतंत्रता सेनानी थे. जैसे इनकी सारी बातें फ्रॉड हैं, वैसे ही इनकी यह बात भी फ्रॉड है.

शेरपुर गांव अपने आप में एतिहासिक गांव है. यहां 1942 में आठ लोगों ने मोहम्मदाबाद में, जिनमें मेरे दादा भी शामिल थे, ने कर्बुानी दी थी. 

वह आगे कहते हैं, “देखिए आप संजय को ठग मत कहिए, वो ठग नहीं है. वो सिस्टम का पैदा किया हुआ वह आदमी है जो मीडिल मैन का काम करता है. जिसे लोग ठग व महाठग कह रहे हैं वह ऐसा नहीं है. वह बहुत कम उम्र में प्रधानमंत्री को बुके देता हुआ दिखाई दे रहा है. उसकी बहुत सी ऐसी तस्वीरें हैं. लेकिन वो प्रधानमंत्री नहीं गुजरात के मुख्यमंत्री को बुके दे रहा है. तस्वीरों में देखिए उसकी तब उम्र कम है. इसलिए तब उसको सिस्टम ने पैदा किया है, कि तुम लाइजनिंग करो सबकुछ करो. तभी तो वह सभी लोगों से मिलता जुलता था. बकायदा मंत्रियों से मिलता था. 

अब उसको शिकार ये बनाया जा रहा है कि इसको ठग घोषित कर दीजिए और अपने आप को बचा लीजिए.” 

यह काम उत्तर प्रदेश की लॉबिंग ने शुरू किया. अब ईडी भी इसमें शामिल हो गई है. खोजेगी तो, मिलेगा कुछ है नहीं. लीपापोती हो जाएगी लेकिन इससे नेता बच जाएंगे. जो इसकी लाइजनिंग में पैसा लिए होंगे, इसके थ्रू काम किए होंगे. 

नरेंद्र मोदी के लिए चुनाव प्रचार करने के बारे में पूछने पर वह कहते हैं कि 2019 में चुनाव के दौरान संजय ने बनारस में सोशल एंटरप्रेन्योरशिप कार्यक्रम शुरू किया. इस दौरान शेरपुरिया ने लोगों को बताया कि कैसे किसी उत्पाद को महंगे में बेच सकते हैं. कैसे इसको बदल सकते हैं. इसके बाद इन्होंने 30 बीघा लीज पर जमीन ली और फिर काम शुरू किया. 

इनके गांव में पहले से कुछ रह नहीं गया था. यहां इनकी कोई जमीन भी नहीं थी लेकिन जब ये लौटकर आए हैं तो इन्होंने गांव के पास ही कुंडेसर में चार बीघा जमीन खरीदी. 

इसी जमीन में इन्होंने दो कमरे बनवाए थे, जिसमें बाद में इनके पिताजी रहते थे. 

क्या कहते हैं बनारस भाजपा के नेता 

इस मामले में हमने बनारस और गुजरात के भाजपा नेताओं से बातचीत की. बनारस के जिला अध्यक्ष हंसराज विश्वकर्मा कहते हैं, “संजय न तो पार्टी में था न ही कोई पदाधिकारी था, जैसे झांसा देकर लोगों को धोखा दिया वैसे ही यहां मोदी जी का खास है बताकर कुछ लोगों को पकड़कर थोड़ा बहुत काम किया. वह चुनाव में आया था क्योंकि चुनाव में बहुत लोग आते हैं मदद करने के लिए तो वो भी आ गया.” 

लेकिन वह तो बनारस में मोदी जी का चुनाव कार्यालय संभालते थे? इस पर वह कहते हैं नहीं नहीं ऐसी बात नहीं है, उसके लिए हम लोग हैं, यहां वो क्या संभालेंगे. वह कुछ नहीं था. 

वह कहते हैं, “मैं यहां सात साल से जिला अध्यक्ष हूं. मैंने 2014, 2017, 2019 और 2022 का चुनाव देखा है. शेरपुरिया 2019 में आए थे, तब ये बताते थे कि वह मोदी जी और अमित शाह जी के खास हैं. इसका कोई न कोई संबंध रहा होगा किसी से लेकिन हम लोगों से इसका कोई संबंध नहीं था. बहुत ज्यादा जानकारी हमारे पास नहीं है क्योंकि हम लोग कार्यकर्ता हैं और पार्टी के लिए काम करते थे.”

