अल्पसंख्यक मंत्रालय के बजट में साल 2014-15 से 2023-24 के बजट में 637 करोड़ की कमी

भारत सरकार ने अल्पसंख्यक मंत्रालय की तीन प्रमुख स्कॉलरशिप को बंद कर दी हैं. इतना ही नहीं सरकार ने अल्पसंख्यक मंत्रालय को मिलने वाला बजट भी कम कर दिया है. इसके बाद से सरकार पर तुष्टिकरण का आरोप लग रहा है.

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भारत सरकार ने एक फरवरी 2023 को वित्तीय वर्ष 2023-24 का बजट पेश किया. वित्त मंत्री निर्मला सीतारामन् ने इस बजट में अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय को 3097.60 करोड़ रुपए जारी किए हैं. जो कि साल 2022-23 के बजट से 38.3 प्रतिशत कम है. 

साल 2022-23 में अल्पसंख्यक मंत्रालय का बजट 5,020.50 करोड़ रुपए था. हालांकि सरकार पिछले साल भी बजट में आवंटित राशि को खर्च नहीं कर पाई थी. मंत्रालय द्वारा कुल बजट का सिर्फ 47.9 प्रतिशत ही खर्च किया गया. संशोधित बजट में बताया गया कि कुल 5020.50 करोड़ में से मंत्रालय द्वारा 2612.66 करोड़ रुपए ही खर्च किए गए.

बजट कम करने से पहले केंद्र सरकार ने अल्पसंख्यक विभाग की तीन प्रमुख छात्रवृत्तियों को बंद कर दिया था. सरकार ने मौलाना आजाद फेलोशिप (एमएएनएफ), आठवीं कक्षा तक के छात्रों के लिए प्री-मैट्रिक छात्रवृत्ति और पढ़ो प्रदेश स्कीम को भी बंद कर दिया.

छात्रवृत्ति बंद होने के बाद, विपक्षी दलों के अलावा भाजपा सांसद प्रीतम मुंडे ने फिर से छात्रवृत्ति शुरू करने की बात उठाई थी. वहीं कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि “छात्रवृत्ति बंद कर गरीब छात्रों को वंचित करने के पीछे आपका क्या मंतव्य है? इन गरीब विद्यार्थियों के हक का पैसा मारकर सरकार कितनी कमाई कर लेगी या बचा लेगी?”

शिक्षा सशक्तिकरण बजट में 33 प्रतिशत की कटौती

भारत सरकार के वित्त सचिव टीवी सोमनाथन ने बजट के बाद द हिंदू को दिए एक इंटरव्यू में कहा था, ”शिक्षा में अधिक पैसे लगाने से कुछ हासिल नहीं होगा.” उनके इस बयान की झलक इस बार के बजट में भी दिखी. जिसमें अल्पसंख्यकों के शिक्षा सशक्तिकरण बजट में पिछले साल की तुलना में 33 प्रतिशत की कटौती की गई है.

बता दें कि शिक्षा सशक्तिकरण बजट के अंतर्गत कुल सात योजनाएं हैं. जिसमें से तीन स्कॉलरशिप बंद हो गई हैं. इन सातों योजनाओं का साल 2022-23 में कुल बजट 2515 करोड़ का था, वहीं साल 2023-24 में यह आंकड़ा घटकर 1689 करोड़ रुपए हो गया. यानी इस राशि में 826 करोड़ रुपए कम कर दिए गए, जो कि कुल रकम का करीब 32.8 प्रतिशत है. इतना ही नहीं पिछले साल जो बजट आवंटित किया गया, सरकार उसमें से करीब 931 करोड़ रुपए खर्च नहीं कर पाई.

