मुरादाबाद के हिंदू कॉलेज में 15 अक्टूबर से ड्रेस कोड लागू किया गया है. इसे बुर्के पर बैन बता कर मीडिया और कुछ अन्य लोगों ने सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश की.
उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद स्थित हिंदू कॉलेज में ड्रेस कोड लागू होने के बाद स्थानीय यूथ समाजवादी पार्टी से जुड़े लोगों ने इसे मुस्लिम विरोधी बताते हुए कई दिनों तक धरना प्रदर्शन किया. मीडिया में इस खबर को कवर किया गया और कई लोगों का मानना है कि इस मामले को सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश की गई. शहर के कुछ मीडिया कर्मी भी इस बात से सहमत हैं कि मामले को कई मीडिया संस्थानों ने तूल दिया है.
बीते साल 15 अक्टूबर से कॉलेज में ड्रेस कोड लागू हुआ था, जिसे 1 जनवरी से सख्ती से लागू कर दिया गया. इस ड्रेस कोड के जरिए कॉलेज प्रशासन ने कॉलेज के अंदर मुस्लिम छात्राओं के बुर्का पहनने पाबंदी लगा दी है. इस नियम को लागू करने के लिए कॉलेज प्रशासन ने मुख्य गेट पर ही एक चेंजिंग रूम बना दिया है, ताकि छात्राएं बुर्का उतारकर कॉलेज की वेशभूषा में ही अंदर प्रवेश करें.
न्यूज़लॉन्ड्री ने मुरादाबाद पहुंचकर इस मामले की पड़ताल की.
मुरादाबाद शहर का यह कॉलेज बहुत भीड़-भाड़ वाले इलाके में है. शहर के नामी बुद्ध बाज़ार के बीच कॉलेज का प्रवेश द्वार है, द्वार के अगल-बगल और सामने दुकानें हैं.
कॉलेज के गेट से एंट्री करते ही दाहिने हाथ की तरफ एक छोटा सा गेट है, जिस पर चेंजिंग रूम लिखा है.
यहां पढ़ाई कर रहीं एमकॉम प्रथम वर्ष की छात्रा इकरा कहती हैं, "हमें नए ड्रेस कोड से कोई परेशानी नहीं है. यहां कुछ मुस्लिम लड़कियां हमारे इस्लाम को बदनाम कर रही हैं. जो लड़कियां प्रदर्शन कर रही हैं वो खुद बिना स्कार्फ पहने मीडिया से बात करती हैं. मैंने उनका वीडियो भी देखा है. उनका तर्क है कि कॉलेज में तो बुर्का पहन कर आने के लिए लड़ रही हैं, लेकिन कॉलेज के बाहर आप ऐसे ही बिना स्कार्फ के घूमेंगी. इसलिए मैं उन लड़कियों के साथ नहीं हूं. अगर मैं इस मुद्दे को उठाऊंगी तो पहले खुद स्कार्फ पहनूंगी.”
वह आगे कहती हैं कि, “देखिए कॉलेज वालों ने बुर्के पहनने से मना किया है तो आप स्कार्फ पहनकर आइए, कॉलेज ने स्कार्फ को थोड़ी मना किया है. प्रदर्शन कर रही लड़कियां न स्कार्फ पहनती हैं, न मास्क लगाती हैं और बाल खोलकर मीडिया से बात करती हैं. मैं भी उनके साथ खड़ी होती, लेकिन नहीं हुई क्योंकि वह खुद गलत हैं. मैं मुसलमान हूं और पठान हूं.”
एमकॉम पार्ट वन की ही एक अन्य छात्रा, इत्तेफाक से उनका नाम भी इकरा है, कहती हैं, “मैं इस प्रदर्शन के बिलकुल भी साथ नहीं हूं. लड़कियां जो बुर्के में आ ही हैं, उन्हें बकायदा कॉलेज प्रशासन ने जगह और सहूलियत दी है. उन्होंने तो कभी ये कहा ही नहीं कि आप बिना बुर्के के मत आइए. उन्होंने तो बस ये कहा है कि आप बुर्का उतारिए और कॉलेज में एंट्री कीजिए, न ही उन्होंने कभी हिजाब को मना किया है.”
