बीबीसी के दिल्ली दफ्तर में कार्यरत दो श्रीलंकाई पत्रकारों के वीजा विस्तार पर विदेश मंत्रालय की चुप्पी के चलते वापस लौटने की मजबूरी.
फरवरी में इनकम टैक्स (आईटी) द्वारा बीबीसी के दिल्ली और मुंबई दफ्तरों पर सर्वे किया गया. यह सर्वे तीन दिन तक जारी रहा. इस कार्रवाई पर देश और विदेश में काफी चर्चा हुई. माना गया कि यह कार्रवाई प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ऊपर बनी बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री फिल्म इंडिया: द मोदी क्वेश्चन की प्रतिक्रिया में की गई. इस डॉक्यूमेंट्री के रिलीज होने के बाद से बीबीसी, भारत सरकार की एजेंसियों के निशाने पर है.
ताजा जानकारी के मुताबिक बीबीसी दफ्तर में कार्यरत दो विदेशी पत्रकारों के वीजा विस्तार का मसला विदेश मंत्रालय लंबे समय से लटकाए हुए है. इसके चलते इन दोनों पत्रकारों के ऊपर श्रीलंका वापस लौटने का खतरा पैदा हो गया है.
ये दोनों महिला पत्रकार बीबीसी की सिंहली भाषा विभाग में काम करती हैं जो कि दिल्ली स्थित कार्यालय से संचालित होता है. इन दोनों का एक साल का वीजा इसी महीने (मई) में खत्म होने वाला है. इन दोनों महिला पत्रकारों ने भारत सरकार से पिछले साल नवंबर महीने में वीजा बढ़ाने के लिए आवेदन किया था. लेकिन अभी तक इनके वीजा की अवधि को बढ़ाया नहीं गया.
बीबीसी के दिल्ली स्थित कार्यालय में कार्यरत एक पत्रकार ने इस बाबत हमें जानकारी देते हुए कहा, “सरकार न तो उनके वीजा विस्तार के आवेदन को ठुकरा रही है न ही उसे बढ़ा रही है. नवंबर में ही दोनों श्रीलंकाई पत्रकारों ने विस्तार की अर्जी लगा दी थी. इससे सबको चिंता हो रही है. मोदी के ऊपर बनी डॉक्युमेंट्री के बाद से लगातार सरकार किसी न किसी तरह बीबीसी को निशाना बना रही है. पहले आयकर विभाग का छापा, फिर ईडी की फेमा जांच और अब यह वीजा का मामला. इससे बीबीसी के कर्मचारियों में असुरक्षा का माहौल बन रहा है.”
हमने इस बाबत बीबीसी के लंदन मुख्यालय स्थित अनुष्का रसेल से कुछ सवाल पूछे थे. मेल पर आए जवाब में उन्होंने कहा, “मैं मंगलवार यानी 29 मई तक कार्यालय से बाहर हूं. वापसी पर आपके सवालों का जवाब दूंगी.” एक और मेल के जवाब में वह बताती हैं कि उन्होंने हमारे सवालों को अपने सहकर्मी के पास भेज दिया है, जल्द ही वो हमसे संपर्क करेंगे.
बीबीसी के प्रेस ऑफिस के एक कर्मचारी रॉबिन मिलर से भी हमारी ई-मेल पर बात हुई. उन्होंने बहुत संक्षेप में कहा कि उनके पास हमारे सवालों का कोई जवाब नहीं है.
वीजा के लिए इंतजार कर रही दोनों श्रीलंकाई महिला पत्रकारों से भी हमने संपर्क किया लेकिन उनकी कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है. सिंहली सर्विस की संपादक को हमने कुछ सवाल मेल के जरिए भेजे हैं. उन्होंने अभी तक कोई जवाब नहीं दिया है.
बीबीसी में बेचैनी
नाम नहीं छापने की शर्त पर बीबीसी के एक पत्रकार कहते हैं, “कर्मचारियों के मन में नौकरियां जाने का डर पैदा हो गया है. मीटिंग में पत्रकारों द्वारा पूछे गए सवालों का कोई स्पष्ट जवाब नहीं मिल रहा है.”
एक अन्य कर्मचारी ने हमें जानकारी दी कि सरकार की ओर से 18 अप्रैल को एक नोटिस मिला है जिसमें कहा गया है कि कंपनी को प्रत्यक्ष विदेशी निवेश यानी एफडीआई के नियम फॉलो करने होंगे.
दिल्ली स्थित बीबीसी के शीर्ष प्रबंधन की तरफ से कर्मचारियों को भरोसा दिलाने की कोशिशें भी चल रही हैं. बीबीसी के एक अंदरूनी पत्राचार में बीबीसी इंडिया की हेड रूपा झा सभी कर्मचारियों को भरोसा बनाए रखने, जरूरत पड़ने पर बातचीत करने और ऑफिस की अंदरूनी घटनाक्रम को गोपनीय रखने की सलाह देती हैं.
इस बातचीत से जाहिर है कि सरकार की कार्रवाइयों के चलते बीबीसी के भारत स्थित कर्मचारियों में भय और आशंका का माहौल है. इसमें नौकरी जाने का भय भी शामिल है.
बता दें कि बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री इंडिया: द मोदी क्वेश्चन का पहला पार्ट 17 जनवरी, 2023 और दूसरा पार्ट 24 जनवरी को रिलीज हुआ था. इसके बाद इसकी स्क्रीनिंग को लेकर भी देश भर में बवाल हुआ.
भारत सरकार ने इसे यूट्यूब और ट्विटर पर ब्लॉक करने का निर्देश जारी कर प्रतिबंध लगा दिया था. इसके बावजूद यह कई जगहों पर प्रदर्शित हुई. सोशल मीडिया इसको लेकर दो हिस्सों में बंट गया. एक तरफ बीबीसी की तीखी आलोचना तो दूसरी तरफ समर्थन की बाढ़ देखने को मिली. इस दौरान भारत में कार्यरत बीबीसी के कर्मचारियों को एहतियात बरतने की भी सलाह दी गई थी.
इस सबके बाद 14 फरवरी को बीबीसी के दिल्ली और मुंबई स्थित दफ्तरों पर आईटी विभाग ने तीन दिन लंबा सर्वे किया. वहीं 13 अप्रैल को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने बीबीसी पर विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (फेमा) का मामला दर्ज किया.
बीबीसी के साथ सरकार का टकराव का नया मोर्चा अब शायद पत्रकारों का वीजा विस्तार बन सकता है.
नोटः इस ख़बर को 24 मई, 2023 को दोपहर 1:17 बजे अपडेट किया गया.
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