'अमृत काल' के पहले बजट के कर लाभों और जोखिमों के बारे में बता रहे हैं विवेक कौल.
इस बार के केंद्रीय बजट से एक बात तो साफ़ है कि सरकार चाहती है आयकर-दाता पुरानी टैक्स व्यवस्था को छोड़कर नई टैक्स व्यवस्था को अपनाएं.
वास्तव में जिनकी मौजूदा आय पांच लाख रुपए है वह पुरानी या नई, दोनों ही कर व्यवस्थाओं के अंतर्गत आयकर भुगतान नहीं करते हैं. दोनों ही व्यवस्थाओं के तहत टैक्स में छूट के विकल्प उपलब्ध हैं.
बहरहाल, अप्रैल 2023 से नई व्यवस्था अपनाने वालों को सात लाख रुपए तक की आय पर आयकर का भुगतान नहीं करना होगा. नई कर व्यवस्था में छूट को 5 लाख रुपए से बढ़ाकर 7 लाख रुपए कर दिया गया है लेकिन पुरानी व्यवस्था के तहत यह सीमा अभी भी 5 लाख रुपए ही है.
इसलिए 7 लाख रुपए तक की सालाना आय वाले किसी भी व्यक्ति के लिए नई कर व्यवस्था के तहत आयकर रिटर्न दाखिल करना वाजिब लगता है. इसमें कोई ज्यादा दिमाग लगाने की जरूरत नहीं दिखती. लेकिन परेशानी ये है कि एक बार यदि आप नई व्यवस्था में चले गए, तो आसानी से पुरानी व्यवस्था में वापस नहीं जा सकते (इसका एकमात्र अपवाद है वेतनभोगी वर्ग).
पुरानी व्यवस्था में ऐसी बहुत सी छूट और कटौतियां हैं जो नई व्यवस्था में लागू नहीं हैं. जैसे कि नई व्यवस्था में एक कर्मचारी, अपनी टैक्स के अंदर आने वाली आय की गणना करते समय मकान किराया भत्ता (एचआरए) छूट के रूप में कुल आय से नहीं काट सकता. एचआरए का उपयोग आवासीय किराए का भुगतान करने के लिए किया जाता है जिस पर टैक्स में छूट मिलती है. उसी प्रकार छुट्टी यात्रा भत्ता जैसे अन्य भत्ते भी छूट के दायरे में नहीं हैं.
इसके अलावा पुरानी कर व्यवस्था में होम लोन पर सालाना दो लाख रुपए तक के किसी भी ब्याज को, कर लगने वाली आय का हिसाब लगाते समय घटाया जा सकता है. पुरानी व्यवस्था में धारा 80सी के तहत किसी भी तरह के कर बचने वाले निवेश (टैक्स सेविंग म्यूचुअल फंड से लेकर बीमा प्रीमियम तक और टैक्स सेविंग फिक्स्ड डिपॉजिट से पब्लिक प्रॉविडेंट फंड इत्यादि तक) को कर लगने वाली आय की गणना करते समय घटाया जा सकता है. नई कर व्यवस्था के तहत इसकी अनुमति नहीं है.
इसलिए जहां सात लाख रुपए तक की आय वाले व्यक्ति को नई कर व्यवस्था के तहत रखना बेहतर लग सकता है, लेकिन तब भी सवाल बनता है कि यदि वे पुरानी कर व्यवस्था में हैं, तो क्या उन्हें नई व्यवस्था में जाना चाहिए? यहीं पर चीजें मुश्किल हो जाती हैं.
किसी ऐसे व्यक्ति के लिए जिसकी आय आने वाले वर्षों में सात लाख रुपए तक बने रहने की संभावना है, उनके लिए पुरानी से नई व्यवस्था में चला जान बड़ा समझदारी से भरा कदम होगा. ये मानते हुए कि वे फ़िलहाल पुराणी व्यवस्था में हैं.
