लोगों को अमेरिका भेजने वाले एजेंटों का जाल और काम का तरीका

गुजरात से अमेरिका भेजने का एक जटिल सिस्टम है, जिसमें हर स्तर पर धोखाधड़ी और गड़बड़ियां होती हैं. पासपोर्ट-वीजा से लेकर एयरपोर्ट की सुरक्षा जांच तक.

WrittenBy:बसंत कुमार
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.इस सीरीज के पहले पार्ट में हमने जाना कि कैसे गुजरात की एक बड़ी आबादी किसी भी कीमत पर अमेरिका जाने को तैयार है. इन्हें भेजने के लिए गुजरात के शहरों और गांवों में पूरा व्यवस्थित नेटवर्क काम करता है. इसमें हर स्तर पर धोखाधड़ी और गड़बडियां की जाती हैं. 

शुरुआत के सालों में गुजरात के लोग नाटक मंडली या फिल्मी क्रू के सदस्य के तौर पर अवैध तरीके से अमेरिका जाते थे. तब इनके पास विजिटर वीजा होता था. एजेंट ही क्रू के लोगों से सब चीजें तय करते थे. ये लोग वहां जाकर गायब हो जाते थे. फिल्म या नाटक मंडली का प्रमुख, वहां की अथॉरिटी को सूचना दे देता था कि उसके साथ आए कुछ लोग गायब हो गए हैं. मंडली लापता हुए लोगों का नाम और पहचान आदि देकर वापस लौट आती थी. उस समय इस यात्रा में करीब आठ से नौ लाख रुपए खर्च होते थे. 

धीरे-धीरे अमेरिकी एजेंसियों ने इस तरीके को भांप लिया. उन्होंने सख्ती बरतना शुरू कर दिया. नतीजतन यह रास्ता बंद हो गया. इसके बाद एजेंटों ने दूसरे रास्ते खोज निकाले. यह रास्ता कनाडा, यूरोप और लंदन होकर अमेरिका जाने का है. आज एजेंट यहां बेहद मज़बूत हो चुके हैं. वे करोड़ों में कमा रहे हैं. उन्हें राजनीतिक संरक्षण भी प्राप्त है.

कैसे जाते हैं?

जिसे अमेरिका जाना होता है, उसे आम बोलचाल की भाषा में ‘पैसेंजर’ कहा जाता है. ज्यादातर मामलों में पैसेंजर खुद ही एजेंट से संपर्क करते हैं. इस एजेंट को लोकल एजेंट या माइक्रो एजेंट कहा जाता है. ये ज्यादातर गांव या आसपास के लोग ही होते हैं. इन्हें एक पैसेंजर लाने पर तीन से चार लाख रुपए मिलते हैं. 

लोकल एजेंट, पैसेंजर को लेकर ‘सब एजेंट’ के पास पहुंचता है. यहां सफर का रेट तय होता है. किसी एक व्यक्ति को जाना हो तो 40 से 50 लाख खर्च आता है. अगर परिवार (पति पत्नी और बच्चे) के साथ जाना हो तो यह राशि एक करोड़, 30 लाख या उससे ज्यादा भी होती है. रेट तय होने के बाद पैसेंजर चार से पांच लाख रुपए एजेंट को भारत में रहते हुए दे देते हैं. लेकिन बाकी हिस्सा तभी देना होता है जब वे अमेरिका पहुंच जाएं. 

इसके बाद ‘फाइनेंसर’ की भूमिका शुरू होती है. फाइनेंसर, गांव का या परिवार का शख्स ही होता है. इनकी जिम्मेदारी पैसे देने की होती है. जब ‘पैसेंजर’ अमेरिका पहुंच जाते हैं तब ये फाइनेंसर बाकी पैसा एजेंट को देता है. यह एक तरह से जमानतदार होता है. 

यहां से मुख्य एजेंट की एंट्री होती है. पैसेंजर को लेकर मुख्य एजेंट के पास जाते हैं. कुछ मुख्य एजेंट अहमदाबाद में और कुछ दिल्ली में रहते हैं. यह कभी भी सशरीर पैसेंजर से नहीं मिलता है. उसके यहां काम करने वाले ही ज्यादातर फाइनेंसर से डील करते हैं. इसके बाद फाइनेंसर की भूमिका कुछ दिनों के लिए खत्म हो जाती है.