वह बताती हैं कि पहले हिंदू कॉलेज में कोई भी घुस जाया करता था, लेकिन अब ऐसा नहीं होता क्योंकि अब सख्ती है. पहले कॉलेज के बाहर लड़के सड़क पर खड़े होकर बात करते रहते थे, जब छात्राओं के अभिभावक कॉलेज आते तो ये देखकर असहज होते थे. इकरा कहती हैं कि जब से सख्ती हुई है तब से छात्राओं के परिवार वाले भी खुश हैं, “तो हम क्यों अपने कॉलेज के खिलाफ खड़े हों.”
कॉलेज में ड्रेस कोड को लेकर वे बताती हैं, “जब हमारे स्कूल में एडमिशन हो रहा था, तभी हमसे एक फॉर्म भरवाया गया था ड्रेस कोड के बारे में, लेकिन सख्ती एक जनवरी से हुई है. यहां कुछ लड़कियां ऐसी आती हैं जो बुर्का तो पहन कर आ रही हैं, लेकिन न क्लास करती हैं और न ही पढ़ाई करती हैं. सिर्फ ग्राउंड्स में घूमती हैं.”
पास खड़ी उनकी साथी अतूफा कहती हैं कि सबको ड्रेस में आना चाहिए. ये जो लड़कियां कर रही हैं, वह गलत कर रही हैं. कई लड़कियां आईकार्ड तक नहीं दिखा रही हैं. अतूफा का मानना है कि इन लड़कियों ने बुर्का केवल पहचान न बताने के लिए पहना है, “न तो ड्रेस में हैं और न ही आईकार्ड है, तो कैसे भला उनको अंदर जाने दिया जाए?”
उपरोक्त छात्राएं बातचीत में बार-बार इस बात का जिक्र करती हैं कि वे अब पहले से ज्यादा सुरक्षित हैं.
इस बारे में कॉलेज के चीफ प्रॉक्टर प्रोफेसर एपी सिंह कहते हैं कि देखिए अब कोई विवाद नहीं है. सब मामला शांत हो गया है. सिंह कहते हैं, “बच्चों को कुछ गलतफहमी हो गई थी कि बुर्का गेट पर उतरवाया जा रहा है, जबकि ऐसा कुछ था नहीं. जबरदस्ती न्यूज़ बन गईं और खबर चल गई.”
यह पूछने पर कि क्या बुर्का नहीं उतरवाया जा रहा है? वे जवाब में कहते हैं, “बुर्का उतरवाया जा रहा है. उसके लिए चेंजिंग रूम बना है. इस बारे में हम लोगों ने 15 अक्टूबर में ही बच्चों को मैसेज दे दिया था कि महाविद्यालय में ड्रेस कोड लागू कर दिया गया है.”
वह एक पुरानी घटना का जिक्र करते हुए कहते हैं कि पहले कॉलेज के ही एक प्रोफेसर एयू खान के ऊपर पांच छह महीने पहले कॉलेज के गेट पर कुछ बाहरी लोगों ने हमला कर दिया था. इसलिए कॉलेज प्रशासन ने लोगों की पहचान करने के लिए ये कदम उठाया है. ये कदम इसलिए उठाए गए हैं ताकि बच्चों को किसी तरह की कोई दिक्कत न हो, उनकी पढ़ाई-लिखाई में कोई बाधा न आए. बच्चों ने भी इसमें सहयोग भी किया है.
वह कहते हैं, “हमें बुर्के से किसी तरह की कोई परेशानी नहीं है. बच्चे पहन कर आएं ,और चेंजिंग रूम में उतार दें और अंदर ड्रेस में आएं, तो किसी को कोई परेशानी क्यों होगी. 1 जनवरी से इस नियम को सख्ती से लागू कर दिया गया है. इसके बाद कुछ बाहरी बच्चों ने इसे लेकर प्रदर्शन किया, फोटो खिंचवाए, अपनी राजनीति की और चले गए.”
सिंह बताते है कि इस प्रकार से ड्रेस कोड सिर्फ हिन्दू कॉलेज में ही नहीं, बल्कि मुरादाबाद के अधिकतर कॉलेज में लागू है. साथ ही ऐसा ड्रेस कोड सिर्फ लड़कियों पर ही नहीं बल्कि लड़कों पर भी लागू होता है.
