दिन ब दिन की इंटरनेट बहसों और खबरिया चैनलों के रंगमंच पर संक्षिप्त टिप्पणी.
गए हफ्ते देश में एक भीषण रेल हादसा पेश आया. ओडिशा के बालासोर में एक के बाद एक तीन ट्रेनों की भीषण टक्कर हो गई. इसमें अब तक 275 लोगों की मौत हो चुकी है और 900 से ज्यादा लोग घायल हैं. इस हादसे का शिकार तीन ट्रेनें हुईं जिसमें कोरोमंडल एक्सप्रेस, बेंगलुरु-हावड़ा सुपरफास्ट एक्सप्रेस और एक मालगाड़ी शामिल है. इसे सदी की सबसे बड़ी रेल दुर्घटना बताया जा रहा है. तमाम तकनीकी तरक्की और सुरक्षा के दावों के बावजूद रेल दुर्घटनाएं नियमित अंतराल पर हो रही हैं.
इस दुर्घटना के बाद तमाम मासूस लोग रेलमंत्री से नैतिकता के आधार पर इस्तीफे की मांग कर रहे हैं. रेलमंत्री ठहरे पुराने चावल. पूरी जिंदगी नौकरशाही की दांवपेंच में गुजार दी उन्होंने. ऐसे मासूम लोगों से माफी के साथ कहना होगा कि जिस सरकार में महिला पहलवानों के यौन उत्पीड़न का आरोपी शान से हर दिन बयानबाजी कर रहा है, जिसके बेटे ने सरेआम किसानों को जीप से रौंद दिया वह गृहराज्यमंत्री है, उसी सरकार के रेलमंत्री से नैतिकता के आधार पर इस्तीफा मासूमियत से ज्यादा क्या है?
बीते हफ्ते तिहाड़ शिरोमणी उर्फ सुधीर चौधरी थोड़ा सरकास्टिक हो गए. बोले तो व्यंग्यात्मक. उन्होंने महिला पहलवानों पर व्यंग्य के तीर चलाए. दरअसल, यौन शोषण की शिकार महिला पहलवानों ने अपने जीते हुए मेडल गंगा में बहाने का ऐलान किया था. जिस पर चौधरी साब व्यंग्यात्मक हो गए.
अब बस एक ही बात कहनी है- हे तिहाड़गामी, खुरानाभक्षक, नैनोचिपजीवी चौधरी व्यंग्य, हास्य, कटाक्ष, कार्टून, ह्यूमर कम्युनिकेशन की बहुत ताकतवर विधा है लेकिन इसकी एक बॉटमलाइन है. इसका एक कार्डिनल रूल है. बोले तो इसका एक सिद्धांत है. व्यंग्य हमेशा कमजोर के पक्ष में खड़ा होता है, ताकतवर के खिलाफ खड़ा होता है, दमन के खिलाफ और सत्ता के खिलाफ खड़ा होता है.