मुख्य एजेंट पासपोर्ट और वीजा के लिए नकली दस्तावेज बनवाते हैं. पासपोर्ट के लिए आधार, पैन, शादी के कागजात, शिक्षा प्रमाण पत्र सब कुछ बनता है. कभी फर्जी तो कभी वैध. इसमें पासपोर्ट दफ्तर और स्थानीय पुलिस की भूमिका भी संदेह के दायरे में आती है. 

अहमदाबाद पासपोर्ट ऑफिस के अधिकारी रेन मिश्रा बताते हैं, ‘‘पासपोर्ट के लिए हमें जो कागजात दिए जाते हैं उसकी हम जांच तो नहीं करते हैं. हम बस यह देखते हैं कि जो जरूरी डाक्यूमेंट चाहिए वो सामने वाले ने दिया है या नहीं. अगर वो दिया होता हो तो हम प्रक्रिया को आगे बढ़ा देते हैं.’’

पासपोर्ट बनने के दौरान पुलिस वेरिफिकेशन एक जरूरी प्रक्रिया है. वेरिफिकेशन के लिए पुलिस समान्यतः पासपोर्ट के आवेदनकर्ता से मिलती है और उसके आसपास के लोगों से पूछताछ करती है. यहां जो आसपास के लोग होते हैं उन सबको पहले से ही सिखा दिया जाता है कि क्या बोलना है. अगर नहीं सिखाया हो तो लोग इतने चालाक हैं कि पुलिस अगर उनसे पूछताछ करती है तो वो पहले पासपोर्ट वाले शख्स को फोन कर लेते हैं कि क्या बताना है. 

एक महीने के भीतर नकली दस्तावेज के जरिए पासपोर्ट तैयार हो जाता है. इसके बाद बारी आती है वीजा की. एजेंट कनाडा, मैक्सिको, इस्तांबुल, लंदन आदि का विजिटर वीजा हासिल करते हैं. क्राइम ब्रांच के अधिकारियों की मानें तो आजकल सबसे ज्यादा कनाडा, तुर्की और मैक्सिको के रूट से लोग अमेरिका जा रहे हैं.

स्टेट मॉनटरिंग सेल (एसएमसी) के सीनियर अधिकारी केटी कमरिया न्यूज़लॉन्ड्री को बताते हैं, ‘‘विजिटर वीजा, समान्यतया उसे ही मिलता जिसके पास अकाउंट में कुछ पैसे हों. जिसका कोई बिजनेस हो. ऐसे में एजेंट इनका बैंक स्टेटमेंट तैयार करते हैं. इसमें ट्रांजैक्शन दिखाया जाता है. यह सब फर्जी होता है. कई बार फेक कंपनी भी दिखाई जाती है. इसके लिए जीएसटी नंबर लिया जाता है. सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम (एमएसएमई) का नंबर तक लिया जाता है.’’

उत्तर प्रदेश के गोंडा के रहने वाले बृज यादव के मामले में एसएमसी ने जांच की तो पाया कि उसे राजकोट की एक कंपनी का मालिक बनाया गया था. उसका यूनियन बैंक का 10 लाख का फर्जी बैंक स्टेटमेंट तैयार किया गया था. यादव मुंबई से इस्तांबुल गए, वहां से मैक्सिको और मैक्सिको से अमेरिका में जाने के दौरान उनकी मौत हो गई. 

यादव को अवैध रूप से अमेरिका भेजने के मामले में एसएमसी ने दो आरोपियों को गिरफ्तार किया है. वहीं पांच लोगों की तलाश जारी है.

वीजा हासिल करने के बाद इन लोगों की ट्रेनिंग होती है. ऐसे काम अहमदाबाद और दिल्ली में होते हैं. दरअसल जाने वालों में कुछ लोग ग्रामीण होते हैं. उन्होंने कभी हवाई जहाज में सफर नहीं किया होता, उन्हें अंग्रेजी बोलने और समझने में परेशानी होती है. न ही उन्हें एयरपोर्ट की ज्यादा जानकारी होती है. एजेंट एक साथ 10-15 लोगों को भेजते हैं. ऐसे में इन्हें ट्रेंड करने के लिए कैंप भी लगाया जाता है. यह कैंप फ्लाइट में बैठने से दो-तीन दिन पहले होता है.

कलोल के रहने वाले हरकिशन पटेल को दिल्ली के करोल बाग के एक होटल में ट्रेनिंग दी गई थी. पटेल बताते हैं, ‘‘जाने से पहले तक हमें पता नहीं होता कि किस रूट से जाना है. वे होटल में मिलकर बताते हैं कि एयरपोर्ट पर क्या करना है. किस सवाल का क्या जवाब देना है. क्या पहनना है.’’  