इस पूरे विवाद पर हमने कॉलेज के प्रिंसिपल प्रोफेसर सत्यव्रत सिंह रावत से भी बात की. जब हम उनके पास पहुंचे तो वह कॉलेज ग्राउंड में कुर्सी पर धूप में बैठे थे, और उनके अगल बगल अन्य शिक्षक बैठे थे. जबकि ग्राउंड में ही छात्र छात्राएं अपने-अपने गुट बनाकर कुछ पढ़ रहे थे तो कुछ बातचीत में मशगूल थे. इस दौरान कई छात्राएं हिजाब या स्कार्फ पहने भी बैठी थीं.
रावत कहते हैं, “एक-दो दिन बवाल हुआ था, अब ऐसा कुछ नहीं है. यह ड्रेस कोड आज से नहीं बल्कि 15 अक्टूबर से लागू है. एडमिशन के दौरान उनसे अचार संहिता भरवाई गई थी, उस पर बच्चे और उनके अभिभावक के हस्ताक्षर भी हैं.”
इस आचार संहिता का एक फॉर्म वह हमें भी देते हैं.
उनका कहना है कि यहां पर मुस्लिम कॉलेजों में भी ड्रेस कोड लागू है. प्रदर्शन कर रहे एक छात्र का नाम लेते हुए वह कहते हैं, “वह 2003 का पढ़ा लड़का, अभी तक छात्र ही बना घूम रहा है. उसने न जाने कौन सा ऐसा टॉनिक पी लिया जो अभी तक छात्र ही है. उन्हें कोई काम नहीं है. ऐसे लड़कों को रोकने का एक ही उपाय है, ड्रेस कोड. इस फैसले का बच्चों ने भी समर्थन किया है.”
वह आगे कहते हैं, “प्रदर्शन करने वाले कॉलेज के विद्यार्थी नहीं हैं. हमें किसी से कोई दिक्कत नहीं है, चाहे कोई स्कार्फ पहनकर आए या हेलमेट पहनकर, लेकिन यूनिफार्म जरूरी है. बुर्का चेंजिंग रूम में उतारना होगा. कुल मिलाकर हमें दिक्कत उससे है, जिसने यूनिफार्म नहीं पहनी है. बुर्के के नीचे कोई यूनिफॉर्म पहने या क्रिकेट की किट, इसका क्या मतलब है.”
हमने उनसे जानना चाहा कि जब ड्रेस कोड 15 अक्टूबर से लागू हो गया था, तो विवाद अब क्यों हो रहा है? वे जवाब में कहते हैं, “अब ये तो वो जानें कि किसी ने दवाई कब खाई है, और असर अब हो रहा है. इसमें क्या कर सकते हैं? बस हमने थोड़ी सी सहूलियत दे रखी थी कि आप उसे सिलवा लीजिए.”
कॉलेज के प्रिंसिपल का कहना है कि इस मुद्दे पर शहर के काजी साहब और सांसद भी उन्हीं के पक्ष में हैं. उन्होंने भी ड्रेस कोड का समर्थन किया है.
रावत कहते हैं कि कॉलेज में 12 हजार से ज्यादा छात्र छात्राएं हैं. अराजकता बहुत ज्यादा बढ़ रही थी, बाहरी लोग बहुत आ रहे थे अंदर, कई बार तो एक के साथ चार-चार लोग अंदर घुस आते थे. उसी को रोकने के लिए ये कदम उठाए गए हैं.
हमने स्पष्ट करना चाहा कि ये सख्ती लड़कियों के साथ भी है? रावत कहते हैं, “लड़कियां भी कम नहीं हैं, क्या वह अपराध नहीं कर रही हैं? क्या आप क्राइम पेट्रोल नहीं देखते हैं? कोई कम नहीं है, न लड़की, न लड़के. हमने जो फैसला लिया है यह मुस्लिम लड़कियों के खिलाफ नहीं बल्कि पक्ष में है. अच्छा अगर हमने किसी को हिजाब में रोका हो तो बात समझ आती है, हमने तो कभी किसी को हिजाब में रोका ही नहीं.”
इस बातचीत के बीच प्रिंसिपल रावत कुछ लड़कियों को आवाज लगाकर बुलाते हैं, और उनसे यूनिफॉर्म के अनुभव व ड्रेस कोड से कोई परेशानी अगर हो, उसे बताने को कहते हैं. वह लड़कियों से पूछते हैं कि आपको कैसा लग रहा है? इस पर सभी एक सुर में कहती हैं कि अब ज्यादा अच्छा लग रहा है.
