हादसे के बाद 193 अज्ञात शव भुनेश्वर के अलग-अलग अस्पतालों में रखे गए हैं. इसमें से अब तक 113 शवों की पहचान की जा चुकी है.
शुक्रवार, 2 जून को ओडिशा के बालासोर में हुए ट्रिपल ट्रेन हादसे में सरकारी आंकड़ों के मुताबिक अब तक 288 लोगों की मौत हो चुकी है. पहले इन शवों को घटनास्थल के पास में ही एक सरकारी स्कूल में रखा गया था. इसके बाद यहां के नौसी पार्क ले जाया गया. दोनों जगहों पर लोग पहुंचकर अपनों की पहचान कर शव लेते नजर आए. जब शव खराब होने लगे तो प्रशासन ने इन्हें भुवनेश्वर के अलग-अलग अस्पतालों में भेज दिया.
शनिवार देर रात से रविवार सुबह तक बालासोर प्रशासन ने एंबुलेंस के जरिए शवों को भेजा. 193 शव नौसी पार्क से अलग-अलग अस्पतालों में भेजे गए. इसमें 123 शव एम्स (भुवनेश्वर) में, 20 केआईएमएस अस्पताल, 20 सम (SUM) अस्पताल, 6 अमरी अस्पताल, 14 कैपिटल अस्पताल और 10 शवों को हाईटेक अस्पताल में भेजा गया. अब लोग अपनों की पहचान के लिए इन अस्पतालों का चक्कर लगा रहे हैं.
न्यूज़लॉन्ड्री द्वारा हासिल किए गए दस्तावेज के मुताबिक मंगलवार शाम 7 बजे तक इसमें से 113 शवों की पहचान कर ली गई है. वहीं, 96 शवों को उनके परिजनों को सौंप दिया गया है. अगर, राज्यवार आंकड़ों की बात करें तो इन 96 में से 48 पश्चिम बंगाल के, 40 बिहार के, ओडिशा और झारखंड के लोगों के चार-चार शव उनके परिजनों को सौंपे गए हैं.
किस अस्पताल में आए कितने शव और कितनों की हुई पहचान
एम्स में 123 शव लाए गए थे. जिसमें से 82 की पहचान कर ली गई है. वहीं इसमें से 71 शवों को उनके परिजनों को सौंप दिया गया है. एम्स से 37 शव पश्चिम बंगाल, 26 शव बिहार, वहीं ओडिशा और झारखंड में चार-चार शव भेजे गए हैं.
केआईएमएस हॉस्पिटल में 20 शव आए थे. इसमें से सात की पहचान हो पाई है. यहां से सात शव भेजे गए हैं. जिसमें से चार बिहार और तीन पश्चिम बंगाल के लोगों के हैं.
सम (SUM) अस्पताल में भी 20 शव आए थे. जिसमें से 11 की पहचान कर ली गई. इनमें से 10 शवों को उनके घर भेजा जा चुका है. इसमें से बिहार और पश्चिम बंगाल के लोगों के पांच-पांच शव थे.
अमरी अस्पताल की बात करें तो यहां 6 शव भेजे गए थे, जिसमें से तीन की पहचान हुई है. इसमें से दो को उनके परिजनों को सौंप दिया गया है. पश्चिम बंगाल और बिहार के एक-एक शव है.
कैपिटल अस्पताल में 14 शव लाए गए थे. इसमें से 8 की पहचान मंगलवार शाम तक हो पाई थी. जिनमें से चार शवों को उनके परिजनों को सौंप दिया गया. इसमें से तीन शव बिहार के थे और एक पश्चिम बंगाल का.
हाईटेक अस्पताल में 10 शव भेजे गए थे. जिसमें से अब तक सिर्फ दो की पहचान हो पाई है. इन दोनों शवों को उनके परिजनों को सौंप दिया गया है. इसमें से एक बिहार और एक पश्चिम बंगाल का है.
इस तरह देखें तो मृतकों में ज्यादातर बिहार और पश्चिम बंगाल के निवासी शामिल हैं. शवों की पहचान होने के बाद ओडिशा सरकार एंबुलेंस के जरिए उन्हें भेज रही है. एंबुलेंस के अलावा एक और गाड़ी मृतकों के परिजनों को जाने के लिए सरकार उपलब्ध करवा रही है.
अब डीएनए से की जाएगी शवों की पहचान
न्यूज़लॉन्ड्री की टीम ने मंगलावर का पूरा दिन एम्स भुवनेश्वर में गुजारा. यहां दो जगहों पर शव रखे गए हैं. हादसे के पांचवें दिन भी सैकड़ों की संख्या में लोग अपनों की तलाश में यहां पहुंच रहे थे. एम्स में भी स्क्रीन पर मृतकों की तस्वीरें दिखाई जा रही हैं. साथ ही अब तस्वीरों की बुकलेट भी छाप दी गई है ताकि लोग ठीक से पहचान कर सकें. काफी मशक्क्त के बाद भी कुछ लोग अपनों को नहीं पहचान पा रहे हैं क्योंकि हादसे में कई लोगों का चेहरा क्षत-विक्षत हो गया है तो कुछ का पूरा शरीर जल गया है. दरअसल, घटना स्थल पर मौजूद लोगों की मानें तो एक डब्बे पर बिजली का तार गिर गया था. जिससे लोग जल गए.
