सुप्रीम कोर्ट ने 'मीडिया वन' न्यूज़ चैनल के टेलीकास्ट पर लगा प्रतिबंध हटाया

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकार 'राष्ट्रीय सुरक्षा की दलील देकर नागरिकों को उनके अधिकारों से वंचित कर रही है’.

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सुप्रीम कोर्ट ने आज मलयालम समाचार चैनल मीडिया वन के प्रसारण लाइसेंस को नवीनीकृत (रीन्यू) नहीं करने के केंद्र सरकार के निर्णय को खारिज कर दिया. भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति हेमा कोहली की खंडपीठ ने अपने फैसले में कहा कि सीलबंद लिफाफे निष्पक्ष और उचित कार्यवाही के अधिकार पर अंकुश लगाते हैं, जिससे अपीलकर्ता अंधेरे में रह जाते हैं.

बार एंड बेंच के अनुसार, "राष्ट्रीय सुरक्षा" की चिंता की वजह से सरकार ने चैनल के लाइसेंस को रीन्यू करने से इनकार कर दिया था लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने आज कहा कि "राष्ट्रीय सुरक्षा के दावे हवा-हवाई बातों के आधार पर नहीं किए जा सकते". 

मीडिया वन का प्रसारण जनवरी 2022 में तब बंद हो गया जब सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने लाइसेंस को नवीनीकृत करने से मना कर दिया था. गृह मंत्रालय ने भी "राष्ट्रीय सुरक्षा" का हवाला देते हुए अपलिंकिंग की अनुमति को नवीनीकृत करने से मना कर दिया था. पिछले साल मार्च महीने में केरल उच्च न्यायालय ने प्रसारण प्रतिबंध को बरकरार रखते हुए मीडिया वन की अपील को खारिज कर दिया था. उसके बाद अगले महीने में सुप्रीम कोर्ट ने प्रसारण की अनुमति देते हुए एक अंतरिम आदेश पारित किया था. 

उल्लेखनीय है कि जून में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि वह प्रतिबंध के कारणों का खुलासा नहीं कर सकती, लेकिन संबंधित फाइलों को "सीलबंद लिफाफे" में उपलब्ध कराएगी. 

बार एंड बेंच के अनुसार, पीठ ने यह भी कहा कि सरकार "राष्ट्रीय सुरक्षा की दलील का उपयोग कर नागरिकों को उनके अधिकारों से वंचित कर रही है." जो "कानून के शासन के खिलाफ" है. 

गृह मंत्रालय ने कथित तौर पर दावा किया था कि मीडिया वन "राष्ट्र-विरोधी" चैनल था. जिसके "कार्यक्रमों और टिप्पणियों" में  नागरिकता संशोधन अधिनियम, राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर, गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम और अन्य पर बातें हुई थीं. पीठ ने कहा कि 'मीडिया के आलोचनात्मक विचारों को सत्ता विरोधी नहीं कहा जा सकता' है.  

इस बात पर ध्यान दिया जाना चाहिए कि मार्च 2020 में मीडिया वन को दिल्ली दंगों पर अपनी रिपोर्ट में "दिल्ली पुलिस और आरएसएस के प्रति आलोचनात्मक" टिप्पणी करने के कारण 48 घंटों के लिए टेलीकास्ट को रोकना पड़ा था. 

ऐसा पहली बार नहीं हुआ जब सुप्रीम कोर्ट ने "सीलबंद लिफाफे" के प्रयोग के प्रति केंद्र सरकार के झुकाव की आलोचना की है. 20 मार्च, 2023 को, मुख्य न्यायधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने सीलबंद कवर को "मूल रूप से न्यायिक प्रक्रिया के विपरीत" बताया था. लेकिन, क्या कारण है कि सीलबंद लिफाफे सरकार की पहली पसंद बनते जा रहे हैं? 

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