'रात को नींद नहीं आती, चिंता रहती है': दिल्ली दंगों की विधवाओं को ससुराल वालों ने 'प्रताड़ित किया, छोड़ दिया'

2020 में हिंसा के दौरान लगभग 26 महिलाओं ने अपने पति खो दिए. वे आज भी अपने जीवन को फिर से बना रही हैं.

WrittenBy:सुमेधा मित्तल
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सायबा और इमराना में काफी समानताएं हैं. वे दोनों उम्र के 30वें दशक की शुरुआत में हैं और पूर्वोत्तर दिल्ली के मुस्तफाबाद में एक-दूसरे से पांच मिनट की दूरी पर रहती हैं. लेकिन फरवरी 2020 तक वे एक-दूसरे के लिए अजनबी थीं, जब दिल्ली दंगों के दौरान उन दोनों के पतियों की मृत्यु हो गई थी.

पर तीन साल बाद उनके संघर्षों ने उन्हें एक दूसरे के करीब ला दिया है. इमराना ने कहा, "जब भी हमें जरूरत होती है कि कोई हमें समझे, वह मेरे पास आती है और हम अपना मन खोल कर बात कहते हैं."

जब न्यूज़लॉन्ड्री ने सायबा से इंटरव्यू के लिए पूछा तो उन्होंने हमें इमराना के घर पर मिलने के लिए कहा. उन्होंने फोन पर कहा, "अपने ससुराल वालों के सामने मैं अपनी कहानी कहने से डरती हूं. क्या आप कृपया मुझे कहीं बाहर मिल सकती हैं?"

दिल्ली में सांप्रदायिक दंगों ने 53 लोगों की जान ली. लगभग 26 महिलाओं ने अपने पति और 60 बच्चों ने अपने पिता खो दिए. न्यूज़लॉन्ड्री ने इनमें से 10 महिलाओं से बात की, जिन्होंने अपने पति की मृत्यु के बाद दुर्व्यवहार या छोड़े जाने की एक सी कहानियां सुनाईं.

सायबा इन महिलाओं में से एक हैं. उनकी शादी आस मोहम्मद से हुई थी, जिनसे उनके तीन बच्चे हैं. 25 फरवरी 2020 की सुबह आस मोहम्मद रोज़ की तरह काम पर निकले थे, लेकिन वापस नहीं लौटे. 13 दिन बाद उनके परिवार को उसका शव गोकुलपुरी थाने में मिला.

न्यूज़लॉन्ड्री ने तीन साल पहले आस की मौत पर रिपोर्ट की थी. इस मामले में एफआईआर में कहा गया कि उन्हें "अज्ञात दंगाइयों" ने मार डाला, और फिर उनके शव को एक नाले में फेंक कर सबूत छिपाने की कोशिश की. सायबा ने बताया कि जिस भीड़ ने उनकी हत्या की, उसने कथित तौर पर उनकी सांप्रदाय जानने के लिए पहले उनकी पैंट खोली थी.

उस दिन इमराना के पति मुदस्सिर खान की भी मौत हुई थी. वह किसी रिश्तेदार के यहां से घर लौट रहे थे, तभी उन्हें गोली लग गई. वो अपने पीछे पत्नी और आठ बेटियां छोड़ गए हैं.

सायबा और इमराना को उम्मीद थी कि ज़िंदगी मुश्किल होगी - लेकिन तब भी वे हकीकत देख कर हैरान रह गए. उन्होंने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि ससुराल वाले, उनके लिए मददगार से दुश्मन बन गए हैं, उन्हें वित्तीय और संपत्ति के हक से बेदखल कर दिया गया है और उनका शोषण किया जा रहा है.

लेकिन इस बदलाव की वजह क्या है? सायबा और इमराना बताती हैं कि ऐसा इसलिए, क्योंकि उन्होंने अपने पति की मौत के मुआवजे को परिवार के सदस्यों के बीच नहीं बांटा. प्रत्येक विधवा को दिल्ली सरकार से 10 लाख रुपए मिले थे.

'वे हमें हमारे घर से बाहर धकेलना चाहते हैं'

सायबा के मामले में, वह अपने बच्चों के साथ ससुराल में रहती है. उन्होंने बताया, "इतने बड़े घर में उन्होंने हमें केवल एक कमरा दिया है. इतने छोटे से कमरे में चार लोगों के लिए एडजस्ट करना कितना मुश्किल है."

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सायबा
आस मोहम्मद

सरकारी मुआवजा मिलने के बाद, उसके पति के भाई और भाई की पत्नी ने मांग रखी कि यह राशि परिवार के बीच बांट दी जाए.

वे कहती हैं, “लेकिन तब मुझे और मेरे बच्चों को केवल दो लाख रुपए मिलते. मुझे वह पैसा क्यों बांटना चाहिए? यह मेरे बच्चे हैं, जिन्होंने अपने बाप को खो दिया." सायबा ने रकम का इस्तेमाल एक घर खरीदने के लिए किया, जिसके लिए उसे हर महीने 6,000 रुपए किराए के तौर पर मिलते हैं. वह घर पर सिलाई का काम करके भी लगभग 4,000 रुपए महीना कमाती हैं.

