बीबीसी पर आईटी सर्वेक्षण के बाद उनकी चिंताएं बढ़ी हैं. सरकारी अधिकारियों का कहना कि उन्हें 'विशेषाधिकारों' की मांग नहीं करनी चाहिए.
भारत में हर दूसरे विदेशी संवाददाता को अपनी आलोचनात्मक रिपोर्ट का जवाब देने के लिए नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा बुलाया जाता है. अगस्त 2019 के बाद से लगभग किसी को भी जम्मू-कश्मीर का दौरा करने और वहां स्वतंत्र रूप से रिपोर्ट करने की अनुमति नहीं दी गई है. और जो पत्रकार "नकारात्मक रिपोर्ट" लिखते हैं, उन्हें एक साल से भी कम समय के लिए वीजा दिया जाता है जिससे उनकी नौकरी खतरे में पड़ जाती है.
ये भारत में 2020, 2021 और 2022 में ऐसे पत्रकारों के बीच किए गए तीन आंतरिक सर्वेक्षणों के कुछ निष्कर्ष हैं, जो या तो विदेशी नागरिक हैं या भारत के कार्डधारक विदेशी नागरिक हैं. सर्वे के परिणाम भारत में उनके संघर्षों को रेखांकित करते हैं, विशेष रूप से ऐसे समय में जब मोदी सरकार का विदेशी प्रेस के साथ एक असहज संबंध है.
यह नरेंद्र मोदी पर बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री के बाद और भी बदतर हो गया है, जिसके बाद आयकर विभाग ने दिल्ली और मुंबई में बीबीसी के कार्यालयों में "सर्वेक्षण" किया.
जैसा कि एक यूरोपीय मीडिया हाउस के एक विदेशी संवाददाता ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, उन्होंने मोदी सरकार की आलोचनात्मक रिपोर्ट के लिए "भारी दबाव" झेला है. गुमनामी की शर्त पर उन्होंने कहा, "हमारे कर्मचारियों के लिए यहां बेहद तनावपूर्ण हो गया है. कोई संवेदनशील कहानी प्रकाशित होने के बाद हम असुरक्षित महसूस करते हैं."
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