यूपीएससी, एसएससी और राज्य पीएससी द्वारा आयोजित प्रारंभिक परीक्षाओं को पास करने वाले अल्पसंख्यक उम्मीदवारों को वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए “नई उड़ान छात्रवृत्ति” को कोई बजट नहीं दिया गया है. जबकि पिछले साल इस स्कॉलरशिप के लिए 8 करोड़ रुपए का बजट आवंटित किया गया था. बजट तो शून्य कर दिया गया है, लेकिन यह साफ नहीं है कि छात्रवृत्ति बंद कर दी गई है या नहीं.

इसी तरह मेधावी छात्रों को व्यावसायिक और तकनीकी पाठ्यक्रमों में आगे पढ़ने के लिए आर्थिक रूप से सहायता देने वाली “मेरिट-कम-मींस” छात्रवृत्ति योजना को पिछले साल की तुलना में 321 करोड़ रुपए कम मिले, जो कि इसके बजट में लगभग 88 प्रतिशत की गिरावट है. बता दें कि 2014 से 2022 के बीच इस योजना से हर साल औसतन 1.5 लाख से ज़्यादा नए आवेदक लाभान्वित हुए हैं.

नया सवेरा योजना के बजट में इस साल 62 प्रतिशत की कटौती की गई है. सरकार ने साल 2022-23 में 79 करोड़ रुपए आवंटित किए थे, जिसे इस साल घटाकर 30 करोड़ कर दिया गया. इस योजना के तहत अल्पसंख्यक समुदाय के गरीब छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए मुफ्त कोचिंग की सुविधा प्रदान की जाती है. 

हालांकि एक स्कीम है, जिसके बजट में सरकार ने इस साल बढ़ोतरी की. पोस्ट मैट्रिक स्कीम के लिए साल 2022-23 में 515 करोड़ रुपए आवंटित किए गए थे, जो इस साल के बजट में बढ़ाकर 1065 करोड़ रुपए कर दिए गए हैं, यानी इस योजना के बजट में 106 प्रतिशत की बढ़ोतरी की गई है.

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शिक्षा सशक्तिकरण बजट में 33 प्रतिशत की कटौती

कौशल विकास और आजीविका बजट में 87 फीसदी की कटौती

कौशल विकास योजना का बजट साल 2022-23 में 235.41 करोड़ था, जो साल 2023-24 में घटकर 0.10 करोड़ हो गया है. यानी कि इस योजना का बजट करीब 99.9 प्रतिशत घटा दिया गया. इस योजना को सीखो और कमाओ योजना के नाम से भी जाना जाता है. इस योजना का उद्देश्य अल्पसंख्यक युवाओं (14-45 वर्ष) के कौशल को उनकी योग्यता, वर्तमान आर्थिक रुझानों और बाजार क्षमता के आधार पर विभिन्न आधुनिक कौशल में अपग्रेड करना है. इस योजना के तहत 2021 तक लगभग चार लाख लोग लाभान्वित हुए हैं.

2015 में शुरू की गई नई मंजिल योजना का उद्देश्य गरीब अल्पसंख्यक युवाओं के साथ जुड़ना, साथ ही उन्हें स्थायी और लाभकारी रोजगार के अवसर प्राप्त करने में मदद करना है. इस योजना को साल 2022-23 में 46 करोड़ रुपए मिले थे, जो 2023-24 के बजट में घटकर 10 लाख हो गए. 

इसी तरह अपग्रेडिंग द स्किल्स एंड ट्रेनिंग इन ट्रेडिशनल आर्ट्स/क्राफ्ट्स फॉर डेवलपमेंट (यूएसटीडीएडी) योजना के बजट में भी 99 प्रतिशत की कटौती की गई है. इस योजना को भी मात्र 10 लाख रुपए मिले हैं, जबकि पिछले साल इस योजना को 47 करोड़ मिले थे. अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों में पारंपरिक कला और समुदाय से संबंधित हस्तकला को बढ़ावा देने के लिए योजना की शुरुआत की गई है.

कौशल विकास और आजीविका का कुल बजट साल 2022-23 में 491.91 करोड़ था, जो कि इस साल घटकर 64.40 करोड़ हो गया, अर्थात योजना की रकम में 427.51 करोड़ या 86.9 प्रतिशत की कमी आई.