यहां ऐसे मामले भी सामने आए हैं, जिसमें परिजनों ने बताया कि उन्होंने जैसे- तैसे अपनों की पहचान कर ली है. जब उन्होंने स्थानीय प्रशासन को बताया तो पता चला कि वो शव कोई और लेकर जा चुका है. ऐसे ही एक शख्स बिहार के दुमका जिले से आए छोटका किस्सू हैं. उनका 21 वर्षीय बेटा मुंशी किस्सू चेन्नई काम की तालश में जा रहा था. ट्रेन हादसे के बाद से उसकी कोई जानकारी नहीं है.
किस्सू ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, ‘‘मैंने स्क्रीन पर देखकर अपने बेटे के शव की पहचान कर ली. जब पुलिस के पास गए तो बताया गया कि शव कोई और लेकर जा चुका है.’’ यह सब बताते हुए किस्सू रोने लगते हैं.
ऐसी कहानी पश्चिम बंगाल के रहने वाले सैफुल इस्लाम की है. इनके छोटे भाई जीशान आलम बेंगलुरु में काम करते थे. वे यशवंतपुर एक्सप्रेस से घर आ रहे थे. इस्लाम बताते हैं, ‘‘स्क्रीन पर देखकर मैंने अपने भाई का शव पहचान लिया है. उसका नंबर छह है. लेकिन अब इस नंबर का शव दिख नहीं रहा है. ऐसे में उन्होंने मेरा डीएनए सैंपल ले लिया है.’’
सैफुल इस्लाम और छोटका किस्सू के अलावा बिहार के मोतिहारी के रहने वाले मुसाफिर साहनी और पश्चिम बंगाल के मालदा के रहने वाले रफीकुल इस्लाम का भी मंगलवार को डीएनए सैंपल लिया गया.
न्यूज़लॉन्ड्री को भुवनेश्वर म्युनिसिपल कॉरपोरेशन के सीनियर अधिकारी ने बताया कि डीएनए सैंपल सोमवार रात से लिया जाने लगा. सोमवार को कम सैंपल लिए गए. वहीं मंगलवार शाम सात बजे तक 30 लोगों का सैंपल लिया गया है.’’
न्यूज़लॉन्ड्री के पास मौजूद दस्तावेजों के मुताबिक, जिन लोगों का डीएनए सैंपल लिया गया है उसमें से भी ज़्यादातर बिहार, पश्चिम बंगाल और झारखंड के रहने वाले हैं.
डीएनए सैंपल देने वाले मुसाफिर साहनी न्यूज़लॉन्ड्री को बताते हैं, ‘‘मेरा बड़ा बेटा अनिल कुमार. वो सुगौली से हावड़ा पहुंचा था. वहां से वो कोरोमंडल से चेन्नई जनरल डिब्बे से जा रहा था. वह चेन्नई में मज़दूरी करता था. हावड़ा पहुंचने तक उससे बात हो रही थी. इसके बाद हादसे की खबर सुनी तो उसे फोन किया लेकिन फोन बंद था. अभी तक न बेटे का पता है और न ही उसकी लाश ही मिली है. मैं सोमवार को 11 बजे यहां पहुंचा हूं, तब से बहुत परेशान हूं. स्क्रीन पर जो तस्वीरें दिखाई जा रही हैं, उसमें वो नहीं है. कई और जगहों पर भी देखा. कहीं नहीं मिल रहा है. आज मेरा डीएनए सैंपल लिया है. इन्होंने बताया कि तीन दिन में डीएनए की रिपोर्ट आएगी तभी पता चल पाएगा कि कौन सा किसका शव है. तब तक हम रुकेंगे. लड़का है मेरा, ऐसे कैसे जा सकते हैं.’’
एम्स में मौजूद डॉक्टर्स ने हमें बताया कि डीएनए जांच की रिपोर्ट आने में कम से कम तीन दिन और ज्यादा से ज्यादा छह दिन लगते हैं.
ऐसे में अब डीएनए जांच कराने वालों को रिपोर्ट का इंतजार करना पड़ेगा. जिन मृतकों की अभी तक पहचान नहीं हुई है उनका भी डीएनए सैंपल ले लिया गया है. रिपोर्ट आने पर डीएनए का मिलान किया जाएगा और शव दिया जाएगा.
भुवनेश्वर की मेयर सुलोचना दास ने बताया, ‘‘जो 193 शव भुवनेश्वर के अलग-अलग अस्पतालों में आए थे, उसमें से लगभग 110 की पहचान कर ली गई है. बाकी जो 83 शव हैं. उनका पता नहीं चल पा रहा है. उनका डीएनए टेस्ट हो रहा है. डीएनए टेस्ट मिलान करने के बाद शव संबंधित परिजन को सौंप दिया जाएगा.’’
डीएनए टेस्ट कराने के पीछे एक वजह तो जली, अधकटी लाशें भी हैं. उन्हें पहचानना मुश्किल हो रहा है. वहीं अधिकारियों की मानें तो कुछ लोग मुआवजे की रकम पाने के लालच में झूठे दावे भी करने लगे हैं. बालेश्वर में सोमवार को एक महिला पहुंचीं और उसने एक शव की पहचान करते हुए दावा किया कि यह शव उसके पति का है. जब अधिकारियों ने तहकीकात की तो पता चला कि उसका पति जीवित है. ऐसे में शव किसी और के पास न जाए इसके लिए प्रशासन ने डीएनए जांच के बाद ही शव सौंपने का फैसला किया है.