स्वाभाविक तौर पर पूर्वानुमान का कोई तरीका नहीं है, लेकिन वे लोग जो जीवन में प्रगति करना चाहते हैं और उम्मीद करते हैं कि आने वाले सालों में उनकी आय सात लाख रुपए से अधिक होगी, उनके लिए अभी भी पुरानी कर व्यवस्था में बने रहना समझदारी हो सकती है. जब उनकी आय सात लाख रुपए से अधिक होगी तो वे इसके तहत उपलब्ध छूट और कटौतियों का उपयोग कर सकते हैं.
ज़ाहिर है कि अलग-अलग लोगों के लिए यह उनकी वेतन संरचना और बचत करने की आदत (धारा 80 सी के तहत कर बचत छूट का उपयोग) पर निर्भर करेगा कि उनके लिए किस व्यवस्था में रहना सही है. ऐसे लोग जिनके वेतन में भत्ते अधिक हैं और आने वाले सालों में प्रगति होने पर भी उनके भत्ते अधिक रहने की संभावना है, उनके लिए यही सही होगा कि वह पुरानी कर व्यवस्था में बने रहें, भले ही उनकी मौजूदा आय सात लाख रुपए या उससे कम है.
हालांकि इसकी कीमत भी चुकानी पड़ेगी क्योंकि जो लोग सात लाख रुपए तक कमाते हैं और पुरानी कर व्यवस्था में बने रहते हैं, वे थोड़ा आयकर भरेंगे. लेकिन यह एक तरह से कटौती और छूट सुनिश्चित करने के लिए दी गई कीमत है, ताकि जब उनकी आय सात लाख रुपए से अधिक हो जाए तो वे उनके लिए उपलब्ध रहें.
लेकिन यहां पेचीदा बनाने वाली बात ये है कि नई कर व्यवस्था में सरकार ने टैक्स स्लैब को पुरानी व्यवस्था की तुलना में ज्यादा आकर्षक बनाया है.
आइए किसी ऐसे व्यक्ति को लें जिसकी आय सालाना आठ लाख रुपए है और उसे 1,25,000 रुपए एचआरए मिलता है, जिसे वह करयोग्य आमदनी की गणना करते समय पूरी तरह से घटा सकता है. इसके अलावा वह धारा 80सी के तहत 50,000 रुपए का कर-बचत निवेश भी करता है और साथ ही करयोग्य आय निकालते समय 25,000 रुपए का छुट्टी यात्रा भत्ता (एलटीए) भी काटा जाता है.
इसका मतलब है कि इस मामले में टैक्स लगने वाली आय छह लाख रुपए हुई (8 लाख रुपए से 1.25 लाख रुपए एचआरए, निवेश के 50,000 और एलटीए के 25,000 घटा कर). पुरानी कर व्यवस्था के तहत इस पर (बिना किसी सेस या उपकर के) 32,500 रुपए आयकर बनता है.
2023-24 में, नई कर व्यवस्था में आठ लाख रुपए की आय पर 35,000 रुपए टैक्स बनेगा. यानी यह व्यक्ति साफ़ तौर पर पुरानी कर व्यवस्था के तहत बेहतर स्थिति में है. इसमें कोई शक नहीं कि यह सबके लिए एक जैसा नहीं होगा, साथ ही यह बचत की आदतों और वेतन संरचना पर निर्भर करता है. बहरहाल, लोग पुरानी टैक्स व्यवस्था से नई व्यवस्था की ओर जाने से पहले कुछ बुनियादी आकलन कर सकते हैं. इसके विपरीत, नई कर व्यवस्था कहीं ज़्यादा सरल है.
कुल मिलाकर यह कहना सही होगा कि जिनकी आय सात लाख रुपए तक है, उन्हें भी पुरानी कर व्यवस्था से नई में जाने से पहले सोचना चाहिए. मामला इतना आसान नहीं है जितना बताया जा रहा है. निश्चित रूप से नई कर व्यवस्था पर सरकार के जोर को देखते हुए संभव है कि आने वाले सालों में सरकार पुरानी कर व्यवस्था को पूरी तरह समाप्त कर दे. लेकिन यह जोखिम उठाया जा सकता है.
विवेक कौल बैड मनी के लेखक हैं.
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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