वहीं, ओबीसी मोर्चा क्षेत्रीय उपाध्यक्ष सोमनाथ विश्वकर्मा कहते हैं, “संजय शेरपुरिया यहां कार्यक्रम में कई बार आए हैं. इनके पास कोई पद नहीं था. बनारस में मोदी जी का दफ्तर जरूर संभालते थे लेकिन उन पर कोई पद नहीं था. ये सब 2019 की बात है.” 

वह कहते हैं, “संजय बिना पद के बड़े नेताओं के इतना करीबी कैसे थे, यह बताना मुश्किल है. चुनाव में गुजरात से बहुत लोग आए थे, केवल संजय जी ही नहीं आए थे बाकी लोग भी आए थे. वैसे भी बनारस मोदी जी का क्षेत्र है तो यहां पर सभी लोग आते-जाते रहते हैं. मैंने इन्हें देखा जरूर है लेकिन कभी बात नहीं हुई.”

वहीं, गुजरात कनेक्शन का पता करने के लिए हमने कच्छ जिले के जनरल सेक्रेटरी वलमाजी हंबालाल से बात की. वे कहते हैं, “मैं पिछले छह सालों से यहां पार्टी पदाधिकारी हूंं. लेकिन संजय राय शेरपुरिया कभी यहां पर किसी पद पर नहीं रहा है.”  हालांकि, उन्होंने और ज्यादा कुछ बताने से मना कर दिया.

हंबालाल की तरह, गुजरात के कुछ अन्य नेताओं से संजय शेरपुरिया के बारे में बात की तो उन्होंने भी कोई प्रतिक्रिया देने से इनकार कर दिया. 

“आदमी के शरीर में होता है तीन लीटर खून”

 अजय राय कहते हैं, संजय के बारे में जानने की इच्छा पहली बार तब हुई जब इनके दादाजी की मौत हो गई और इन्होंने एक रोड का नाम अपने दादाजी के नाम पर ‘स्वतंत्रता सेनानी देव नारायण’ रख दिया. इस रोड का नाम पहले ‘पुराना शहीद पथ’ हुआ करता था.

इसके बाद हमारी मुलाकात दिल्ली में हुई. एक बार मोहमदाबाद में मुलाकात हुई थी. वहां हर साल शहीदों के सम्मान में आयोजन होता है. तब एक भाषण के दौरान इसने बच्चों को संबोधित करते हुए कहा था कि आदमी के शरीर में तीन लीटर खून होता है. फिर मैंने संबोधित किया तो बताया कि तीन नहीं छह लीटर खून होता है बच्चों भूलना नहीं है. 

वह कहते हैं, “कुल मिलाकर यह समझ लीजिए कि शेरपुरिया सिस्टम का एक पुर्जा है. बाकी जिस मामले में एसटीएफ ने पकड़ा है उसमें कुछ है नहीं, न ही कुछ मिलने वाला है.” 

सरनेम लगाकर गांव का नाम खराब कर दिया

जेपी राय बनारस के जगतपुर पीजी कॉलेज में प्रोफेसर हैं और शेरपुरिया गांव के ही रहने वाले हैं.  वह बताते हैं, “शेरपुरिया की छवि एक बिजनेसमैन वाली थी. 2019 में बनारस में महमूरगंज में बीजेपी का बड़ा सा कार्यालय था, यहीं से मोदी जी का चुनाव संचालित होता था. उस पूरे कार्यालय की देखभाल यही करते थे. प्रभारी नहीं थे लेकिन व्यवस्था सारी यही देखते थे. तभी इन्होंने बनारस के ‘सामने घाट’ पर एक घर भी लिया था. लेकिन वह घर इन्होंने अब बेच दिया है. इस घर में जब एक बार भजन का कार्यक्रम था तब गृहमंत्री अमित शाह उस कार्यक्रम में शामिल हुए थे. यह लोकसभा चुनाव जीतने के बाद की बात है.”

