दिल्ली दंगा: खुद को गोली लगने की शिकायत करने वाले साजिद कैसे अपने ही मामले में बन गए आरोपी

दिल्ली दंगे के दौरान गोली लगने के बाद साजिद खान को मुआवजा तो नहीं मिला लेकिन अपने ही मामले में उन्हें आरोपी बना दिया गया. साजिद के साथ पांच दूसरे मुस्लिम नौजवानों को भी बिना सबूत गिरफ्तार कर लिया गया.

दिल्ली दंगा: खुद को गोली लगने की शिकायत करने वाले साजिद कैसे अपने ही मामले में बन गए आरोपी
Kartik
  • whatsapp
  • copy

टेंट वाले स्कूल के सामने से नहीं अलग-अलग जगहों से हुई थी गिरफ्तारी

एक तरफ जहां पुलिस ने चार्जशीट में दावा किया है कि पांचों को टेंट वाले स्कूल के पास से गिरफ्तार किया गया वहीं जेल से जमानत पर अब्बास, काजिम और जाहिद के परिजनों की माने तो उन्हें अलग-अलग जगहों से गिरफ्तार किया गया.

न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए 19 वर्षीय काजिम बताते हैं, ‘‘मैं और शोएब दोस्त हैं और दोनों जाफराबाद के गली नंबर 26 की एक जींस फैक्ट्री में काम करते थे. 18 अप्रैल को हम काम पर ही थे. उस दिन दोपहर के करीब दो या तीन बजे कई लोग सिविल ड्रेस में आए और पूछने लगे कि शोएब और काजिम कौन हैं. इसके बाद वह हम दोनों पकड़कर मारते हुए लेकर चले आए. यह गली में सबने देखा.’’

16 जनवरी को काजिम जेल से बाहर आ गए. काजिम कहते हैं, ‘‘गिरफ्तारी के बाद पुलिस ने मुझसे कम से कम 30 सफेद कागजों पर साइन करवाए थे. हम साइन नहीं कर रहे थे वे डंडे मार रहे थे. वे हमसे दंगे के बारे में पूछ नहीं रहे थे बल्कि कह रहे थे तो तुम लोग दंगे में शामिल थे. मैंने तो हर पन्ने पर अलग-अलग साइन किए ताकि पता चले कि यह साइन जबरदस्ती करवाए गए हैं.’’

पुलिस ने चार्जशीट में दावा किया है कि शोएब के पास देशी कट्टा बरामद हुआ. हालांकि इसको लेकर काजिम कहते हैं, ‘‘हम दोनों को कारखाने से पकड़कर ले गए थे. थाने में सुबह-सुबह एक कागज पर कट्टे की टेडी-मेडी तस्वीर बनाकर लाए और शोएब से बोले की इस पर साइन कर. वो नहीं करना चाह रहा था तो उसे फट्टे से मारकर साइन कराया. साइन करने से जो भी मना कर रहा था पुलिस वाले उसे मार रहे थे.’’

काजिम परिवार में इकलौता कमाने वाला था. तीन बड़ी बहनों, मां और पिता की जिम्मेदारी उसी की कमाई पर निर्भर थी लेकिन नौ महीने तक जेल में रहने के कारण सबकुछ अस्त व्यस्त हो गया. न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए काजिम कहते हैं, ‘‘जेल से लौटकर आया तो परिवार कर्ज में डूबा हुआ है. जमानत के लिए 80 हज़ार रुपए कर्ज लेकर घर वालों ने दिए. जेल में मिलने आते थे तो कुछ ना कुछ देकर जाते थे. मेरे पिता बीमार तो पहले से थे लेकिन अब ज़्यादा रहने लगे हैं. बाहर आकर काम शुरू किया लेकिन महीने में दो से तीन बार केस के लिए कोर्ट आना पड़ता है ऐसे में 15 दिन बाद ही काम से निकाल दिया गया. अब मेरे पास कोई काम नहीं है.’’

