जोशीमठ आपदा और विकास योजनाओं की फेहरिस्त

जोशीमठ के संवेदनशील क्षेत्र में कम से कम 12,000 करोड़ की बड़ी परियोजनायें चल रही हैं और लोगों के अस्तित्व को इनसे खतरा है.

   bookmark_add
  • whatsapp
  • copy

यह ग्राउंड रिपोर्ट सीरीज, जोशीमठ आपदा पर हमारे एनएल सेना प्रोजेक्ट के तहत की जा रही है. इसमें हृदयेश जोशी उत्तराखंड के संकट से घिरे क्षेत्रों से ग्राउंड रिपोर्ट आपके लिए लाएंगे. इन ग्राउंड रिपोर्ट्स में योगदान देने के लिए यहां क्लिक करें.

----

सर्दियों में विंटर टूरिज्म और स्कीइंग कंपटीशन के लिए मशहूर औली में अभी सन्नाटा है. उसकी वजह है जोशीमठ पर छाया संकट. सारी होटल बुकिंग रद्द हो गईं और जोशीमठ पुलिस की गाड़ियों, विशालकाय बुलडोजरों, आपदा प्रबंधनकर्मियों और उन आंदोलित लोगों से भरा दिखता है जिनके घर, होटल या दुकानों में दरारें हैं. जोशीमठ शहर में घुसते ही सबसे पहले जो एक चीज ध्यान खींचती है वह है भवनों पर लगे लाल निशान जो बताते हैं कि ये इमारतें कभी भी गिर सकती हैं.  

जोशीमठ के क्षतिग्रस्त घरों की संख्या बढ़ती जा रही है.

जोशीमठ के क्षतिग्रस्त घरों की संख्या बढ़ती जा रही है.

हृदयेश जोशी

“हमने सोचा था पहाड़ कभी नहीं छोड़ेंगे”

जोशीमठ के सिंहधार इलाके में 56 साल के दरबान नैथवाल उन लोगों में से हैं जिन्हें अपना घर छोड़ना पड़ा है. उनके तीन मंजिला घर के हर कमरे में दरारें हैं और वह कभी भी गिर सकता है.

नैथवाल कहते हैं, “हमने सोचा था कि पहाड़ को नहीं छोड़ेंगे और यहीं रहेंगे. इसे आबाद रखेंगे इसलिए इतना बड़ा घर बनाया. लेकिन इस घर के पूरा बनने से पहले ही यह ध्वस्त हो रहा है.”

सिंहधार में दलित समुदाय की अच्छी खासी आबादी है और उनमें से बहुत सारे गरीब हैं जो खेती, पशुपालन या छोटामोटा काम कर गुजारा करते हैं. 75 वर्षीय शिवलाल का खेत पूरी तरह धंस जो चुका है जो उन्हें घर के लिए अनाज और पशुओं के लिए चारा देता था. 

शिवलाल का खेत अब खेती के लायक नहीं रहा. यही उनकी जीविका का साधन था.

शिवलाल का खेत अब खेती के लायक नहीं रहा. यही उनकी जीविका का साधन था.

हृदयेश जोशी

शिवलाल कहते हैं, “मेरी जमीन ही हमारे जीवन का सहारा है. हम राजमा और माल्टा की खेती कर उसे बाजार में बेचते थे और घर की जरूरत पूरी होती लेकिन अब यह जमीन पूरी तरह बर्बाद हो चुकी है. परिवार को पड़ोस में एक स्कूल में टिकाया है और मैं यहां जागकर जानवरों की देखभाल करता हूं.” 

जोशीमठ के जिन चार निकायों (वार्ड) में सबसे अधिक भूधंसाव हुआ है उनमें सिंहधार के अलावा सुनील, मनोहरबाग और मारवाड़ी शामिल हैं. प्रशासन का कहना है कि इन क्षेत्रों को यहां आसन्न संकट के मुताबिक कोर और बफर जोन में बांटा गया है और करीब 200 परिवारों को सुरक्षित जगहों में शिफ्ट किया गया है.  

जिलाधिकारी हिमांशु खुराना कहते हैं, “कुछ ऐसी इमारतें या भवन हैं जो ठीक स्थिति में हैं लेकिन वहां अगर आपात स्थित में कोई भूस्खलन वगैरह हो तो जर्जर इमारतों के गिरने से उनके आसपास के इन इलाकों पर भी असर पड़ सकता है. वहां से भी लोगों को हटाया जा रहा है.” 