वे बताती हैं कि इतना बच्चों को खिलाने और पढ़ाने के लिए काफी नहीं है, इसलिए उसने अपने सबसे बड़े बेटे, 12 साल के मोहम्मद रिहान पर बेहतर जीवन की उम्मीदें लगा रखी हैं. वे कहती हैं, “वह बड़ा होकर डॉक्टर बनना चाहता है. उसके लिए मुझे उसे बेहतर शिक्षा देने की जरूरत है.”

इमराना अपने ससुर और देवर और उसके परिवार के साथ रहती है. उसकी आठ बेटियां हैं, जिनकी उम्र 3 से 18 वर्ष के बीच है. उसे जो 10 लाख रुपए मिले थे, वह उसके और मुदस्सिर की दूसरी पत्नी के बीच बांट दिए गए थे.

मुदस्सिर के पास एक स्क्रैप फैक्ट्री थी जिसे अब इमराना के साले चलाते हैं. वे कहती हैं, "यह अच्छा व्यवसाय करता है. मेरे साले मुझे हर महीने 10,000 रुपये देते हैं, जो फैक्ट्री की आय का आधा भी नहीं है. मैं फैक्ट्री चलाना चाहती थी लेकिन परिवार को महिलाओं के बिजनेस चलाने की मंजूरी नहीं थी.”

इमराना ने कहा कि उनकी आठ बेटियों ने अपने घर में एक छोटा कॉस्मेटिक व्यवसाय स्थापित करने के लिए "दान" से मिले पैसे का इस्तेमाल किए, लेकिन उनके ससुराल वालों ने इसे बंद कर दिया.

इमराना बताती हैं, "उन्होंने कहा कि पड़ोस में यह उनके लिए अपमानजनक है कि एक दुकान में युवतियां बैठी हैं." अब, वह अपनी छह छोटी बेटियों को स्कूल भेजने में असमर्थ हैं और ब्यूटी पार्लर में दूसरी बेटी के काम से होने वाली आय पर निर्भर हैं.

क्या उसके ससुराल वाले उसे कोई पैसा देते हैं? उन्होंने बताया कि वे गुजारा करने के लिए 10,000 से 15,000 रुपए महीना देते थे, लेकिन छह महीने पहले यह बंद हो गया. उन्होंने कहा, "यह हमें उनके घर से बाहर निकालने की उनकी चाल है."

सायबा, इमराना और उनके परिवार अभी भी जो हुआ उसके आघात से जूझ रहे हैं.

इमराना ने कहा, 'मैं अब भी रात को सो नहीं पाती हूं. मैं लगातार इस बात को लेकर परेशान रहती हूं कि मैं अपने बच्चों की परवरिश कैसे कर पाऊंगी. कभी-कभी, मैं सोचती हूं कि मैं अपनी शिक्षा पूरी कर पाती और 18 साल की उम्र में शादी न करती. मेरी सबसे बड़ी बेटी शिफा को घबराहट के दौरे पड़ने लगे हैं क्योंकि वह अपने पिता के बहुत करीब थी. अगर वह जीवित होते, तो मुझे यकीन है कि वह अपने सपनों को पूरा करने में सक्षम होती."

सायबा ने कहा, “मेरा जीवन अपने पति के साथ बहुत खूबसूरत था. दूसरे पतियों की तरह उसने मुझे कभी नहीं पीटा. उन्होंने मुझे बहुत प्यार किया और मेरी हर इच्छा पूरी की. यह कुछ ऐसा है जिसे मैं कभी वापस नहीं पा सकती."

'हम हर चीज के लिए संघर्ष कर रहे हैं'

पिछले साल, न्यूज़लॉन्ड्री ने रिपोर्ट की थी कि कैसे दंगों से प्रभावित बच्चे आर्थिक तंगी, महामारी और सांप्रदायिक विभाजन के कारण स्कूल नहीं लौट पा रहे हैं. गाजियाबाद में इन बच्चों को अपने जीवन के टुकड़ों को चुनने में मदद करने के लिए माइल्स2स्माइल फाउंडेशन द्वारा नवंबर 2020 में सनराइज पब्लिक स्कूल की स्थापना की गई थी.

स्कूल के प्रिंसिपल और फाउंडेशन के बोर्ड सदस्य मोहम्मद दानिश ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि स्कूल दंगों में विधवा हुई महिलाओं को नौकरी भी देता है.