बीए पार्ट वन कर रही तौबा कहती हैं, “अब ज्यादा अच्छा लग रहा है क्योंकि सारे बच्चे एक समान दिखाई दे रहे हैं. अब यहां पर जाति-धर्म का भी कोई भेदभाव नहीं लग रहा है. पहले कुछ भी पहन कर आ जाते थे लेकिन अब अच्छा है. प्रदर्शन करने वाले लोग गलत हैं. जब आपको दिक्कत है तो आप यहां क्यों एडमिशन ले रहे हैं, दूसरे भी तो कॉलेज हैं, जहां पर ब्वॉयज नहीं हैं.”
उनकी साथी महक अंसारी कहती हैं, “जब चेंजिंग रूम बना रखा है तो फिर बुर्का उतारने में क्या दिक्कत है? ये तो सब गलत बात है कि रोड पर बुर्का उतरवा रहे थे, मैं खुद बुर्का पहन कर आती हूं.”
वहीं बीए पार्ट वन में ही पढ़ने वाली रौशन सिद्दिकी कहती हैं, “हम कॉलेज प्रशासन के साथ हैं. जो हुआ ठीक हुआ है क्योंकि इश्यू बुर्के से नहीं है. ये सिर्फ बेवजह बवाल कर रहे हैं. अब हम पहले से ज्यादा सेफ हैं. पहले कोई भी कॉलेज में घुस आता था.”
क्या कहती हैं हिंदू छात्राएं
बीएससी बायोटेक फाइनल ईयर की पढ़ाई कर रही आकांक्षा सिंह कहती हैं, “अगर कॉलेज में ड्रेस है तो ड्रेस पहनकर ही आना चाहिए. अगर कोई बुर्का पहनेगा तो फिर ड्रेस तो अंदर छिप जाएगी तो फिर उसके क्या मायने रह जाएंगे? बच्चे सभी सेम हैं, इसमें धर्म दिखाने की कोई जरूरत ही नहीं है. यहां तो सब बच्चे समान हैं.”
उनकी साथी मधु मंशा कहती हैं, “पहले कॉलेज में कोई भी आ जाता था लेकिन तब कोई आईडी कार्ड वगैरह भी चेक नहीं होता था, लेकिन अब आईडी भी चेक होती है. पहले बाहरी लड़के भी अंदर आ जाते थे लेकिन अब ऐसा नहीं है. अब जिसके पास आईडी कार्ड होगा, जो ड्रेस में होगा, वही अंदर आएगा.”
प्रोफेसर आनंद कुमार हिंदू कॉलेज में डिफेंस स्टडी पढ़ाते हैं. जब हमने उनसे इस बारे में बात की तो वह कहते हैं कि कॉलेज का सिर्फ एक ही मकसद है, शिक्षार्थ आइए और सेवार्थ जाइए. बच्चे बाहर कुछ भी करें लेकिन कॉलेज में उन्हें सिर्फ पढ़ना चाहिए. हर संस्थान के कुछ नियम होते हैं और उनका पालन न करना ठीक नहीं है.
वह कहते हैं, “हिंदू कॉलेज में पहली बार ड्रेस कोड लागू नहीं हुआ है, यह पहले से है. कुछ मीडिया वालों ने भी भ्रामक खबरें चलाईं हैं. उन्होंने लिखा कि हिजाब बैन कर दिया है. जबकि उन्हें हिजाब और बुर्के का अंतर ही नहीं पता है. मैं 2001 से यहां पर पढ़ा रहा हूं. यहां सिर्फ समाजवादी पार्टी के यूथ संगठन के कुछ लड़के हैं जिन्होंने प्रदर्शन किया. मुझे लगता है उन्हें भी किसी ने चढ़ा दिया है, वर्ना वो ऐसी हरकत नहीं करते.”