एजेंट कई बार किसी और के टिकट पर किसी और को भी भेज देते हैं. पटेल ऐसे ही गए थे. वे बताते हैं, ‘‘एजेंट ने मेरी सेटिंग कराई थी. मैं अहमदाबाद से दिल्ली पहुंचा. दिल्ली एयरपोर्ट पर एक सीनियर सिटीजन का बोर्डिंग पास लेकर मैं कनाडा की फ्लाइट में बैठ गया. सीनियर सिटीजन का सब कुछ ओरिजिनल था. मेरे साथ और तीन लोग थे. हम जहाज में बैठे थे तभी पुलिस वाले आ गए. मैं पीछे से उतर गया. इसी बीच मेरे एजेंट ने अहमदाबाद का टिकट कराकर मुझे मैसेज दिया. उसे हमसे पहले पता चल गया था कि हम फंस रहे हैं. मैं वहां से निकल गया. दरअसल एजेंट की सेटिंग खराब हो गई थी. सच कहें तो मेरा भाग्य ही खराब है. मैं कई बार कोशिश कर चुका हूं.’’

हरकिशन की कहानी बताती है कि इन एजेंट्स की एयरपोर्ट पर भी मज़बूत पकड़ है. गांधीनगर पुलिस मुख्यालय के एक सीनियर अधिकारी जो इन मामलों को बेहद करीब से देख रहे हैं, न्यूज़लान्ड्री को बताते हैं, ‘‘एयरपोर्ट पर जांच अधिकारियों को भी एजेंट अपने पक्ष में किए हुए हैं. इसके लिए उन्हें मोटी राशि दी जाती है. इसे पुशिंग चार्ज कहते हैं. दिल्ली और मुंबई एयरपोर्ट पर भी एजेंट पुशिंग चार्ज देते हैं.’’

कनाडा के लिए तो डायरेक्ट फ्लाइट है, लेकिन मैक्सिको जाने वाले तुर्की के रास्ते जाते हैं. तुर्की होकर जाने वाले यहां कुछ दिन रुकते हैं. ऐसा एहसास कराते हैं कि जैसे घूमने ही आए हैं. यहां एक भारतीय एजेंट पुनीत महाजन सक्रिय होता है. इसके अलावा कई अन्य एजेंट हैं. जिसमें से ज्यादातर पंजाब के रहने वाले हैं. यहां से ये मैक्सिको घूमने जाने का वीजा लेते हैं. तुर्की एयरपोर्ट पर भी पुशिंग चार्ज देना होता है. एक व्यक्ति पर 1.50 लाख भारतीय रुपए तक पुशिंग चार्ज दिया जाता है. 

गुजरात पुलिस के अधिकारी बताते हैं, ‘‘मैक्सिको एयरपोर्ट पर भी यह सिलसिला जारी रहता है. यहां के अधिकारियों को पता होता है कि ये कबूतरबाज हैं. यहां इमिग्रेशन अधिकारी को प्रत्येक व्यक्ति के हिसाब से 50 हज़ार से 1.50 लाख रुपए तक दिए जाते हैं. इसे पुलिंग चार्ज कहते हैं.’’

‘‘मैक्सिको पहुंचने के बाद 48 घंटे में बॉर्डर पार करना होता है. यह सब भी एजेंट ही तय करते हैं. जो लोग बॉर्डर पार करवाने जाते हैं, उन्हें ‘मैकाले’ कहते हैं. कई बार ये लोगों को लूट भी लेते हैं. मैक्सिको बॉर्डर पर अमेरिकी सरकार ने ‘ट्रम्प वॉल’ का निर्माण कराया है. अवैध रूप से लोगों को पार कराने के लिए इन लोगों ने ‘ट्रम्प वॉल’ को भी बीच से काट दिया है,’’ अधिकारी आगे कहते हैं.

कई बार ऐसे होता है कि पैसेंजर कुछ कारणों से इस्तांबुल, मैक्सिको से आगे नहीं जा पाते. ऐसे में उन्हें वापस आना पड़ता है. इस स्थिति में उन्हें एजेंट को एक रुपया भी नहीं देने होता है. हालांकि उनकी सेटिंग इतनी मज़बूत होती है कि ऐसे मौके कम ही आते हैं.

