“सरकार हमारी अनदेखी मत करो, जो सही है वो कर के दिखाओ”

ऐतिहासिक गांव रेणी में नये सत्याग्रह की तैयारी. चिपको आंदोलन के लिये मशहूर रेणी गांव में महिलाएं जोशीमठ में धंसाव के बाद सरकार को चेतावनी दे रही हैं.

   bookmark_add
  • whatsapp
  • copy

यह ग्राउंड रिपोर्ट सीरीज, जोशीमठ आपदा पर हमारे एनएल सेना प्रोजेक्ट के तहत की जा रही है. इसमें हृदयेश जोशी उत्तराखंड के संकट से घिरे क्षेत्रों से ग्राउंड रिपोर्ट आपके लिए लाएंगे. इन ग्राउंड रिपोर्ट्स में योगदान देने के लिए यहां क्लिक करें.

----

जोशीमठ से कोई 22 किलोमीटर दूर बसे ऐतिहासिक लेकिन संकटग्रस्त रेणी गांव के लोग एक बार अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं. रेणी 1970 के दशक में हुए मशहूर चिपको आंदोलन के लिये जाना जाता है, जहां महिलाओं ने गौरा देवी के नेतृत्व में जंगलों के काटे जाने का विरोध किया और पेड़ों से लिपट गईं. यह दिलचस्प संयोग है कि रेणी में जंगलों को बचाने के इस नायाब आन्दोलन की इबारत उसी दौरान लिखी गई जब गढ़वाल के कमिश्नर एम सी मिश्रा ने संवेदनशील जोशीमठ के साथ छेड़छाड़ न किये जाने की चेतावनी वाली रिपोर्ट दी थी. लेकिन जब आज जोशीमठ दरक रहा है तो रेणी के लोगों में अपने संकटग्रस्त गांव को लेकर फिक्र बढ़ गई है. 

जोशीमठ से ताज़ा हुई दो साल पुरानी यादें 

ये एक महत्वपूर्ण तथ्य है कि ऋषिगंगा नदी के तट पर बसा रेणी गांव, चीन से लगे सीमावर्ती क्षेत्र में है और उन पहाड़ी गांवों में है जो अभी दरक रहे हैं. दो साल पहले, 7 फरवरी 2021, को ऋषिगंगा में आई बाढ़ से रेणी गांव को काफी क्षति पहुंची और 5 लोगों की जान गई थी. 

रेणी की ममता राणा कहती हैं, “ऋषिगंगा में बाढ़ से यहां स्थित हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट पूरी तरह बह गया. तब पूरा रेणी हिलने लगा था मानो वह खुद नदी में समा जायेगा. कई हफ्तों तक लोग अपने घरों में नहीं सोये और पहाड़ के ऊपर जंगल में जाकर रात बिताते थे.” 

न्यूज़लॉन्ड्री ने 2021 में भी रेणी गांव का दौरा किया था. हम एक बार फिर इस गांव का हाल जानने पहुंचे जहां लोगों में जोशीमठ पर छाये संकट के बाद एक बार फिर डर और गुस्सा है. लोगों का कहना है कि आपदा की संभावना वाला गांव होने के बावजूद रेणी के लोगों को अब तक कहीं और क्यों नहीं बसाया गया है. 

मलकी देवी क्रोधिक स्वर में कहती हैं, “हमारा पूरा गांव खतरे में है. यहां घर-घर में दरारें हैं. पिछली तबाही (7 फरवरी 2021) के वक्त सरकार के लोग हमें देखने तक नहीं आये. सरकार हमारी अनदेखी मत करो. जो सही है वह करके दिखाओ. अब हम कंपनी को यहां नहीं आने देंगे और किसी को जंगल में घुसने नहीं देंगे.”

हाइड्रो कंपनी के खिलाफ गुस्सा 

जिस तरह अभी जोशीमठ के लोग एनटीपीसी के हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट को शहर की बर्बादी के लिये ज़िम्मेदार बता रहे हैं, उसी तरह रेणी के लोग भी कहते हैं कि उनके गांव में बने निजी कंपनी के हाइड्रो प्रोजेक्ट ने उनका जीवन तबाह किया. यहां बना 13.2 मेगावॉट का हाइड्रो प्रोजेक्ट 2021 की बाढ़ में पूरी तरह नष्ट हो गया था. 

रेणी में महिला मंगल दल प्रमुख बीना देवी कहती हैं, “वह प्रोजेक्ट तो बह गया लेकिन उसके लिये बनने वाली सुरंग ने हमारा बहुत नुकसान किया. उसकी खुदाई, तोड़फोड़ और विस्फोट से हमारे खेत खराब हुए और हमारा पूरा पहाड़ हिल गया.” 

बीना देवी कहती हैं कि जब उन्होंने कंपनी के खिलाफ अवैध निर्माण और नियमों के उल्लंघन की शिकायत की तो उन पर ही मुकदमा थोप दिया गया था. 