वह कहते हैं कि गांव का एक आदमी बिजनेसमैन है, अच्छा कमा रहा है, उसकी पहचान है तो अच्छा लगता था. लेकिन अब रोज अखबार में खबर छप रही है. शेरपुरिया, जो कि हमारे गांव का नाम है, तो यह खराब लगता है.

“संजय के सरनेम के चलते पूरे गांव का नाम खराब हो गया. जब देश आजाद हुआ था तो नेहरू जी हमारे गांव शहीद स्तंभ पर आए थे. अभी भी जब भी कोई प्रतिष्ठित व्यक्ति गांव में आता है तो वह सबसे पहले शहीद स्तंभ पर जरूर जाता है. शहीदों को माल्यार्पण करने के बाद ही कुछ करता है. नेहरू जी भी आए थे. हमारे गांव की पहचान राष्ट्रीय आंदोलन में सहभागिता के लिए थी, इनमें एक दो परिवार ऐसे भी थे कि जो शहीद हुए थे तो उन परिवारों ने पेंशन भी नहीं ली. नाम संजय राय आता तो ठीक था लेकिन संजय शेरपुरिया जब पढ़ते हैं तो बहुत खराब लगता है. रोजाना अखबारों में यूट्यूब पर सभी जगह शेरपुरिया लिखकर आता है तो ये सुनकर अच्छा नहीं लगता है.” जेपी राय कहते हैं.

संजय राय उर्फ शेरपुरिया का गुजरात कनेक्शन

सजंय राय ऊर्फ संजय शेरपुरिया गुजरात के कच्छ जिले का भी जाना माना नाम रहा है. वहीं इन्होंने अपनी पहली कंपनी खोली थी. हमने कच्छ में भी इनके बारे में जानने की कोशिश की. बीबीसी के लिए बतौर स्ट्रिंगर काम करने वाले और कच्छ निवासी प्रशांत गुप्ता कहते हैं, संजय शेरपुरिया ने गुजरात के गांधीधाम के व्यापारी की बेटी कंचन से शादी की है. 

वह एक वाकया याद करते हैं, “मुझे संजय शेरपुरिया के बारे में पहली बार तब पता चला जब कवि कुमार विश्वास उसके घर आए थे. तब मुझे एक दोस्त ने बताया कि कुमार विश्वास किसी के यहां गांधीधाम में आ रहे हैं. तब मैंने कुमार को कॉल किया था कि कुमार भाई आप इधर आ रहे हो मुझे आपसे मिलना है. तब कुमार ने मुझे संजय शेरपुरिया का नंबर दिया था कि आप इनसे बात कर लीजिए. क्योंकि यह एक नीजि कार्यक्रम है. तब तक मैं संजय को नहीं जानता था. मैंने संजय राय को कॉल किया. ये करीब 2011-12 की बात होगी. ये इंडिया अगेंस्ट करप्शन आंदोलन वाला दौर था. जब कुमार आए तो मैं उनसे मिला और उस टाइम की हमारी साथ में फोटो भी है. मैं उस कार्यक्रम में शामिल भी हुआ था. तब मैं आईबीएन-7 के लिए काम करता था.”

बता दें कि पत्रकार प्रशांत गुप्ता ने तब की यह तस्वीर हमारे साथ साझा भी की है. 

वह आगे कहते हैं, “मुझे याद है कि गांधीधाम से करीब 15-20 किलोमीटर दूर कोई फैक्ट्री थी, जहां पर हम लोग कार्यक्रम में शामिल होने गए थे. इस कार्यक्रम में बहुत कम लोग थे. बाद में पता लगा कि वह संजय शेरपुरिया की ही फैक्ट्री थी. तब मेरा एक दोस्त भी हमारे साथ था.” 

“कुमार मंच पर बार-बार संजय राय के नाम का उल्लेख कर रहे थे. संजय भाई और भूमिहार करके. उन्होंने इस दौरान कहा कि भूमिहार बड़े महान होते हैं इस टाइप का कोई चुटकुला भी सुनाया था. तब मुझे पता चला कि राय भूमिहार होते हैं. इससे पहले नहीं पता था. ये करीब एक डेढ़ घंटे का कार्यक्रम था. प्रोग्राम के बाद कुमार यहां से सीधे अहमदाबाद निकल गए थे. तब मैंने यह जानने की कोशिश की कि ये कौन इतना बड़ा आदमी है, जिसने कुमार विश्वास को बुलाया है, वह भी एक गैर हिंदी भाषी प्रदेश में.” उन्होंने कहा.  