किसी भी रूट से अमेरिका पहुंचने के बाद पैसेंजर को अगर सुरक्षाकर्मी न मिले तो अपने लोगों के पास पहुंच जाना होता है. ज़्यादातर तो एजेंट पहले से वहां उनके लिए काम तय कर भेजते हैं. अगर किसी को जाने से पहले काम नहीं मिला हो तो वे वहां जाकर किसी मंदिर या गुरूद्वारे में ठहर जाते हैं. वहां कुछ दिन वे रुकते हैं तो उन्हें काम मिल जाता है.

वहीं अगर, अमेरिकी पुलिस दिख जाती है तो इन्हें बताया गया होता है कि वहां हाथ ऊपर कर खुद की गिरफ्तारी दे दें. यहां से पुलिस इन्हें डिटेंशन कैंप में लेकर जाती है. जहां पहले इन्हें ‘एलियन नंबर’ मिलता है. वहां ये अमेरिकी अधिकारियों के सामने कहते हैं कि मुझे मेरे देश में खतरा है इसलिए मैं यहां आया हूं. ऐसा कह ये रिफ्यूजी बनने की कोशिश करते हैं.

कुछ दिन ये लोग डिटेंशन सेंटर में रहते हैं, तभी इनके वकील आ जाते हैं. ये वकील, एजेंट या भारत से गए अवैध लोगों के अमेरिका में जानने वाले भेजते हैं. वकील इन्हें असाइलम दिला देते हैं. यहां इन्हें एक जीपीएस लगा कड़ा अमेरिकी पुलिस पहना देती है ताकि ट्रैक किया जा सके. यह कड़ा कुछ दिनों बाद हटा दिया जाता है.  

मैक्सिको रूट की तुलना में कनाडा रूट ज्यादा खतरनाक है. जगदीश भाई पटेल, उनकी पत्नी और बच्चों की मौत के मामले में गिरफ्तार हुए स्टीव शंड के खिलाफ अमेरिकी डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में जो एफिडेविट जमा हुआ था वो बताता है कि किस तरह बदहाल स्थिति में लोग कनाडा से अमेरिका में प्रवेश करते हैं.

एफिडेविट में दी गई जानकारी से यह पता चलता है कि जगदीश पटेल अपने परिवार के साथ जब अमेरिका अवैध रूप से जा रहे थे तब सात अन्य लोग भी उनके साथ थे. जिसमें एक लड़की भी थी. ये सभी गुजरात के रहने वाले थे. पुलिस ने लड़की समेत बाकियों को गिरफ्तार कर लिया था. लड़की और एक अन्य युवक को चोट लगी थी. इन्हें इलाज के लिए अस्पताल ले जाया गया था. जहां से लड़की भाग गई.  

एफिडेविट के मुताबिक स्टीव ने 11 भारतीयों को छोड़ने के लिए 15 सीटर गाड़ी किराए पर ली थी. उसे जब अमेरिकन बॉर्डर पेट्रोल एजेंट (बीपीए) ने पकड़ा तब उसके पास किसी और का ड्राइविंग लाइसेंस था. जब बीपीए ने शैंड को 19 जनवरी, 2022 को अमेरिका-कनाडा बॉर्डर पर गिरफ्तार किया तब उसके पास दो भारतीय मौजूद थे जिसे वो अवैध रूप से अमेरिका छोड़ रहा था. उसी समय पांच और विदेशी नागरिकों को अमेरिका में अवैध रूप से प्रवेश करते हुए गिरफ्तार किया गया था. 

स्टीव के साथ जो दो भारतीय गिरफ्तार हुए थे, उसमें से एक वीडी ने पुलिस को बताया कि वो अपने साथ चार लोगों के एक परिवार का भी सामान लेकर चल रहा है. वे बीते 11.5 घंटे से लगातार चल रहे हैं. वीडी ने बताया कि चार लोगों का परिवार रात में सफर के दौरान उनसे बिछड़ गया था. इसके बाद कनाडा की पुलिस ने जानकारी दी कि चार लोगों के शव बर्फ से बरामद हुए हैं. यह बॉडीज़ अमेरिका-कनाडा के इंटरनेशनल बॉर्डर के पास मिली थी. ये शव जगदीश भाई पटेल, उनकी पत्नी और बच्चों के थे. पटेल का शव उनके घर डींगूचा नहीं आया.