मौजपुर के बजरंगी मोहल्ले पर रहने वाला जाहिद का परिवार बेहद बदहाल स्थिति में रहता है. एक कमरे का घर जिसकी छत और दीवारें कई जगहों से टूटी हुई हैं. घर के नीचे एक छोटी सी किराने की दुकान है जो जाहिद के पिता ज़ाकिर हुसैन चलाते हैं. परिवार का खर्च जाहिद की कमाई से ही चलता था वो ई-रिक्शा चलाता था.

जाहिद की मां तहसीम रोते-रोते उस बेड की तरफ इशारा करती हैं जहां से 17 अप्रैल की रात करीब 10 बजे पुलिस उठाकर ले गई थी. वो कहती हैं, ‘‘वो नीचे से ऊपर खाना खाने आकर बैठा ही था कि तभी सिविल ड्रेस में कुछ लोग ऊपर आकर उसे पकड़ लिए. मैं जाहिद को पकड़ ली तो उन्होंने मेरे हाथ में मुक्का मारा और उसे मारते हुए लेकर चले गए. उसे पकड़ने के लिए इतने लोग आए थे जैसे किसी आतंकी को पकड़ने जाते हैं.''

तहसीम जाहिद से गिरफ्तारी के करीब सात महीने बाद नवंबर में वीडियो कॉल के जरिए बात कर पाईं. उसके बाद जनवरी में जेल में वो उससे मिल पाईं. वो बताती हैं कि पुलिस ने लिखा है कि उसके पास से कट्टा बरामद हुआ. जब उसे यहां से लेकर गए थे उसके पास सिर्फ पर्स और फोन था. उसके बाद पुलिस वाले कभी घर पर आए नहीं. सब कुछ उसके नाम पर झूठ लिख दिया है.’’

दंगे के दिन जाहिद कहां था इस सवाल पर तहसीन कहती हैं, ‘‘वो उस दिन घर पर ही रहा. उसे हमने घर से निकलने ही नहीं दिया.’’

अब्बास को भी पुलिस ने उनके घर के पास से ही गिरफ्तार किया था. जेल से लौटे अब्बास ज़्यादा बात नहीं करते हैं. उनके बड़े भाई दिलफ़राज कहते हैं, ‘‘पुलिस वाले दो-तीन बार घर पर आकर परेशान कर रहे थे. कहते थे कि पूछताछ के लिए अब्बास को भेज दो. 18 अप्रैल को हम अपने पड़ोस में रहने वाले एक शख्स के घर गए जो पढ़े लिखे हैं. अब्बास भी साथ था. पुलिस वहां आई और इसे लेकर चली गई. कह रहे थे कि पूछताछ के लिए ले जा रहे हैं लेकिन इसपर चोरी के साथ-साथ दंगे का भी आरोप लगा दिया. जबकि यह दंगे के समय हमारे गांव बुलंदशहर में था.’’

काजिम की तरह ही अब्बास पुलिस पर सादे कागज पर साइन कराने का आरोप लगाते हैं. वे कहते हैं, ''उनके पास दंगे में शामिल होने का एक भी वीडियो या फोटो नहीं था लेकिन जबरदस्ती हमें जेल में डाल दिया. हमारी अम्मी नहीं हैं. अब्बू बीमार रहते हैं. घर का खर्च हम दोनों भाइयों की कमाई पर चलता था.’’

न्यूजलॉन्ड्री ने इस केस के जांच अधिकारी अमित भारद्वाज से मुलाकात की लेकिन उन्होंने हमारे किसी भी सवाल का जवाब नहीं दिया. हमने इसको लेकर दिल्ली पुलिस के मीडिया प्रभारी ( पीआरओ ) को भी सवालों भेजा, अभी तक उसका जवाब नहीं आया. अगर जवाब आता है तो उसे खबर से जोड़ दिया जाएगा.