बाद में मुझे पता चला कि संजय, कांडला एनर्जी कंपनी का मालिक है. इसके दो-तीन साल बाद मुझे मेरे साथी पत्रकारों से पता चलता है कि ये आदमी बैंकरप्ट हो गया है.

वह कहते हैं तब मेरे एक साथी पत्रकार ने इस पर एक स्टोरी की थी लेकिन तब भी ये इतना पावरफुल था कि उसे एक स्थानीय चैनल ने चलाने से मना कर दिया था, क्योंकि चैनल को मैनेज कर लिया गया था.

हमने उस पत्रकार से भी बात की, उन्होंने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा कि तब मैंने इस पर स्टोरी की तो इसे पता चल गया था, जहां पहले संस्थान खबर छापने को तैयार था लेकिन बाद में खबर छापने से मना कर दिया गया.

गुप्ता आगे कहते हैं, “अभी ये स्थिति है कि पूरे गांधीधाम में राय के बारे में कोई भी बोलने के लिए तैयार नहीं है. ये कहानी पूरी फिल्मी है. जैसे फिल्मों में होता है कि कोई ठग है, फिर जहां नौकरी करता है तो अपने मालिक की लड़की को अपने जाल में फंसाता है, फिर उस लड़की की जायदाद का मालिक बन जाता है. फिर एक कंपनी स्टार्ट करता है. तो शेरपुरिया की भी यह एक पूरी फिल्मी कहानी है.”

संजय को करीब से जानने वाले एक अन्य पत्रकार और बीबीसी के लिए कैमरामैन गोविंद भी इनकी शुरुआत कच्छ से बताते हैं. वहां इसे संजय राय के नाम से जाना जाता था. 

वे संजय की पूरी कहानी बताते हैं, “कच्छ के गांधीधाम में ही एक मरीना होटल था. जहां पर यह वेटर के तौर पर काम करता था. संजय का अपने मालिक सिप्पी सेठ की बेटी से पहले अफेयर चला फिर शादी कर ली. शादी के बाद उनका एक महंगा प्लॉट था, जिसे शेरपुरिया ने बैंक में गिरवी रखवाया. फिर उस पर लोन लिया और बाद में डिफाल्टर हो गया. ये बहुत बड़ा मास्टरमाइंड था.”

इसी दौरान संजय ने एक कांडला एनर्जी नामक कंपनी बनाई. 

कच्छ के ही एक अन्य शख्स ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा कि कंपनी का दफ्तर दुबई में भी था. जहां से ये अपने प्रोडक्ट को साउथ कोरिया में भी सप्लाई कर रहा था. लेकिन जैसे ही दुबई दफ्तर में इसके काले कारनामों (फ्रॉड) का पता चला तो वे रातोंरात वहां से ऑफिस बंद करके भारत भाग आए. दुबई में जो सारा स्टॉफ था, वो सभी कच्छ का रहने वाला था. उन्हें पता चल गया था कि संजय के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई है तो वे लोग अपनी जान बचाकर भाग आए. लोन नहीं चुकाने के चलते एसबीआई ने संजय की कंपनी को डिफॉल्टर घोषित कर दिया. संजय के खिलाफ करीब पांच साल पहले भी एफआईआर दर्ज हुई थी.

गृहमंत्री अमित शाह के बेटे जय शाह के साथ संजय शेरपुरिया

बातचीत के दौरान गोविंद कहते हैं कि आज भी कांडला कंपनी के डायरेक्टर के तौर पर संजय प्रकाश बालेश्वर राय, कंचन प्रकाश संजय राय और अरुण द्वारका प्रसाद कारवा रजिस्टर हैं. 