क्राइम ब्रांच के अधिकारी दिलीप ठाकोर, जो जगदीश भाई पटेल की मौत के मामले में शिकायतकर्ता हैं. उन्होंने ही इस मामले में एजेंट भावेश पटेल और योगेश पटेल को गिरफ्तार किया है. वो न्यूज़लॉन्ड्री को बताते हैं, ‘‘इसके बाद एजेंट्स के बीच पैसे का बंटवारा होता है. जो लोकल एजेंट होता है, उसे तीन से पांच लाख रुपए मिलते हैं. बाकी एयरपोर्ट्स या दूसरी जगहों पर खर्च होने के बाद भी मुख्य एजेंट के पास 50 प्रतिशत राशि बच जाती है. आज कल यहां एक व्यक्ति को भेजने के 50 से 60 लाख रुपए लगते हैं वहीं किसी परिवार जिसमें तीन से चार लोग होते हैं, उन्हें भेजने के 1 करोड़ 30 लाख तक खर्च होते हैं. इस तरह देखें तो एक शख्स को अगर एजेंट भेजते हैं तो उन्हें 20 से 30 लाख का मुनाफा होता है.’’

पत्रकार भार्गव पारीक बताते हैं, ‘‘अभी भारत से दो लाइन चल रही हैं. एक दिल्ली से और एक मुंबई से. दिल्ली की लाइन में बिट्टू भाई करके एक बड़ा एजेंट है. जो पंजाब का रहने वाला है और कनाडा में रह रहा है. दूसरा अहमदाबाद का अशोक चौधरी है. अशोक और बिट्टू मिलकर काम करते हैं. ये दिल्ली से कनाडा ले जाते हैं. कनाडा से बॉर्डर पार करा देते हैं.’’  

‘बंधुआ मज़दूर बन जाते हैं’ 

गुजरात के लोग बेहतर जिंदगी की तलाश में अमेरिका जाते हैं, लेकिन वहां कई कुछ सालों तक ‘बंधुआ मज़दूर’ बन जाते हैं. दरअसल गुजरात की एक बड़ी आबादी वहां कई तरह के बिजनेस करती है. इसमें एनआरआई और अवैध रूप से गए लोग भी हैं. वे ‘फाइनेंसर’ का काम भी करते हैं. जब ये लोग वहां पहुंचते हैं तो उन्हें अपनी दुकान या दूसरे व्यवसाय में काम पर रखते हैं. 

अमेरिका में वैध रूप से रहकर लौटे रजनीश देसाई न्यूज़लॉन्ड्री को बताते हैं, ‘‘वहां के जो नौजवान हैं, वो मिनिमम वेजेज (न्यूनतम पारिश्रमिक) पर ही काम करते हैं. वहीं अवैध रूप से अमेरिका गए गुजरातियों को उनके मुकाबले कम राशि दी जाती है. तीन से चार साल में ये एजेंट को दिए गए पैसे चुकाते हैं. इस दौरान वे कहीं और काम नहीं कर सकते. कई बार ये मालिक इन लोगों के रहने का भी इंतज़ाम करते है ताकि कहीं भाग ना जाएं. पैसे चुकाने के बाद ये किसी और जगह काम करने लगते हैं.’’

पिछले दिनों स्वामीनारायण मंदिर पर भी आरोप लगा था कि वे भारतीय मज़दूरों को अमेरिकी सरकार द्वारा तय न्यूनतम वेतन तक नहीं देते हैं. तब अमेरिकी एजेंसियों ने निर्माण साइट से 90 मजदूरों को हटा दिया था. इस मामले में दर्ज मुकदमे में छह श्रमिकों ने आरोप लगाया था कि उन्हें प्रति घंटा न्यूनतम वेतन का केवल 10% भुगतान किया गया था. जिस कारण वो बदहाल स्थिति में रहने को मज़बूर हुए.

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आईईएलटीएस भी बना अवैध रूप से जाने का माध्यम    

देश से बाहर पढ़ने जाने के लिए छात्र इंटरनेशनल इंग्लिश लैंग्वेज टेस्टिंग सिस्टम (आईईएलटीएस) का टेस्ट देते हैं. कलोल या दूसरे शहरों में जगह-जगह आपको आईईएलटीएस की तैयारी को लेकर होर्डिंग्स और दफ्तर बने नजर आते हैं. आईईएलटीएस भी अवैध रूप से अमेरिका जाने का माध्यम बन गया है. 

यह मामला तब सामने आया जब अमेरिका में अवैध रूप से प्रवेश करते हुए पुलिस ने चार लड़कों को गिरफ्तार किया. उन्हें कोर्ट ले जाया गया. वहां सामने आया कि इन्हें आईईएलटीएस में 10 में से सात बैंड हासिल हुए हैं. सात बैंड मतलब आवेदक अंग्रेजी लिखने और बोलने में प्रवीण है. हालांकि जब जज ने इन चारों से बात की तो वे अंग्रेजी भाषा लिखना, बोलना तो दूर पढ़ भी नहीं पा रहे थे. 

