भारत के शहर बढ़ रहे हैं, मास्टर प्लान के अभाव में

भारत के कुछेक शहरों को छोड़कर यह देखा गया है कि ज्यादातर शहरों का मास्टर प्लान नॉन प्लानिंग प्रोफ़ेशनल या प्राइवेट कम्पनियों द्वारा बनाया जाता है. इससे बेतरतीब शहरीकरण बढ़ा जा रहा है.

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"रिफॉर्म इन अर्बन प्लानिंग कैपेसिटी इन इंडिया" 2021 की रिपोर्ट के अनुसार वर्तमान में भारत का कोई भी शहर टॉप 50 ग्लोबल रैंकिंग के शहरों में नहीं आता. भारत के कुल 7933 नगरों को शहरी नगर (अर्बन टाउंस) की श्रेणी में रखा गया है. कुल वैश्विक शहरी जनसंख्या का 11 फीसदी हिस्सा भारत में होने के कारण इसे विश्व का दूसरा सबसे बड़ा अर्बन सिस्टम भी कहा जाता है.

परंतु भारतीय शहरों का मास्टर प्लान नहीं होना एक बहुत बड़ी समस्या है. रिफॉर्म इन अर्बन प्लानिंग कैपेसिटी इन इंडिया 2021 नीति आयोग की रिपोर्ट है. जो कि नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार और उत्तर प्रदेश के वर्तमान मुख्य सचिव एवं आवास एवं शहरी कार्य मंत्रालय के तत्कालीन सचिव दुर्गा शंकर मिश्रा के समय में तैयार की गई थी.

भारत के गिनती के कुछ शहरों को छोड़कर यह देखा गया है कि वर्तमान में भारतीय शहरों का मास्टर प्लान नॉन प्लानिंग प्रोफेशनल या प्राइवेट कम्पनीज के द्वारा बनाया जाता है, जिसका परिणाम हर छोटे-बड़े शहरों में अनियोजित विकास, यातायात की समस्या, हरित क्षेत्र की समस्या, आपदा प्रबंधन योजना का अभाव, फ्लोर एरिया अनुपात का दुरुपयोग, संकीर्ण गलियां, सर्विस लाइन में बाधा, दुर्घटना संभावित क्षेत्र, आग जैसी दुर्घटना के रूप में देखने को मिलती है. किसी नगर का मास्टर प्लान किसी नॉन नगर योजनाकारनगर या नॉन प्लानिंग प्रोफेशनल से बनवाना यह दर्शाता है कि जैसे बीमारी का इलाज डॉक्टर से कराने के बजाए किसी कारपेंटर या ड्राइवर से कराया जा रहा है.

नगर नियोजन पद्धति में नगर को एक मानव शरीर की संज्ञा दी गई है, इसके यातायात मार्गों को धमनियों एवं शिराओं, ट्रांसपोर्ट हब, इंस्टीट्यूशनल एरिया, कमर्शियल एरिया, रीक्रिएशनल एरिया, स्पेशल इकोनामिक जोन आदि को शरीर के महत्वपूर्ण अंगों से तुलना की गई है, जिस कारण इसके सुनियोजित विकास, स्वास्थ्य एवं प्रबंधन हेतु नगर योजनाकारों को विशेषतः सिटी डॉक्टर्स का दर्जा दिया गया है.

शहर के सुनियोजित विकास एवं रेगुलेशन के लिए मास्टर प्लान को वैधानिक इंस्ट्रूमेंट के तौर पर देखा जाता है. परंतु भारत के लगभग 65 प्रतिशत शहरों का मास्टर प्लान, लोकल एरिया प्लान, जोनल प्लान नहीं होने के कारण इन शहरों में हरित क्षेत्र की समस्या, ट्रैफिक कंजेशन, बाढ़ की समस्या, महामारी की समस्या, अनियोजित विकास देखने को मिलता है. जिसका भुक्तभोगी उस शहर में रहने वाली जनता होती है.

