जहरीली शराब से हुई मौतों पर एनएचआरसी का दोहरा रवैया

शराबबंदी वाले दो राज्यों के लिए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के दो अलग पैमाने हैं? जहरीली शराब से हुई मौतों में तो यही नजर आता है.

WrittenBy:बसंत कुमार
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15 दिसंबर 2022, बिहार के छपरा और सिवान जिले में 60 से ज्यादा लोगों की मौत शराब पीने से हो गई थी. इस घटना में कई लोगों की आंखों की रोशनी तक चली गई. 16 दिसंबर को मीडिया ने इस खबर को दिखाया. इसके बाद राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने घटना का स्वतः संज्ञान लेते हुए बिहार सरकार को नोटिस जारी कर दिया. नोटिस भेजने के अगले ही दिन 17 दिसंबर को आयोग ने मामले की पड़ताल के लिए एक टीम भी बिहार भेजने की घोषणा कर दी. 

इस घटना के ठीक पांच महीने पहले 26 जुलाई, 2022 को गुजरात के भावनगर जिले में भी जहरीली शराब पीने से 48 घंटे के भीतर 57 लोगों की मौत हो गई थी. यहां भी कई लोगों की आंखों की रोशनी चली गई थी. दैनिक भास्कर के मुताबिक यहां के एक गांव में ही 12 लोगों की मौत हुई, जिसमें दो महिलाएं भी शामिल थीं.

लेकिन यहां पर एनएचआरसी ने उस तरह की मुस्तैदी नहीं दिखाई जैसी बिहार के मामले में देखने को मिली थी. गुजरात में जांच टीम भेजना या स्वतः संज्ञान लेना तो दूर एनएचआरसी ने गुजरात सरकार को नोटिस तक नहीं भेजा. यह जानकारी न्यूज़लॉन्ड्री ने सूचना के अधिकार के तहत हासिल की है.

बिहार सरकार को जो नोटिस आयोग की तरफ से भेजा गया उसमें लिखा है, ‘‘शराब से हुई मौतों की घटनाओं से जाहिर होता है कि बिहार सरकार अपने यहां अवैध और नकली शराब की बिक्री एवं खपत पर प्रतिबंध लगाने की अपनी नीति को लागू करने में विफल रही है.’’

गौरतलब है कि गुजरात और बिहार, दोनों राज्यों में शराबबंदी है. लोकसभा में दिए गए एक जवाब के मुताबिक 2016 से 2021 के बीच नकली शराब पीने से गुजरात में 54 वहीं बिहार में 23 लोगों की जान गई है. हालांकि, जानकार इन आंकड़ों पर सवाल उठाते रहते हैं.

नोटिस वाली लिस्ट से गुजरात गायब

न्यूज़लॉन्ड्री ने आरटीआई के तहत जानना चाहा कि 1 जनवरी 2020 से 20 अप्रैल, 2023 तक एनएचआरसी ने किन राज्यों को अवैध शराब से हुई मौत के मामले में नोटिस जारी किया है

इसके जवाब में आयोग ने बताया कि बिहार, पश्चिम बंगाल, हिमाचल प्रदेश, ओडिशा, पंजाब, मध्य प्रदेश और आंध्र प्रदेश को नोटिस भेजा है. इस लिस्ट से गुजरात का नाम गायब होना चौंकाता है. 

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आरटीआई से मिली जानकारी

हमने आरटीआई के तहत यह भी जानकारी मांगी कि जनवरी 2020 से अप्रैल 2023 के बीच एनएचआरसी ने शराब पीने से हुईं मौतों की जांच के लिए किन राज्यों में अपनी जांच टीम भेजी है. इसके जवाब में बताया गया, ‘‘आयोग द्वारा 18 दिसंबर, 2022 को दिए गए निर्देश के बाद एक टीम ने स्पॉट फैक्ट फाइंडिंग इन्क्वायरी के लिए 20 दिसंबर 2022 से 23 दिसंबर 2022 तक बिहार के प्रभावित जिले का दौरा किया था.’’

इसके अलावा किसी और राज्य में इन्वेस्टिगेशन टीम भेजने का जिक्र आयोग ने अपने जवाब में नहीं किया है. 

आरटीआई में हमने जनवरी 2020 से अप्रैल 2023 के बीच आयोग द्वारा अवैध/नकली शराब पीने से हुई मौतों के मामले की जांच के लिए भेजी गई टीम द्वारा जारी रिपोर्ट की मांग की. आयोग ने रिपोर्ट देने से इंकार करते हुए कहा, ‘‘किसी जांच में अंतिम फैसला/निर्देश आने के बाद ही रिपोर्ट साझा की जा सकती है.’’ 

आरटीआई से मिली जानकारी

आरटीआई से मिले जवाबों से साफ है कि शराबबंदी वाले दो राज्यों में नकली/ अवैध शराब से हुई मौतों पर एनएचआरसी के रवैये में एकरूपता नहीं है. जब एनएचआरसी की टीम बिहार जांच के लिए गई थीं तब विपक्षी दलों ने केंद्र सरकार पर संस्थानों के गलत इस्तेमाल का आरोप लगाया था.

राज्यसभा में भी राजद, टीएमसी समेत 14 दलों ने आयोग के इस कदम की आलोचना की थी. विपक्षी दलों द्वारा जारी साझा बयान में कहा गया था, ‘‘2016 से जद (यू)-बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकार शराब पर प्रतिबंध वाला कानून लाई थी. भाजपा 2021 तक वहां सत्ता में रही तब तक 200 से अधिक लोगों की मौत जहरीली शराब पीने से हुई. तब एनएचआरसी ने ऐसी किसी भी घटना की जांच करने की आवश्यकता महसूस नहीं की.’’

वहीं, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी बीजेपी शासित राज्यों की तरफ इशारा करते हुए सवाल किया था कि दूसरे राज्यों में भी तो शराब से मौतें हुई हैं, वहां एनएचआरसी की टीम क्यों नहीं जाती है?

बिहार में एनएचआरसी की टीम को परेशानियों का सामना भी करना पड़ा था.

राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) के विधायक और प्रवक्ता शक्ति सिंह यादव कहते हैं, ‘‘जब एनएचआरसी की टीम बिहार आई थी तब हमने कहा था कि ये आयोग अब पूरी तरह भारतीय जनता पार्टी का आयोग बन गया है. अगर उनकी कार्रवाई में एकरूपता होती तो जो भी शराबबंदी वाले राज्य हैं, वहां की कार्रवाइयों में अंतर नहीं होता. गुजरात में भी सैकड़ों मौतें हुई हैं लेकिन वहां हुई घटनाओं पर अभी तक आयोग ने संज्ञान तक नहीं लिया. आयोग निष्पक्ष है, जनहित के लिए है लेकिन वह भाजपा की आकंक्षाओं को पूरा करने पर काम करेगा तो सवाल खड़ा होगा ही.’’  

हमने इस मामले में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का पक्ष जानने के लिए एनएचआरसी के उप निदेशक (मीडिया और संचार) जैमिनी कुमार श्रीवास्तव को कुछ सवाल भेजे हैं. खबर लिखने तक उनका जवाब हमें नहीं मिला है. अगर उनका जवाब आता है तो उसे खबर में शामिल किया जाएगा. 

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