जगदीप धनखड़ का सियासी सफर: किठाना गांव से रायसीना रोड तक

पहले आरएसएस विरोधी नेता फिर हिंदुत्व के मार्गदर्शक और अब राज्यसभा के सभापति, एक ऐसे वकील की दास्तां, जिसे अजातशत्रु कहा जाता है.

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5 जनवरी 1995 को कांग्रेस के एक विधायक राजस्थान विधानसभा में बोलने के लिए खड़े हुए. उन्होंने भारत की उस नई "राजनैतिक भावना" की प्रशंसा की जिसने बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की "कट्टरता" को खारिज कर दिया.

सदन की ऊंची-ऊंची दीवारों के बीच भी छह फुट लंबे कद वाले इस शख्स के शब्दों की गूंज साफ सुनाई दे रही थी.  

उन्होंने आरएसएस को इंगित करते हुए कहा, "माननीय स्पीकर, क्या कोई ऐसी व्यवस्था या संगठन लोकतांत्रिक हो सकता है जहां चुनाव ही न होते हों?" "क्या एक संसदीय लोकतंत्र में ऐसे किसी संगठन के लिए कोई जगह हो सकती है?"

सात साल बाद यही फायरब्रांड नेता और वकील उसी संगठन के कानूनी सेल के सदस्य बन गए जिसे वे पहले खारिज कर चुके थे. उन्होंने हिंदू पक्षकारों को रामजन्म भूमि मामले में कानूनी सलाह दी और बीजेपी व आरएसएस के सदस्यों पर चल रहे आतंकवाद से जुड़े मामलों में उनके वकीलों का मार्गदर्शन भी किया. बतौर बीजेपी सदस्य 2022 में आकर वे भारत के 14वें उपराष्ट्रपति बने. यह कुछ ऐसा था मानो 20 सालों के लंबे वनवास के बाद राजनीति में एक अपूर्व व्यक्ति बनकर उभरना.

जगदीप धनखड़ अब इसे अपनी "जिंदगी की सबसे बड़ी उपलब्धि" बताते हैं.

भारत के उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति के रूप में वो अपने अब तक के कार्यकाल में सदन के भीतर और बाहर दोनों ही जगह काफी सुर्खियां बटोर चुके हैं. उनकी चुटकियां इंस्टाग्राम की रील्स का हिस्सा हैं. यहां तक कि उन्होंने न्यायपालिका की बढ़ती दखलंदाजी को चुनौती दी, राहुल गांधी की निंदा की और बहसों के दौरान संसद द्वारा विपक्ष के माइक को बंद किए जाने जैसे आरोपों को खारिज किया. बिल्कुल हाल ही में उन्होंने अपने निजी स्टाफ के सदस्यों को संसदीय समिति का सदस्य नियुक्त कर दिया- विपक्ष के नेताओं ने इस कदम की त्वरित रूप से आलोचना की.

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