आज हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान में गौरक्षा की आड़ में कुछ असमाजिक लोग पुलिस के साथ मिलकर हिंसा और उगाही कर रहे हैं, जबकि कर्नाटक में यह मॉडल डेढ़ दशक पुराना है.
28 जुलाई, 2022 को मैंगलोर के सूरतकल इलाके में मोहम्मद फाजिल की दिनदहाड़े हत्या कर दी गई. इस घटना के दो दिन पहले 26 जुलाई को दक्षिण कन्नड़ा जिले में स्थित बेल्लारे गांव में युवा भाजपा कार्यकर्ता प्रवीण नेट्टारू की हत्या हुई थी. सूरतकल और बेल्लारे के बीच लगभग नब्बे किलोमीटर की दूरी है. दोनों मृतकों का आपस में कोई संबंध नहीं था, दोनों घटनाओं को अंजाम देने वाले भी आपस में किसी तरह से जुड़े नहीं थे. लेकिन फिर भी इन दोनों हत्याओं का एक सूत्र आपस में जुड़ा हुआ था. फाजिल की हत्या प्रवीण की हत्या का बदला लेने के लिए की गई थी. हत्यारे हिंदू जागरण वेदिके से संबंधित थे.
मोहम्मद फाजिल की हत्या जिन युवकों ने की, उनका भी प्रवीण नेट्टारू से कोई संबंध नहीं था लेकिन उन्होंने एक हत्या का हिसाब बराबर करने के लिए दूसरी हत्या की.
बता दें कि इससे पहले 10 सितंबर 2009 को मोहम्मद आसिफ और मोहम्मद मुस्तफा ने अपनी जान बचाने के लिए मैंगलोर से होकर बहने वाली नेत्रावती नदी में छंलांग लगा दी थी. फिर भी दोनों अपनी जान नहीं बचा पाए. इनको गौरक्षकों की एक भीड़ ने पुलिस के साथ मिलकर घेर लिया था. नेत्रावती नदी पर बने एक पुल पर इनको पकड़ कर भीड़ पीटने लगी. बचने के लिए उन्होंने नदी में छलांग लगा दी, फिर दोनों की लाश मिली.
यह घटना उत्तर भारतीयों को चौंका सकती है. लेकिन आज हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान में लगभग इसी डिजाइन के तहत गौरक्षा की आड़ में कुछ असमाजिक लोग पुलिस के साथ मिलकर हिंसा और उगाही कर रहे है. कर्नाटका में यह मॉडल डेढ़ दशक पुराना है. इस मॉडल के कुछ चुनिंदा औजार हैं- भय, असुरक्षा, धार्मिकता और सांप्रदायिकता.
समय के साथ यहां बड़ी संख्या में हिंसक, कट्टर हिंदूवादी संगठनों का विस्तार हुआ है. इनकी दो कैटेगरी है. एक वो जो भाजपा और आरएसएस से सीधे संबंधित रहते हुए काम करते हैं, मसलन विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल.
दूसरी तरफ, प्रमोद मुथालिक की श्री राम सेने, हिंदू जागरण वेदिके, हिंदू जन जागृति समिति जैसे कई और उग्र संगठन हैं जिनके कामकाज का तरीका गैरकानूनी, हिंसक और मनमाना रहता है. हिंदू जन जागृति समिति के ऊपर तो गौरी लंकेश, गोविंद पानसारे, एमएम कलबुर्गी की हत्या करने का आरोप भी है. ये कट्टरपंथी संगठन प्रासंगिक बने रहने और आगे बढ़ते रहने के लिए एक ही फार्मूला इस्तेमाल करते हैं- डर, भय, असुरक्षा और दूसरे धर्मों के खिलाफ बयानबाजी.
आज कोस्टल कर्नाटक में हिंदूवादी कट्टरता और हिंसा का जो रूप दिख रहा है वह इसकी शुरुआत से बहुत अलग रूप ले चुका है. यह आर्थिक कारणों से शुरू हुआ था. लेकिन अब इसमें अनगिनत लोगों के हित जुड़ गए हैं, तमाम तरह के राजनीतिक पक्ष शामिल हो गए हैं. अब यह एक ऐसी भट्टी में तब्दील हो चुका है जिसमें अलग से ईंधन डालने की जरूरत नहीं है. यह उस स्वत: स्फूर्त मोड में पहुंच गया है, जहां लोग खुद ही हर घटना का प्रतिकार या समर्थन करने के लिए हथियार उठा लेते हैं. प्रवीण नेट्टारू और मोहम्मद फाजिल की हत्या इसका सबसे दुखद लेकिन सबसे सटीक उदाहरण है.
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