अमेरिकन एम्बेसी ने यह सूचना भारतीय एम्बेसी को दी. जिसके बाद मुंबई से मेहसाणा जिले के एसएसपी को इस मामले की जांच के लिए पत्र आया. दरअसल ये चारों छात्र मेहसाणा के ही थे. जब जांच शुरू हुई तो सामने आया कि आईईएलटीएस में बड़े स्तर पर फ्रॉड चल रहा था. इनका पेपर किसी और ने दिया था. यह सब अमित चौधरी नाम के एजेंट ने किया. इस मामले में 4 सितंबर, 2022 को मामला दर्ज हुआ. 

इस जांच से जुड़े एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी नाम नहीं छापने की शर्त पर न्यूज़लॉन्ड्री को बताते हैं, ‘‘सबसे पहले हमने पता किया कि इन छात्रों ने पेपर कहां दिया था. इनका एग्जाम सेंटर सूरत के पास नौसारी के एक होटल में 25 सितंबर, 2021 को था. फिर हमने पता किया कि एग्जाम कौन करा रहा था और उस दौरान उसमें परीक्षक कौन था. इस दौरान हमें सोर्स के जरिए एक शख्स अमित चौधरी के बारे में पता चला. हमने जांच में पाया कि 25 सितंबर को उसकी लोकेशन नौसारी में ही थी.’’

अधिकारी आगे कहते हैं, ‘‘हमने चौधरी का सीडीआर चेक किया तो पता चला कि वो आईईएलटीएस का एग्जाम कराने वाली संस्था प्लानेट ग्रुप के कई कर्मचारियों के संपर्क में था. ये एग्जाम प्राइवेट संस्था कराती है. इसमें सरकार की कोई भूमिका नहीं होती है. इसके बाद वे इस नतीजे पर पहुंचे कि कुछ न कुछ गड़बड़ है. तफ्तीश तेज हुई तो पता चला कि एग्जाम तो ये छात्र ही दे रहे थे. ये छात्र पेंसिल से एग्जाम देते थे. एग्जाम खत्म होने के बाद ये उतर पुस्तिका ही बदलवा देते थे. एग्जाम लिखने वाले सेंटर के बाहर मौजूद थे. ये इंग्लिश में एक्सपर्ट होते थे.’’

‘‘एफआईआर करने के बाद तीन परीक्षकों को गिरफ्तार कर लिया गया. हमने अमित के 11 सीडीआर का एनालिसिस किया. हमें कुछेक नंबर मिले जो प्लानेट ग्रुप के कर्मचारियों से अलग थे. हमने उन पर फोकस किया तो उनकी लोकेशन भी नौसारी में मिली. ये वो लोग थे, जो कॉपी लिखते थे. हमारी जांच में कुल नौ कॉपी लेखक सामने आए. इसमें से छह केरल के रहने वाले थे, एक लड़की राजस्थान की रहने वाली थी और दो लड़के यूपी के रहने वाले थे. इनको एक पेपर लिखने के 30 से 35 हज़ार रुपए मिलते थे. जांच में सामने आया कि 19 युवा ऐसे हैं, जिनका पेपर किसी और ने दिया था और वे बाहर पढ़ने जा चुके थे.’’ अधिकारी बताते हैं.

इस मामले में कुल छह लोग गिरफ्तार हुए थे. इसमें कुल 43 लोगों को आरोपी बनाया गया. इसमें लगभग सबको जमानत मिल गई है. अमित चौधरी को अभी तक गिरफ्तार नहीं किया जा सका है.

मेहसाणा के एसएसपी अचल त्यागी इस मामले पर कहते हैं, ‘‘इस मामले की जांच के लिए हमने एसआईटी का गठन किया है. हम जल्द ही नतीजे पर पहुंचेगे.’’ 

यह मामला अमेरिकी कोर्ट और एंबेसी के कारण सामने आ गया. उत्तर गुजरात के गांव-गांव में युवा आईईएलटीएस की तैयारी कर रहे हैं. इसका पेपर पास कर कनाडा पढ़ने जाते हैं. ऐसे में और जगहों पर भी फ्रॉड होने की संभावना बढ़ जाती है.  

इस शृंख़ला का पहला भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.

इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.

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