Also see
दिल्ली दंगा: दंगा सांप्रदायिक था, लेकिन मुसलमानों ने ही मुसलमान को मार दिया?
प्रसारण नियमों के उल्लंघन को लेकर न्यूज चैनलों पर कार्रवाई करे सूचना मंत्रालय- दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली दंगा: दंगा सांप्रदायिक था, लेकिन मुसलमानों ने ही मुसलमान को मार दिया?
प्रसारण नियमों के उल्लंघन को लेकर न्यूज चैनलों पर कार्रवाई करे सूचना मंत्रालय- दिल्ली हाईकोर्ट

टेंट वाले स्कूल के सामने से नहीं अलग-अलग जगहों से हुई थी गिरफ्तारी

एक तरफ जहां पुलिस ने चार्जशीट में दावा किया है कि पांचों को टेंट वाले स्कूल के पास से गिरफ्तार किया गया वहीं जेल से जमानत पर अब्बास, काजिम और जाहिद के परिजनों की माने तो उन्हें अलग-अलग जगहों से गिरफ्तार किया गया.

न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए 19 वर्षीय काजिम बताते हैं, ‘‘मैं और शोएब दोस्त हैं और दोनों जाफराबाद के गली नंबर 26 की एक जींस फैक्ट्री में काम करते थे. 18 अप्रैल को हम काम पर ही थे. उस दिन दोपहर के करीब दो या तीन बजे कई लोग सिविल ड्रेस में आए और पूछने लगे कि शोएब और काजिम कौन हैं. इसके बाद वह हम दोनों पकड़कर मारते हुए लेकर चले आए. यह गली में सबने देखा.’’

16 जनवरी को काजिम जेल से बाहर आ गए. काजिम कहते हैं, ‘‘गिरफ्तारी के बाद पुलिस ने मुझसे कम से कम 30 सफेद कागजों पर साइन करवाए थे. हम साइन नहीं कर रहे थे वे डंडे मार रहे थे. वे हमसे दंगे के बारे में पूछ नहीं रहे थे बल्कि कह रहे थे तो तुम लोग दंगे में शामिल थे. मैंने तो हर पन्ने पर अलग-अलग साइन किए ताकि पता चले कि यह साइन जबरदस्ती करवाए गए हैं.’’

पुलिस ने चार्जशीट में दावा किया है कि शोएब के पास देशी कट्टा बरामद हुआ. हालांकि इसको लेकर काजिम कहते हैं, ‘‘हम दोनों को कारखाने से पकड़कर ले गए थे. थाने में सुबह-सुबह एक कागज पर कट्टे की टेडी-मेडी तस्वीर बनाकर लाए और शोएब से बोले की इस पर साइन कर. वो नहीं करना चाह रहा था तो उसे फट्टे से मारकर साइन कराया. साइन करने से जो भी मना कर रहा था पुलिस वाले उसे मार रहे थे.’’

काजिम परिवार में इकलौता कमाने वाला था. तीन बड़ी बहनों, मां और पिता की जिम्मेदारी उसी की कमाई पर निर्भर थी लेकिन नौ महीने तक जेल में रहने के कारण सबकुछ अस्त व्यस्त हो गया. न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए काजिम कहते हैं, ‘‘जेल से लौटकर आया तो परिवार कर्ज में डूबा हुआ है. जमानत के लिए 80 हज़ार रुपए कर्ज लेकर घर वालों ने दिए. जेल में मिलने आते थे तो कुछ ना कुछ देकर जाते थे. मेरे पिता बीमार तो पहले से थे लेकिन अब ज़्यादा रहने लगे हैं. बाहर आकर काम शुरू किया लेकिन महीने में दो से तीन बार केस के लिए कोर्ट आना पड़ता है ऐसे में 15 दिन बाद ही काम से निकाल दिया गया. अब मेरे पास कोई काम नहीं है.’’

मौजपुर के बजरंगी मोहल्ले पर रहने वाला जाहिद का परिवार बेहद बदहाल स्थिति में रहता है. एक कमरे का घर जिसकी छत और दीवारें कई जगहों से टूटी हुई हैं. घर के नीचे एक छोटी सी किराने की दुकान है जो जाहिद के पिता ज़ाकिर हुसैन चलाते हैं. परिवार का खर्च जाहिद की कमाई से ही चलता था वो ई-रिक्शा चलाता था.