उन्होंने आरोप लगाया कि, “इन महिलाओं के ससुराल वाले उन्हें शारीरिक और मानसिक रूप से प्रताड़ित करते हैं. उनका सबसे बड़ा लालच ये है कि वे उन्हें आर्थिक रूप से सहारा नहीं देना चाहते हैं या संपत्ति में उनका हिस्सा नहीं देना चाहते हैं." मुस्लिम पर्सनल लॉ विधवाओं और उनके बच्चों को पति की संपत्ति के अधिकार की गारंटी देता है लेकिन दानिश ने कहा, "कोई भी परिवार इसका पालन नहीं कर रहा है."

उत्तर प्रदेश के लोनी में 36 वर्षीय नाजिस ने 27 फरवरी, 2020 को अपने पति जमालुद्दीन को खो दिया. शिव विहार में उनके घर पर भीड़ द्वारा हमला किया गया था और उनकी हत्या कर दी गई थी. वे अपने पीछे नाजिस और छह, नौ, 12 और 14 साल के चार बच्चों को पीछे छोड़ गए.

नाजिस कहती हैं कि दंगों के बाद उसकी दुनिया पलट गई. जमालुद्दीन अपने दो भाइयों के साथ एक बेकरी चलाता थे लेकिन उनकी मृत्यु के बाद भाइयों ने कमाई का हिस्सा उनकी विधवा को देना बंद कर दिया. इसलिए नाजिस और उसके बच्चों ने शिव विहार में अपनी ससुराल को छोड़ दिया, जहां उसने अपना शादीशुदा जीवन बिताया था, और अपनी मां और भाई के साथ उत्तर प्रदेश के लोनी में रहने लगीं.

नाजिस सिलाई का थोड़ा बहुत काम करती हैं और महीने में करीब 2,000 रुपए कमाती हैं. उन्होंने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, “मेरे ससुराल वालों से कोई सहारा नहीं मिलता है. वे संपन्न हैं और उसी बेकरी से अपना घर चलाते हैं. लेकिन यहां हम हर चीज के लिए संघर्ष कर रहे हैं.”

उसने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि उसने मुआवजे की रकम अपने पति के परिवार को देने से इनकार कर दिया. इसके बजाय उसने घर में एक अलग कमरा बनाया जिसे वह 2,000 रुपए में किराए पर देती हैं. उन्होंने कहा कि उसके ससुराल वालों ने बाद में उसे बताया कि उसके बच्चों का अब परिवार की संपत्ति पर दावा नहीं है.

नाजिस उन लोगों के खिलाफ भी मुकदमा लड़ना चाहती हैं, जिन्होंने उसके पति को मार डाला. वे कहती हैं, "मैं उन हत्यारों को सलाखों के पीछे देखना चाहती हूं.” लेकिन साथ ही वे ये भी कहती हैं कि वह ऐसा नहीं कर सकतीं, क्योंकि उसके पास ऐसा करने के लिए संसाधन नहीं हैं.

लोनी में ही न्यूज़लॉन्ड्री ने रुखसाना बानो से मुलाकात की, जिनके पति फिरोज अहमद की यहां 24 फरवरी, 2020 को हत्या कर दी गई थी. भीड़ के उन पर हमले के वक्त, वह काम से लौटकर घर जा रहे थे. उनका शव 14 दिन बाद मिला था.

रुखसाना अपने चार बच्चों के साथ रहती हैं, जिनकी उम्र नौ से 16 साल के बीच है. उन्होंने कहा कि उनके अपने ससुराल वालों के साथ कभी अच्छे संबंध नहीं थे, इसलिए जब फिरोज ज़िंदा थे तब भी वह उनके साथ नहीं रहती थीं. लेकिन उनके मरने के बाद, उसके देवर अक्सर आते थे और "उसे पीटते" थे, क्योंकि वह इस बात से नाराज़ थे कि रुख़साना अपने पति के परिवार की ज़मीन का हिस्सा चाहती थीं.

वे न्यूज़लॉन्ड्री को बताती हैं, “हमारे पास गांव में पांच एकड़ जमीन है. मुझे अपनी चार एकड़ जमीन मिलनी चाहिए. लेकिन मुझे कुछ देने के बजाय, मेरी सास ने कहा कि वह 10 लाख रुपए का मुआवजा चाहती हैं. जब मैं बच्चों की परवरिश कर रहा हूं तो उसे यह क्यों मिलना चाहिए?” रुखसाना ने कहा कि वह तब तक हार नहीं मानेंगी जब तक उन्हें उनके हिस्से की जमीन नहीं मिल जाती.

रुखसाना और सायबा दोनों ने कहा कि उनके ससुराल वाले उन्हें गुस्से में "वेश्या" कहते हैं. साइबा ने कहा,  "यह पूछिए भी मत कि वे मेरे लिए किस तरह की गालियों का इस्तेमाल करते हैं. यह यातना है. वे जानबूझकर ऐसा करते हैं क्योंकि वे चाहते हैं कि मैं और मेरे बच्चे उनका घर छोड़ दें."

वह चली क्यों नहीं जातीं? सायबा ने कहा कि वह जाना चाहती हैं, लेकिन उसके पास जाने के लिए और कोई जगह नहीं है.

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