वह तर्क देते हैं कि अगर ये सभी कंपनी के डॉयरेक्टर हैं तो फिर सभी पर एफआईआर होनी चाहिए थी. किसी एक पर क्यों की गई जबकि सभी दोषी हैं.  कंपनी पर लोन लिया गया है और कंपनी के तीन डायरेक्टर हैं. इन सभी ने हस्ताक्षर किए होंगे तभी तो सबको पैसा मिला होगा.

वह आगे कहते हैं, “संजय केरोसिन का बड़ा काम करता था. ये बाहर से केरोसिन इंपोर्ट करता था. तब ये सरकारी कंपनियों जैसे गेल इंडिया, आईओसीएल से बायो प्रोडक्ट मंगाता था और कांडला एनर्जी में पेट्रोलियम पदार्थ बनाकर लोकल मार्केट में बेचता था. सबसे ज्यादा कमाई पेट्रोल पंप के जरिए होती थी.”

फिर इसने कुछ बड़े लोगों के साथ संबंध बनाए. उनके साथ फोटो खिंचवाता था और उन्हें लोगों को दिखाता था. 

शेरपुरिया की पत्नी कंचन राय के पिता सिप्पी सेठ भी केरोसीन का काम करते थे. 

जब ये अपना प्रोडक्ट लोकल मार्केट में बेचता था तो यह सब अधिकारियों की मदद से करता था. इसकी केंद्र और राज्य दोनों में अच्छी पकड़ थी. 

वह कहते हैं कि अभी कोई भी इसके मामले पर बोलने के लिए तैयार नहीं है. केंद्र के कुछ 10-12 अधिकारी गांधीधाम में घूम रहे हैं. सभी व्यापारी यहां डरे हुए हैं. जैसे ही कोई कुछ बोलता है या मीडिया में उसका नाम आ जाता है तो अधिकारी उसके यहां पहुंच जाते हैं और सभी से पूछताछ शुरू हो जाती है. 

जांच के चलते जिन व्यापारियों के साथ धोखा किया वो भी बोलने के लिए तैयार नहीं हैं. कोई व्यापारी कुछ बोलता है तो उसकी पहली शर्त यही होती है कि हमारा नाम फोटो कुछ भी बाहर नहीं जाना चाहिए. इसकी वजह है कि यहां केंद्रीय एजेंसियों की टीम घूम रही है और जांच शुरू कर देगी. 

अभी कच्छ में इसका कोई भी कारोबार नहीं है. सिर्फ सिप्पी सेठ ही यहां रहते हैं.

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पहले भी हो चुकी है गिरफ्तारी

पत्रकार जयेश शाह लंबे संमय से पत्रकारिता कर रहे हैं. वह भी बताते हैं, “संजय शेरपुरिया का उदय ही गांधीधाम से हुआ. वे कहते हैं कि गांधीधाम में भारत के अलग-अलग हिस्सों के लोग आकर रहते हैं. यहां एक नोर्थ लॉबी हुआ करती थी तो शेरपुरिया भी उसी नोर्थ लॉबी के इर्द गिर्द हुआ करता था. लेकिन नोर्थ लॉबी में भी दो तीन ग्रुप थे. इसकी आय दिन उनसे झड़प होती थी और मामला पुलिस तक जाता था. एक मामले में तो मुझे याद है कि ये उसमें सीधे तौर पर संलिप्त था. इसकी पहली गिरफ्तारी भी गांधीधाम में ही हुई थी.”

ये लोगों से पैसे लेकर वापस नहीं करता था. उसके चलते अक्सर झगड़े होते थे. 

“एक बार ललन सिंह नाम के व्यक्ति से इसकी झड़प हुई थी. उस मामले में इसकी गिरफ्तारी हुई थी. तब भी ये यहां की लोकल राजनीति में बीजेपी के साथ था. ये 2014 से पहले की बात है. जो भी यहां राजनीतिक लोग हैं. उनसे संबंध बनाकर रखता था. इसके कई राज्यपालों के साथ अच्छे लिंक थे. जब भी इसके साथ कुछ होता था तो लोग सोचते थे कि ये तो गवर्नर का आदमी है. ये लोगों के साथ घुलमिलकर अपना वर्चस्व बनाकर रखता था. शो ऑफ बहुत करता था. जितने भी यहां बिहार और यूपी से गर्वनर आए उनसे इसके अच्छे संबंध थे. ये राजभवन में आता जाता रहता था.” शाह कहते हैं. 