जाहिद की मां तहसीम रोते-रोते उस बेड की तरफ इशारा करती हैं जहां से 17 अप्रैल की रात करीब 10 बजे पुलिस उठाकर ले गई थी. वो कहती हैं, ‘‘वो नीचे से ऊपर खाना खाने आकर बैठा ही था कि तभी सिविल ड्रेस में कुछ लोग ऊपर आकर उसे पकड़ लिए. मैं जाहिद को पकड़ ली तो उन्होंने मेरे हाथ में मुक्का मारा और उसे मारते हुए लेकर चले गए. उसे पकड़ने के लिए इतने लोग आए थे जैसे किसी आतंकी को पकड़ने जाते हैं.''

तहसीम जाहिद से गिरफ्तारी के करीब सात महीने बाद नवंबर में वीडियो कॉल के जरिए बात कर पाईं. उसके बाद जनवरी में जेल में वो उससे मिल पाईं. वो बताती हैं कि पुलिस ने लिखा है कि उसके पास से कट्टा बरामद हुआ. जब उसे यहां से लेकर गए थे उसके पास सिर्फ पर्स और फोन था. उसके बाद पुलिस वाले कभी घर पर आए नहीं. सब कुछ उसके नाम पर झूठ लिख दिया है.’’

दंगे के दिन जाहिद कहां था इस सवाल पर तहसीन कहती हैं, ‘‘वो उस दिन घर पर ही रहा. उसे हमने घर से निकलने ही नहीं दिया.’’

अब्बास को भी पुलिस ने उनके घर के पास से ही गिरफ्तार किया था. जेल से लौटे अब्बास ज़्यादा बात नहीं करते हैं. उनके बड़े भाई दिलफ़राज कहते हैं, ‘‘पुलिस वाले दो-तीन बार घर पर आकर परेशान कर रहे थे. कहते थे कि पूछताछ के लिए अब्बास को भेज दो. 18 अप्रैल को हम अपने पड़ोस में रहने वाले एक शख्स के घर गए जो पढ़े लिखे हैं. अब्बास भी साथ था. पुलिस वहां आई और इसे लेकर चली गई. कह रहे थे कि पूछताछ के लिए ले जा रहे हैं लेकिन इसपर चोरी के साथ-साथ दंगे का भी आरोप लगा दिया. जबकि यह दंगे के समय हमारे गांव बुलंदशहर में था.’’

काजिम की तरह ही अब्बास पुलिस पर सादे कागज पर साइन कराने का आरोप लगाते हैं. वे कहते हैं, ''उनके पास दंगे में शामिल होने का एक भी वीडियो या फोटो नहीं था लेकिन जबरदस्ती हमें जेल में डाल दिया. हमारी अम्मी नहीं हैं. अब्बू बीमार रहते हैं. घर का खर्च हम दोनों भाइयों की कमाई पर चलता था.’’

न्यूजलॉन्ड्री ने इस केस के जांच अधिकारी अमित भारद्वाज से मुलाकात की लेकिन उन्होंने हमारे किसी भी सवाल का जवाब नहीं दिया. हमने इसको लेकर दिल्ली पुलिस के मीडिया प्रभारी ( पीआरओ ) को भी सवालों भेजा, अभी तक उसका जवाब नहीं आया. अगर जवाब आता है तो उसे खबर से जोड़ दिया जाएगा.

Also see
दिल्ली दंगा: दंगा सांप्रदायिक था, लेकिन मुसलमानों ने ही मुसलमान को मार दिया?
प्रसारण नियमों के उल्लंघन को लेकर न्यूज चैनलों पर कार्रवाई करे सूचना मंत्रालय- दिल्ली हाईकोर्ट
दिल्ली दंगा: दंगा सांप्रदायिक था, लेकिन मुसलमानों ने ही मुसलमान को मार दिया?
प्रसारण नियमों के उल्लंघन को लेकर न्यूज चैनलों पर कार्रवाई करे सूचना मंत्रालय- दिल्ली हाईकोर्ट
subscription-appeal-image

Press Freedom Fund

Democracy isn't possible without a free press. And the press is unlikely to be free without reportage on the media.As India slides down democratic indicators, we have set up a Press Freedom Fund to examine the media's health and its challenges.
Contribute now

Comments

We take comments from subscribers only!  Subscribe now to post comments! 
Already a subscriber?  Login


You may also like