बढ़ती आबादी, कारोबार का दबाव  

जोशीमठ की आबादी पिछले 100 साल में 50 गुना से अधिक बढ़ी है. धार्मिक और एडवेंचर टूरिज्म का प्रवेश द्वार होने के कारण इस शहर में रोजगार पाने के लिए लोग बसते गए. आज जोशीमठ-औली में 150 से अधिक छोटे बड़े होटल, लॉज और होम स्टे हैं और इनमें से हर एक में 50 लाख से लेकर करीब 10 करोड़ तक का निवेश किया हुआ है. 

जोशीमठ और औली में मिलाकर करीब 150 होटल और लॉज हैं.

जोशीमठ और औली में मिलाकर करीब 150 होटल और लॉज हैं.

पूरन भिलंगवाल

हरियाणा के व्यापारी पंकज बंसल ने जोशीमठ में 27 कमरों का होटल बनाया. वह खुद मानते हैं कि निर्माण कार्य में नियमों की अनदेखी होती है. बंसल के मुताबिक, “अगर सरकार कोई नियम बनाती है तो हम लोग भी इसे नहीं मानते. गलती हमारी भी है. सरकार जो नियम बनाती है कि कितने फ्लोर होने चाहिए वो भी तो एक आधार पर ही नियम बना रही है. लेकिन लोग परवाह नहीं करते और सोचते हैं कि हमारा काम हो जाना चाहिए और नतीजा बाद में देखा जाएगा.  

ग्लेशियरों के छोड़े मलबे और भूस्खलन से जमा मिट्टी पत्थरों पर बसा जोशीमठ कभी इतने बोझ के लिए तैयार नहीं था. सारा निर्माण बिना किसी योजना और रेगुलेशन के हुआ. 

भूगर्भ विज्ञानी वाई पी सुंदरियाल कहते हैं, “यह हैरान करने वाली बात है कि जोशीमठ जैसे संवेदनशील क्षेत्र में सरकार ने कभी कोई हाउस बिल्डिंग कोड लागू नहीं किया जिससे यहां आवास या होटल निर्माण यहां के नाज़ुक हालात को ध्यान में रखकर होता.” 

बड़ी विकास परियोजनाओं की भूमिका 

पर्यटन, व्यवसाय और आवास के अलावा जोशीमठ पर सबसे अधिक दबाव बढ़ा जलविद्युत और सड़क योजनाओं के कारण. जोशीमठ में पिछले चार दशकों में रोड और हाइड्रोपावर के लिए भारी तोड़फोड़ और विस्फोट किए गए जबकि मिश्रा कमेटी समेत तमाम विशेषज्ञ कमेटियों ने लगातार ऐसा न करने की चेतावनियां दी थीं. 

एनटीपीसी का ये हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट पिछले 17 साल से निर्माणाधीन है और लोग इसे शहर के धंसाव की वजह बता रहे हैं.

एनटीपीसी का ये हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट पिछले 17 साल से निर्माणाधीन है और लोग इसे शहर के धंसाव की वजह बता रहे हैं.

हृदयेश जोशी

1980 के दशक में यहां 400 मेगावॉट के विष्णुप्रयाग पावर प्रोजेक्ट की शुरुआत हुई जिसकी कीमत 1694 करोड़ थी. यह प्रोजेक्ट चालू हालात में है. 

साल 2006 में सरकारी कंपनी एनटीपीसी का प्रोजेक्ट शुरू हुआ. 520 मेगावाट के इस प्रोजेक्ट की कीमत शुरू में 2978.48 करोड़ थी जो बाद में  बढ़कर 5867.38 करोड़ हो गई. 

तपोवन-विष्णुगाड़ प्रोजेक्ट का काम 2012 में पूरा हो जाना था लेकिन यह आज तक जारी है. 

इसके अलावा 2012 में 444 मेगावाट का विष्णुप्रयाग पीपलकोटी प्रोजेक्ट शुरू हुआ जिसकी कीमत 2491 करोड़ थी. अब इसकी कीमत 3860 करोड़ हो चुकी है और अभी इसका 50% काम भी पूरा नहीं हुआ है.  

इसके अलावा जोशीमठ के पास छह किलोमीटर लंबे हेलंग-मारवाड़ी बाइपास का काम चल रहा है जिसकी कीमत 200 करोड़ है. 