इस प्रदर्शन का नेतृत्व कर रहे समाजवादी छात्र सभा के जिला अध्यक्ष असलम चौधरी कहते हैं, “इस मामले को गलत तरीके से लिया गया. जब यहां पर चेंजिंग रूम नहीं था तो यहां गेट पर लड़कियों का बुर्का उतरवाया जाता था. जब लड़की यहां बुर्का उठाएगी तो एक तरीके से तो अच्छा नहीं लगेगा. हमारी मांग थी कि लड़कियों को बुर्का पहन कर अंदर क्लास रूम तक जाने दिया जाए, उसके बाद वह चेंज करके अंदर चली जाएं. लेकिन अब उन्होंने गेट पर ही चेंजिंग रूम बना दिया है. हमारी यही मांग थी जो मान ली गई है. अब हमें कोई परेशानी नहीं है.”
असलम बताते है कि उन्होंने हिन्दू कॉलेज से बीकॉम व एमकॉम की पढ़ाई कई साल पहले की थी, और अब वे एलएलबी कर रहे हैं लेकिन यहां नहीं पढ़ते. उन्होंने बताया कि उन्हें मालूम हुआ यहां मुस्लिम लड़कियों से बुर्का उतारने या फिर अपने घर लौटने को कहा गया था, उसके बाद ही वो यहां आए. वे कहते हैं, “हमने ज्ञापन देकर चेंजिंग रूम की मांग की थी जो अब बन गया है इसलिए अब कोई बात नहीं है.”
हमने उनसे भी जानना चाहा कि क्या उन्हें लगता है कि हिजाब पर कोई पाबंदी है? असलम जवाब में कहते हैं, “हिजाब की तो कोई बात ही नहीं थी, बात तो सिर्फ बुर्के की थी. हिजाब पर तो पहले भी रोक नहीं थी. हमने ड्रेस कोड का भी कभी विरोध नहीं किया है. लेकिन अब जब हमारी बात को अदरवाइज ले रहे हैं तो हम क्या कर सकते हैं.”
वहीं समाजवादी छात्र सभा की राष्ट्रीय सचिव दुर्गा शर्मा कहती हैं, “देखिए इस बात को तो सिर्फ तूल दिया जा रहा है. हमारी तो सिर्फ इतनी सी मांग थी कि ड्रेस कोड आप लागू कीजिए, अगर यूनिवर्सिटी गाइडलाइंस में है तो कीजिए, हम स्वागत करते हैं.”
जब हमने उन्हें कॉलेज की गाइडलाइन्स का पत्र दिखाया तो वह कहती हैं, “ये तो अच्छी बात है. लेकिन यहां पर पहले चेंजिंग रूम नहीं था तो प्रिंसिपल ने हमसे लिखित में मांगा था, तो हमने उन्हें लिखित में दिया था इस बारे में. लेकिन जब मामला बहुत ज्यादा हाइलाइट हो गया तो इन्होंने चेंजिंग रूम बना दिया. हमारी मांग यही थी कि आपको इसे पहले से ही बना देना चाहिए था. अब चेंजिंग रूम बन गया है तो हमें अब कोई दिक्कत नहीं है.”
मामले में नया मोड़
एक हिंदू लड़की द्वारा मुस्लिम बनकर बुर्के का समर्थन करने से इस मामले में एक और मोड़ आ गया.
प्रदर्शन में एक हिंदू लड़की बुर्का पहनकर शामिल हुई थी. अपना नाम फरहा बताने वाली इस लड़की की जब पहचान की गई, तो वह हिंदू निकली.
बता दें कि इस लड़की ने कहा था कि बिना बुर्के के हमें बहुत असहज महसूस होता है. हम बुर्के के अंदर ड्रेस पहनकर आ रहे हैं तो बुर्का उतरवाने की क्या जरूरत है? छात्रा का यह बयान वायरल हो गया था.
जब इस मामले में एबीवीपी कार्यकर्ताओं ने धर्म छिपाकर बुर्के का समर्थन करने और बाहरी लोगों के साथ शामिल होने का आरोप लगाया, तो इस छात्रा ने ऐसा करने पर माफी मांग ली.
इस मामले पर हमने कोतवाली एसएचओ विप्लव शर्मा से भी बात की. शर्मा कहते हैं, “मेरी जानकारी में ऐसा कोई मामला नहीं है. हां, कॉलेज में काफी समय से ड्रेस कोड को लेकर विवाद चल रहा है, जिसका समर्थन छात्र और उनके परिजन भी कर रहे हैं. लेकिन मीडिया भ्रामक खबरें चला रहा है कि बुर्का विवाद है. जबकि ऐसा कुछ नहीं है.”