कौशल विकास और आजीविका बजट में 87% की कटौती

अल्पसंख्यकों के विशेष कार्यक्रम बजट में 51 प्रतिशत की कमी

इस श्रेणी के तहत कुल तीन योजनाओं के लिए साल 2022-23 में 53 करोड़ रुपए आवंटित किए गए थे, वहीं साल 2023-24 के बजट में वह घटकर 26 करोड़ कर दिए गए, यानी की करीब 51 प्रतिशत की कमी.

पिछले साल अल्पसंख्यकों के लिए विकास योजनाओं के अनुसंधान/अध्ययन, प्रचार, निगरानी और मूल्यांकन के लिए 41 करोड़ रुपए आवंटित किए गए थे, जिसे इस साल घटाकर 20 करोड़ रुपए कर दिया गया है.

दो अन्य योजनाओं, पारसी समुदाय की जनसंख्या में गिरावट को रोकने हेतु ‘जियो पारसी’ और अल्पसंख्यकों की समृद्ध विरासत और संस्कृति के संरक्षण के लिए ‘हमारी धरोहर’ के बजट में क्रमशः 40 प्रतिशत और 95 प्रतिशत की कटौती की गई है. 

अल्पसंख्यकों के विशेष कार्यक्रम बजट में 51% प्रतिशत

सच्चर कमेटी 

मुस्लिम गरीब तबके के विकास के लिए, 2005 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा देश में मुसलमानों की सामाजिक-आर्थिक व शैक्षणिक स्थिति को व्यापक रूप से जानने के उद्देश्य से जस्टिस राजिंदर सच्चर की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया था. 30 नवंबर 2006 को सच्चर कमेटी द्वारा तैयार बहुचर्चित रिपोर्ट ''भारत के मुस्लिम समुदाय की सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक स्‍थ‍ित‍ि'' को लोकसभा में पेश किया गया था. 

सच्चर समिति ने अपने निष्कर्षों में बताया था कि भारत में मुसलमान आर्थिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े हुए हैं. सरकारी नौकरियों में उन्हें उचित प्रतिनिधित्व नहीं मिल पाता है और बैंक लोन लेने में मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. कई मामलों में मुस्लिम गरीब तबके की स्थिति अनुसूचित जाति-जनजातियों से भी बदतर है.

2014-15 से लेकर 2023-24 तक का बजट

रिपोर्ट में बताया गया था कि 6 से 14 वर्ष की आयु वर्ग के एक-चौथाई मुस्लिम बच्‍चे या तो स्कूल जा ही नहीं पाते, या बीच में ही पढ़ाई छोड़ देते हैं. मैट्रिक स्तर पर मुस्लिमों की शैक्षणिक उपलब्धि 26 प्रतिशत के राष्ट्रीय औसत के मुकाबले केवल 17 प्रतिशत है, और मात्र 50 प्रतिशत मुसलमान बच्चे ही मिडिल स्‍कूल पूरा कर पाते हैं, जबकि मिडिल स्कूल की राष्‍ट्रीय दर 62 फीसदी है.

मुस्लिम समाज के विकास को लेकर रिपोर्ट में कई सिफारिशें की गई थीं. जिस साल सच्चर कमेटी की सिफारिशें आईं, उसी साल सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय में से अलग कर एक नए अल्पसंख्यक मंत्रालय का गठन किया गया.

जहां एक तरफ, मोदी सरकार आने के बाद से  भारत सरकार का बजट अमूमन बढ़ा ही है. वहीं दूसरी तरफ अल्पसंख्यक मंत्रालय का बजट कम हुआ है. साल 2014-15 में मंत्रालय का बजट 3734 करोड़ था जो साल 2023-24 में 637 करोड़ रुपए से घटकर 3097 करोड़ हो गया. यानी कि अल्पसंख्यक मंत्रालय के बजट में करीब 17 प्रतिशत की कमी आई है.

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