बीना देवी के मुताबिक, “हम कंपनी से लड़े और हाईकोर्ट तक गए. लेकिन उन्होंने खुद ही हमारे खिलाफ ही केस कर दिया कि हमें इनसे डर है. हम उन्हें अपने जंगल में न जाने और लकड़ी न काटने को कहते थे, लेकिन जिसने भी आवाज़ उठाई उसके खिलाफ उन्होंने केस कर दिया. ”

विशेषज्ञों द्वारा रेणी के पुनर्वास की सिफारिश   

जानकारों ने रेणी को असुरक्षित मानते हुए यहां रह रहे परिवारों को कहीं और बसाने की सिफारिश की है. साल 2021 में, पहले तीन विशेषज्ञों (जिनमें जियोटैक एक्सपर्ट वैंकरेश्वरलु, भूविज्ञानी जीवीआरजी आचार्येलु और पहाड़ी ढलान के एक्सपर्ट शामिल हैं) ने रेणी को भूधंसाव वाला क्षेत्र बताया और कहा कि नदी के बहाव से उस पहाड़ी का कटाव हो रहा है जिस पर रेणी बसा है. उसके बाद राज्य के एक और भूविज्ञानी दीपक हटवाल ने भी इस गांव में रह रहे परिवारों को कहीं और बसाने को कहा.

रेणी वासियों के पुनर्वास के लिये दो जगहों की पहचान भी की गई, लेकिन पुनर्वास नहीं हुआ. चमोली के जिलाधिकारी हिमांशु खुराना ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, “हमें रेणी वासियों के बसाने के लिये उपयुक्त और सुरक्षित ज़मीन नहीं मिल पा रही है. इस कारण पुनर्वास का काम रुका है लेकिन हम ज़मीन की तलाश कर रहे हैं. लोग अगर कहीं और ज़मीन लेकर बसना चाहते हैं तो हमने वह विकल्प भी खुला रखा है. किसी और जिले में भी उन्हें बसाया जा सकता है लेकिन सुरक्षित ज़मीन की उपलब्धता ज़रूरी है.”

अभी रेणी गांव में 55 परिवार हैं लेकिन आधे से ज़्यादा गांव खाली है. रेणी के ग्राम प्रधान भवान सिंह राणा कहते हैं, “कोई अपनी खुशी से घर नहीं छोड़ना चाहता और फिर ये तो विश्वविख्यात गौरा देवी का गांव है. लेकिन हमें डर लगता है कि अगर गांव धंस गया तो क्या होगा?” वह कहते हैं, “यहां 2021 की आपदा में 5 स्थानीय लोगों ने अपनी जान गंवाई, फिर भी सरकार ने कोई काम नहीं किया. हमें पता चला है कि कुल 37 गांव विस्थापित किये जाने हैं लेकिन रेणी का नंबर कब आएगा पता नहीं. विस्थापन में टाइम लगता है लेकिन भूविज्ञानियों ने कहा है कि रेणी गांव खतरे में है और लोगों को हटाया जाए. इसलिये हम कहते हैं कि पूर्ण विस्थापन न हो तो जो लोग सबसे अधिक ख़तरे में हैं कम से कम पहले उन्हें ही हटा दिया जाए.”

एक नये सत्याग्रह की तैयारी

गढ़वाल के कई गांव आज संकट आसन्न हैं. पृथ्वी के भौगोलिक इतिहास में हिमालय काफी नया पहाड़ है और उच्च हिमालयी और मध्य हिमालय को अलग करने वाली मेन थ्रस्ट लाइन (एमसीटी) इसी क्षेत्र से होकर जाती है. पिछले कुछ सालों में लगातार आपदाओं की बढ़ती संख्या से संकटासन्न इलाकों में लोग विनाश के खतरे को समझ रहे हैं. जोशीमठ संकट से रेणी वासियों को लगता है कि उन्हें अपना सत्याग्रह तेज़ करना पड़ेगा.  55 की जयमां देवी कहती हैं, “मैंने जोशीमठ में अपना घर बर्बाद होने से दुखी लोगों को रोते देखा, क्योंकि हमने भी यहां वो दुख झेला है. अकेले कोई आगे नहीं बढ़ सकता, कोई लड़ाई नहीं जीती जा सकती. अगर सब गांव वाले इकट्ठा हो जायें तो ही यह लड़ाई जीती जा सकती है.”

जोशीमठ त्रासदी पर न्यूज़लॉन्ड्री द्वारा रिपोर्ट्स की श्रृंखला का यह पहला भाग है.

Also see
दरकता जोशीमठ: करीब 700 मकानों में दरारें, घरों को कराया जा रहा खाली
17 सालों का अज्ञातवास: आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में बुनियादी अधिकारों के अभाव में जीने को मजबूर छत्तीसगढ़ के विस्थापित आदिवासी
subscription-appeal-image

Press Freedom Fund

Democracy isn't possible without a free press. And the press is unlikely to be free without reportage on the media.As India slides down democratic indicators, we have set up a Press Freedom Fund to examine the media's health and its challenges.
Contribute now
newslaundry logo

Pay to keep news free

Complaining about the media is easy and often justified. But hey, it’s the model that’s flawed.

Comments

We take comments from subscribers only!  Subscribe now to post comments! 
Already a subscriber?  Login


You may also like