वे आगे कहते हैं कि छोटी-मोटी कोई भी घटना होती थी तो ये बच जाता था. 2014 के बाद ये भाजपा सरकार आते ही दिल्ली आना-जाना शुरू हो गया. लेकिन इसने यहां के लोगों के साथ चीटिंग की है. गुजरात के बहुत जाने-माने व्यापारियों से भी इसने पैसा लिया हुआ है. 

नीति आयोग का मेंबर बता हड़पता था रुपए

“मुझे एक बार यहां के जाने-माने व्यापारी ने फोन किया कि आप पत्रकार हैं, इसके बारे में कुछ लिखो ये बहुत चीटिंग करता है. ये मेरा भी 45 लाख रुपए ले गया है. और मुझे अपने आप को नीति आयोग का मेंबर बताता था. उसी वक्त मुझे डाउट हुआ कि ये इतना पढ़ा लिखा तो है नहीं तो ये नीति आयोग का मेंबर कैसे हो गया. इसके नेताओं के साथ इतने क्लोज फोटो हैं कि देखते ही लग जाएगा कि इसके बहुत अच्छे संबंध हैं. ये सिर्फ एक व्यापारी की बात है. ऐसे बहुत से हैं जो कि बाहर नहीं आए, या डर के मारे नहीं बोल रहे हैं.” उन्होंने कहा. 

लोग ऐसा मानते हैं कि इसे यूपीएसटीएफ ने पहली बार पकड़ा है जबकि ये गलत है इसकी पहली गिरफ्तारी गांधीधाम में हुई थी. उस वक्त कच्छ में पूर्व और पश्चिम का एक ही थाना हुआ करता था लेकिन अब दो हो गए हैं..उस समय यहां पर आईपीएस जीएस मलिक थे. उन्होंने ही इसकी गिरफ्तारी की थी. 

तब भी ये जेल से छूट गया था. इसके यहां के विधायक से भी अच्छे संबंध थे. 

शाह आगे कहते हैं, “दिल्ली में जाने के बाद इसका एंपायर कच्छ से निकलकर अहमदाबाद तक चला गया. तब एक आईपीएस हुआ करते थे बिहार के, फिलहाल इस दुनिया में नहीं हैं, इसके उनसे अच्छे संबंध थे. उनका नाम एके झा था लेकिन बाद में इसके रिश्ते उनसे बिगड़ गए थे. तब उनकी वाइफ ने भी इसके ऊपर कंपलेंट की थी.” 

संजय शेरपुरिया और उनकी पत्नी कंचन राय

बैंकों से कर्जा लेकर नहीं लौटाना पुरानी आदत

वह कहते हैं बैंको से कर्जा लेकर उसे वापस नहीं देना इसकी ये पुरानी आदत थी. इसको सबसे ज्यादा पैसा ऐसे ही मिला है. 

बैंक ऑफ महाराष्ट्रा से भी इसने करोड़ों रुपए लिए थे. यह इतना शातिर आदमी था कि किसी गुप्ता नाम के डायरेक्टर को ये चार्टर से बुलाकर शॉपिंग करवा कर भेज देता था. उसे लग्जरी गाड़ी से भी घुमाता था. 

वह कहते हैं कि पकड़े जाने से तीन दिन पहले भी यह कच्छ में ही था. वे बताते हैं कि लगभग सभी पुराने पुलिसवाले इसे जानते हैं और वो कहते हैं कि इसे शेरपुरिया मत कहो ये तो संजय राय है. वो सब इसको अच्छी तरह से जानते हैं. 

पुराने पुलिस वाले भी कहते हैं कि इसको पहले गांधीधाम से पकड़ा गया था. थाने का नाम भी गांधीधाम पुलिस स्टेशन था. 

वह कहते हैं कि यह सभी जानना चाहते हैं कि ये बंदा अब तक बीजेपी के साथ तो तो अचानक से इसकी गिरफ्तारी कैसे हुई. ये मोदी की किताबें छपवाता था, कार्यक्रम करता था लेकिन फिर अचानक ये कार्रवाई हुई.   