स्थानीय लोग अब खुलकर इन भारी भरकम योजनाओं के खिलाफ बोल रहे हैं. जोशीमठ के बाज़ार में एनटीपीसी गो बैक के पोस्टर लगा दिये गए हैं. हालांकि एनटीपीसी ने साफ कहा है कि उसके प्रोजेक्ट का जोशीमठ हादसे में कोई रोल नहीं हैं लेकिन विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं उच्च हिमालयी इलाकों में भारी प्रोजेक्ट नहीं होने चाहिए. 

क्या कहते हैं विशेषज्ञ?

पिछले करीब पांच दशकों में कई विशेषज्ञ रिपोर्टों ने जोशीमठ क्षेत्र में भारी निर्माण के खिलाफ चेतावनी दी है. 1976 की मिश्रा कमेटी रिपोर्ट के अलावा 2006 में और 2009 में प्रकाशित विशेषज्ञ रिपोर्टों में यह चेतावनी है. फिर 2021 में हुए हादसे के बाद भी कम से कम तीन रिपोर्ट्स जोशीमठ और उसके आसपास निर्माण पर चेतावनी दे चुकी  हैं.   

टिहरी के रानी चौरी कैंपस के कॉलेज ऑफ फॉरेस्ट्री में कार्यरत भूगर्भ विज्ञानी सरवस्ती प्रकाश सती ने 2021 के चमोली हादसे के बाद (जिसमें ऋषिगंगा में बाढ़ के कारण 200 लोगों की मौत हुई थी) दो अन्य विशेषज्ञों के साथ इस क्षेत्र का अध्ययन किया और रिपोर्ट तैयार की. 

डॉ सती कहते हैं, “साल 2021 में नेचर जियो साइंस में एक शोध प्रकाशित हुआ जिसमें कहा गया है कि उच्च हिमालयी क्षेत्रों में ग्लेशियर पीछे खिसक रहे हैं जिस कारण यहां जो हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट बन रहे हैं या बनाए जाने हैं उन्हें इजाजत नहीं मिलनी चाहिए क्योंकि वो हमेशा खतरे की जद में हैं और उनके कारण नदी जो लोग नदी के बहाव की दिशा में रहते हैं उनके अस्तित्व को खतरा है.”

जोशीमठ से 25 किलोमीटर दूर बदरीनाथ मार्ग पर स्थित छोटे से गांव लामबगड़ में इसका प्रमाण मिलता है. स्थानीय लोग कहते हैं यहां 2013 में आई बाढ़ - जिसमें लामबगड़ पूरी तरह बह गया था - से हुई तबाही का एक कारण जेपी पावर प्रोजेक्ट का होना भी था. 

लामबगड़ में जेपी की विष्णु प्रयाग जलविद्युत परियोजना के बाहर सरकार ने एक चेतावनी पट्टा (वॉर्निंग बोर्ड) लगाया है जिसमें यह लिखा गया है कि “ट्रांसमिशन लाइन या मशीनों में अकस्मात दोष पैदा होने पर” प्लांट को बंद करना पड़ सकता है और नदी का जलस्तर बढ़ सकता है. चेतावनी साफ है कि लोग अपनी और मवेशियों की सुरक्षा सुनिश्चित करें और “किसी भी दुर्घटना के लिए आप स्वयं जिम्मेदार होंगे.”

जोशीमठ से 30 किलोमीटर दूर लामबगड़ में प्राइवेट कंपनी जेपी के पावर प्रोजेक्ट के बाहर लगी चेतावनी.

जोशीमठ से 30 किलोमीटर दूर लामबगड़ में प्राइवेट कंपनी जेपी के पावर प्रोजेक्ट के बाहर लगी चेतावनी.

हृदयेश जोशी

डॉ सती विशाल सड़क योजनाओं और उसके लिए अनियंत्रित तोड़फोड़ पर भी सवाल करते हैं. उनके मुताबिक, “चारधाम यात्रा मार्ग के तहत पहाड़ को खोदकर बहुत बड़े पैमाने पर ढलानों को मोबिलाइज कर दिया है. इससे सैकड़ों नए लैंडस्लाइड अभी चार धाम परियोजना के सक्रिय हो गए हैं. इसके अलावा चट्टानों को खोद कर निकल रहे सारे पत्थर मलबे को सीधे नदियों में डाला जा रहा है. जबकि उसके लिए डंपिंग यार्ड होने चाहिए.”

