शीतला सिंह 50 सालों से ज्यादा वक्त तक जनमोर्चा के संपादक रहे हैं. उनकी पहचान एक तेजतर्रार संपादक के रूप में थी.
हिंदी दैनिक जनमोर्चा अखबार के प्रधान संपादक और वरिष्ठ पत्रकार शीतला सिंह नहीं रहे. शीतला सिंह की पहचान एक जुझारू और निडर पत्रकार के तौर पर रही है.
उन्होंने भारतीय राजनीति की सबसे महत्त्वपूर्ण घटना बाबरी मस्जिद विध्वंस और राम जन्म भूमि पर एक किताब लिखी है. शीतला की इस चर्चित किताब का नाम ‘अयोध्या: रामजन्म भूमि-बाबरी-मस्जिद का सच’ है. इस किताब को आधार बनाकर कई सारे पत्रकारों ने स्टोरी की है. यह किताब कई मायनों में महत्त्वपूर्ण थी.
जब एक पत्रकार ने शीतला से पूछा था कि आपने अपनी किताब में कौन से सच का खुलासा किया? तो शीतला ने कहा था, “मैंने उस तथ्य का विवरण दिया है, जिसमें मुस्लिम समाज के नेता राम मंदिर के निर्माण के लिए पहल कर रहे थे, लेकिन संघ अपने राजनीतिक लाभ के चलते ऐसा नहीं होने दे रहा था.”
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Contributeजनमोर्चा की शुरुआत
जनमोर्चा की शुरुआत 1958 में फैजाबाद से हुई थी. शुरुआत में यह समाचार-पत्र साप्ताहिक बुलेटिन के रूप में निकाला गया था. बाद में इसे दैनिक समाचार-पत्र के रूप में निकाला जाने लगा. इसके संस्थापक महात्मा हरगोविंद एक स्वतंत्रता सेनानी थे. उनके बाद समाचार पत्र के संपादन का काम शीतला सिंह ने किया. उन्होंने लगभग 53 सालों तक इसका सम्पादन किया. संभवतः किसी अखबार में इतने लंबे वक्त तक संपादक रहे शीतला सिंह एक मात्र शख्स हैं.
गौरतलब है कि 1958 में 75 रुपए के निवेश के साथ जन इंडिया के स्वामित्व वाले एक सहकारी उद्यम के रूप में जन मोर्चा की शुरुआत हुई थी. शीतला सिंह भारतीय प्रेस परिषद के भी सदस्य रह चुके हैं.
उनके निधन पर यूपी वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन (यूपीडब्लूजेयू) ने गहरा शोक जताया है. यूपीडब्लूजेयू अध्यक्ष टीबी सिंह ने कहा कि शीतला सिंह प्रदेश ही नहीं बल्कि पूरे देश के पत्रकारों के लिए एक मिसाल थे. शीतला सिंह ने पूरा जीवन लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा के लिए संघर्ष किया और पत्रकारों के हित में हमेशा आगे बढ़ाकर काम करते रहे.
वो यूपीडब्लूजेयू के शीर्ष नेतृत्व का हिस्सा भी रहे हैं और उनके संरक्षण में कुशल पत्रकारों की एक बड़ी पौध विकसित हुई. उन्होंने सहकारिता के मॉडल पर समाचार पत्र चलाने का एक अनूठा उदाहरण पेश किया और सफलतापूर्वक इसे जनमोर्चा में लागू कर दिखाया था.
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