ऐसे ही किरण पटेल की गिरफ्तारी हुई थी. ये किरण से बहुत बड़ा है. किरण पटेल इसके सामने बहुत छोटा है. किरण का सब हवा-हवाई दिखावा था लेकिन इसका सब कागज पर था.

संजय के खिलाफ दर्ज एफआई में अब क्या?

संजय के खिलाफ दर्ज एफआईआर के मुताबिक, जब विभाग ने प्राप्त सूचनाओं की पुष्टि एवं जांच की तो सामने आया कि संजय पूर्व में कांडला एनर्जी एंड केमिकल लिमिटेड आदि कई कंपनियों का डायरेक्टर रहा है. कंपनियों के बैंक डिफ़ॉलटर होने के बाद वह दिल्ली और गाजीपुर उत्तर प्रदेश में रह रहा है. 

फिलहाल, संजय ने एक डमी कंपनी बनाई हुई है. जिसका नाम यूथ रूरल एंटरप्रेन्योर फाउंडेशन (वाईआरईएफ) प्राइवेट लिमिटेड रखा गया है. इसे एक डमी डायरेकटर नाम से पंजीकृत करवाया हुआ है. उस कंपनी में उसने अपने लिए किसी तरह का कोई पद नहीं रखा है. जांच के दौरान वाईआरईएफ के यूनियन बैंक खाता संख्या 441501010250495 की डीटेल भी प्राप्त हुई. जिसमें प्रमुख रूप से 21 और 23 जनवरी 2023 को क्रमशः 5 करोड़ एवं 1 करोड़ यानी कुल 6 करोड़ रुपए जमा हुआ है. 

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कंपनियों और शेल कंपनियों का खेल

संजय शेरपुरिया ने पैसों का हेरफेर करने के लिए एक नहीं कई शेलकंपनियां भी बना रखी थीं. अमर उजाला की रिपोर्ट के मुताबिक, जांच में खुलासा हुआ कि संजय ने पांच तो ऐसी कंपनियां बना रखी थी. जिनके जरिए उसने करोड़ों का हेरफेर किया. जैसे कांडला एनर्जी एंड केमिकल लिमिटेड के जरिए वह केमिकल और रसायनिक उत्पाद बेचता था. दूसरी कंपनी कच्छ एंटरप्राइज प्राइवेट लिमिटेड, तीसरी कंपनी काशी फार्म फ्रेश प्राइवेट लिमिटेड, चौथी कंपनी कांडला एंटरप्राइज प्राइवेट लिमिटेड और पांचवी कंपनी राय कॉर्पोरेश लिमिटेड है. 

पुलिस सूत्रों के मुताबिक, इन पांच कंपनियों के अलावा दर्जनों ऐसी शेल कंपनियां भी हैं, जिनमें संजय राय और उनकी पत्नी की हिस्सेदारी है. इनके जरिए भी करोड़ों की हेरा-फेरी जारी थी. 

ऐसे पकड़ा गया संजय

संजय को पकड़ने के लिए टीम तैयार की गई. सूचना के बाद ये टीम कानपुर रेलवे स्टेशन के प्लेटफ़ॉर्म नंबर 4 पर सुहेलदेव एक्सप्रेस ट्रेन का इंतजार करने लगी. ट्रेन स्टेशन पर रुकी तो कोच से उतर रहे एक व्यक्ति को देखकर मुखबिर ने इशारा किया. इसके बाद टीम ने उस शख्स से नाम और पता पूछा. उसने खुद का नाम संजय प्रकाश राय, निवासी शेरपुर बताया. टीम उसे शाम साढ़े पांच बजे एसटीएफ मुख्यालय लाई. जहां उसके पास से दो आधार कार्ड बरामद हुए. एक में उसका नाम संजय प्रकाशन बालेश्वर राय और दूसरे में संजय शेरपुरिया था. एक वोटर आईडी कार्ड और तीन मेंबरशिप कार्ड भी बरामद हुए. 

संजय शेरपुरिया फिलहाल जेल में हैं और उनसे पूछताछ जारी है.

नोटः ख़बर में इस्तेमाल की गई सभी तस्वीरें संजय शेरपुरिया के सोशल मीडिया अकाउंट्स से ली गई हैं .

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