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एनएल चर्चा 260: ‘अमृतकाल’ में फरार अमृतपाल और राहुल गांधी पर ‘संकटकाल’

हिंदी पॉडकास्ट जहां हम हफ्ते भर के बवालों और सवालों पर चर्चा करते हैं.

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इस हफ्ते चर्चा में बातचीत के मुख्य विषय इंदौर में मंदिर की छत का ढह जाना, वड़ोदरा में रामनवमी पर हिंसा, राहुल गांधी को सरकारी बंगला खाली करने के आदेश, कर्नाटक के विधानसभा चुनावों की तारीखों का एलान, पीएम मोदी द्वारा विपक्ष पर प्रहार करते हुए दिया बयान, अरविंद केजरीवाल का पीएम मोदी पर निशाना साधना, माफ़िया अतीक अहमद को उम्रकैद की सजा, पुलिस द्वारा अमृतपाल सिंह को अभी तक गिरफ्तारी न कर पाना, बिल्क़िस बानो के मामले में सुप्रीम कोर्ट की गुजरात सरकार पर टिप्पणी आदि रहे.

बतौर मेहमान इस चर्चा में वरिष्ठ पत्रकार स्मिता शर्मा, आदित्य मेनन, और न्यूज़लॉन्ड्री के स्तंभकार आनंद वर्धन शामिल हुए. चर्चा का संचालन अतुल चौरसिया ने किया.

चर्चा की शुरुआत करते हुए अतुल, आदित्य से सवाल करते हुए कहते हैं, “अमृतपाल जिन परिस्थितियों में इस राजनीति में आया और उसके बाद जिस तरह से अभी तक सबको चमका देने में कामयाब रहा है, इन सबके बारे में और अमृतपाल की राजनीति के बारे में आपका क्या नजरिया है?

सवाल के जवाब में आदित्य कहते हैं, “अमृतपाल का उदय, पिछले एक साल में ही हुआ है. इससे पहले वह दुबई में था. दीप सिद्धू की मौत के बाद वह पंजाब आया और ‘वारिस पंजाब दे’ को टेक ओवर कर लिया. 

यह बात चौंकाने वाली है कि काफी समय से सिख सियासत में सक्रिय बड़े लोगों के होते हुए अमृतपाल को स्वीकार कर लिया गया है जबकि अमृतपाल ने कोई खास धार्मिक प्रशिक्षण भी नहीं लिया है. अमृतपाल ने पंजाब के कई मुद्दों को उठाया, ये मुद्दे ऐसे हैं, जिन्हें लेकर लोगों में गुस्सा है, जैसे ड्रग्स का मुद्दा है, बे-अदबी का मसला है. अलग-अलग समय में इन सभी मुद्दों पर आंदोलन होते रहे हैं. अमृतपाल ने नया यह किया कि इन सभी मुद्दों को एक जगह करके कह दिया कि सारे मुद्दे सिखों की नस्लकुशी की दिशा में जाते हैं और इस नरेटिव ने लोगों को आकर्षित भी किया.”

अमृतपाल के ही मुद्दे पर अपने विचार रखते हुए स्मिता कहती हैं, “पुलिस चेज़, बेहद हास्यास्पद है. लग रहा है जैसे आप टॉम एंड जेरी जैसा कोई शो देख रहे हैं. इस मामले में भगवंत मान की सरकार और पंजाब पुलिस की अच्छी-खासी बेइज़्ज़ती हो रही है.”

वे आगे कहती हैं, “ जहां तक ख़ालिस्तानी सोच की बात है, मैंने ज़मीन पर देखा है कि बहुत ज़्यादा लोगों के बीच यह उतनी गहरी नहीं है. लोगों के बीच 80 के दशक की यादें ताज़ा हैं. ज़ख्म भरे नहीं हैं, वह नहीं चाहेंगे कि एक दफा फिर इस तरह के आंदोलन को हवा दी जाए.” 

इसके अलावा राहुल गांधी की सदस्यता रद्द होने के मुद्दे पर भी विस्तार से बात हुई. सुनिए पूरी बातचीत- 

टाइमकोड्स

00:00:00 - 00:15:57  - हेडलाइंस व जरूरी सूचनाएं

00:15:58 - 00:53:41  - अमृतपाल सिंह और खालिस्तान की मांग  

00:33:35 - 01:02:20 - राहुल गांधी की सदस्यता रद्द और क्या है मानहानि का पैमाना 

01:02:23 - सलाह और सुझाव

पत्रकारों की राय क्या देखा, पढ़ा और सुना जाए

स्मिता शर्मा

सीमा सिरोही की किताब फ्रेंड्स विद बेनिफिट्स :  इंडिया यूएस स्टोरी 

फिल्म: भीड़ 

गौतम भाटिया का लेख : अ डिस्टर्बिंग एग्ज़ैम्पल ऑफ़ द नॉर्मलाइज़िंग ऑफ़ लॉफेयर

आदित्य मेनन 

अमनदीप संधू की किताब पंजाब 

फिल्म : पंजाब 1984 

आनंद वर्धन 

स्टैंडिंग कमिटी की रिपोर्ट फ्रेश वॉटर पर 

द इकोनॉमिस्ट का लेख : द ग्लोबल राइस क्राइसिस 

निर्मल वर्मा का उपन्यास : वे दिन 

अतुल चौरसिया

राजस्थान सरकार के राइट टू हेल्थ पर इंडियन एक्सप्रेस का लेख 

ऐमज़ॉन प्राइम पर सीरीज : गिल्टी माइंडस 

ट्रांसक्राइब - तस्नीम फातिमा 

प्रोड्यूसर - चंचल गुप्ता

एडिटिंग  - उमराव सिंह

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