इको सेंसटिव जोन घोषित करने की मांग 

जोशीमठ पर इसरो के नेशनल रिमोट सेंसिंग सेंटर (एनआरएससी) की प्राथमिक रिपोर्ट भी गंभीर स्थिति बताती है. जहां  पिछले साल अप्रैल से नवंबर तक कुल 8.9 सेंटीमीटर धंसाव हुआ वहीं 27 दिसंबर से 8 जनवरी के बीच 12 दिनों में ही 5.4 सेंटीमीटर का धंसाव दर्ज किया गया. आश्चर्यजनक रूप से इसरो-एनआरएससी की रिपोर्ट अभी वेबसाइट से हटा दी गई है. आपदा प्रबंधन के अधिकारी भी मीडिया से बात नहीं कर रहे हैं. 

ऐसे में कई विशेषज्ञ मानते हैं कि जिस तरह संवेदनशील इकोसिस्टम की हिफाजत के लिए 2012 में गोमुख से उत्तरकाशी तक के क्षेत्र को इको सेंसटिव जोन घोषित किया गया उसी तरह का प्रावधान जोशीमठ के संरक्षण के लिए भी होना चाहिए क्योंकि यह अति संवेदी भूकंपीय क्षेत्र (Seasmic zone -5) में आता है. 

गंगा आह्वान से जुड़े पर्यावरण और आरटीआई कार्यकर्ता हेमंत ध्यानी कहते हैं, “इको सेंसटिव जोन बनने का फायदा होता है कि उस क्षेत्र विशेष में  गतिविधियों को सूचीबद्ध कर दिया जाता है. कौन सी गतिविधियां प्रतिबंधित होंगी, कौन सी हो सकती हैं और कौन सी प्रोत्साहित की जाएंगी. जोशीमठ जैसे एतिहासिक शहर को बचाने के लिए यही पश्चाताप हो सकता है.” 

विख्यात पर्यावरणविद् और चारधाम यात्रा मार्ग के लिए बनी विशेषज्ञ समिति के चेयरमैन रह चुके रवि चोपड़ा कहते हैं आजादी के बाद से अब तक इस गंभीरता को नहीं समझा गया कि पहाड़ी शहरों या जगहों का विकास कैसे हो, जिसकी कीमत आज हर ओर चुकानी पड़ा रही है. 

चोपड़ा के मुताबिक, “जब कोई ठोस विचार नहीं है तो पहाड़ी शहरों का विकास अंधाधुंध तरीके से हुआ. जोशीमठ ही नहीं शिमला, मसूरी या गैंगटोक में भी बेतरतीब निर्माण हुआ है क्योंकि पहाड़ और मैदानी हिस्सों में विकास के अंतर को नहीं समझा गया. इसके पीछे एक बड़ा कारण भ्रष्टाचार है.”

हालांकि सरकार अभी इको सेंसटिव जोन घोषित करने की मांग को तूल नहीं दे रही. जिलाधिकारी खुराना कहते हैं, “हमें विशेषज्ञों की राय का इंतजार करना चाहिए. जल्दीबाजी में कोई प्रतिक्रिया नहीं करनी चाहिए. यहां के लोगों की अर्थव्यवस्था पर्यटन से जुड़ी है. लोग सबसे बड़े हितधारक हैं. इकोलॉजी और पर्यावरण महत्वपूर्ण है लेकिन लोगों और विशेषज्ञों की राय के आधार पर ही आगे कोई फैसला लिया जाए तो अच्छा होगा.”

जोशीमठ त्रासदी पर न्यूज़लॉन्ड्री द्वारा रिपोर्ट्स की श्रृंखला का यह दूसरा भाग है.

आप पहला भाग यहां पढ़ सकते हैं.

subscription-appeal-image

Support Independent Media

यह कोई विज्ञापन नहीं है. कोई विज्ञापन ऐसी रिपोर्ट को फंड नहीं कर सकता, लेकिन आप कर सकते हैं, क्या आप ऐसा करेंगे? विज्ञापनदाताओं के दबाव में न आने वाली आजाद व ठोस पत्रकारिता के लिए अपना योगदान दें. सब्सक्राइब करें.

Subscribe Now
Also see
दरकता जोशीमठ: करीब 700 मकानों में दरारें, घरों को कराया जा रहा खाली
“सरकार हमारी अनदेखी मत करो, जो सही है वो कर के दिखाओ”
subscription-appeal-image

Press Freedom Fund

Democracy isn't possible without a free press. And the press is unlikely to be free without reportage on the media.As India slides down democratic indicators, we have set up a Press Freedom Fund to examine the media's health and its challenges.
Contribute now
newslaundry logo

Pay to keep news free

Complaining about the media is easy and often justified. But hey, it’s the model that’s flawed.

Comments

We take comments from subscribers only!  Subscribe now to post comments! 
Already a subscriber?  Login


You may also like