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ अर्बन अफेयर, नई दिल्ली ने भी माना है कि कि स्टेट टाउन एंड कंट्री प्लानिंग डिपार्टमेंट में लगभग 12,000 नगर योजनाकारों की आवश्यकता है. जबकि 4,000 नगर योजनाकार की सैंक्शन पोस्ट आधी खाली ही रह जाती है. हमने पाया कि भारत में कुल 49 से अधिक ऐसे इंस्टीट्यूट हैं जो डिग्री प्रोग्राम इन अर्बन प्लानिंग एवं अन्य अलाइड सब्जेक्ट जैसे पर्यावरण एवं यातायात प्रबंधन में प्लानिंग की डिग्री प्रदान करते हैं.

दो दशकों से अधिक समय से बैचलर ऑफ प्लानिंग के स्नातकों को उत्तीर्ण होने के पश्चात भी विकास प्राधिकरणों, नगर निकायों, ग्राम तथा नगर नियोजन विभागों में सही स्थान प्राप्त नहीं हो पा रहा है और इसकी पुष्टि तमिलनाडु, तेलंगाना, गुजरात और अन्य राज्यों के अर्बन प्लानिंग ग्रैजुएट्स ने भी की हैं. इससे यह प्रतीत होता है कि राज्य सरकार एवं यूनियन टेरिटरी प्रशासन, अर्बन प्लानिंग ग्रैजुएट्स को पूर्ण रूप से न्यायोचित स्थान नहीं दे पा रहा हैं या इन राष्ट्रीय महत्व के संस्थानों से उत्तीर्ण स्नातकों कि शिक्षा प्रणाली में बदलाव कि आवश्यकता है.

दिल्ली विकास प्राधिकरण में कार्यरत टाउन प्लानिंग ऑफिसर ने हमें बताया कि जिस प्रकार राजस्थान, पंजाब, उड़ीसा जैसे राज्यों ने अपने सर्विस रिक्रूटमेंट रूल में संशोधन करते हुए योजना स्नातकों अथवा अर्बन प्लानिंग ग्रैजुएट्स को असिस्टेंट टाउन प्लानर एवं टाउन प्लानिंग संबंधित पोस्ट के लिए इलेजिबल माना है उसी प्रकार अन्य राज्यों एवं यूनियन टेरिटरीज को भी संबंधित सर्विस रिक्रूटमेंट रूल में संशोधन करते हुए नगर योजनाकार्स अथवा योजना स्नातकों को उचित प्राथमिकता देनी चाहिए.

हमने यह भी पाया कि उत्तर प्रदेश सरकार ने 1860 असिस्टेंट टाउन प्लानर / नगर नियोजको की भर्ती संबंधित विभाग में करने को इच्छुक है. इस कारण नए नगर योजनाकार्स /असिस्टेंट टाउन प्लानर / नगर नियोजक की भर्ती करने से पूर्व वर्तमान सर्विस रिक्रूटमेंट रूम में संशोधन करने की आवश्यकता है, परंतु क्या इसमें अर्बन प्लानिंग ग्रैजुएट्स को प्राथमिकता दी जायगी यह भी एक गंभीर विषय है.

क्या है, विकल्प?

वर्तमान में लगभग 1800 अर्बन प्लानिंग ग्रैजुएट्स प्रतिवर्ष भारतीय विद्यालयों एवं संस्थानों से उत्तीर्ण होते हैं. 74 वे कांस्टीट्यूशनल अमेंडमेंट एक्ट 1992 के तहत स्टेट गवर्नमेंट द्वारा 18 फंक्शन म्युनिसिपल गवर्नमेंट को प्रदान किए गए हैं, जिनमें टाउन प्लानिंग एक है. इसके अतिरिक्त रिपोर्ट के अनुसार शहरों की योजना, प्रबंधन, स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए 2030 तक "हेल्थी सिटी फॉर ऑल" प्राप्ति का लक्ष्य रखा गया है.

तो क्या इतनी बड़ी संख्या में इस युवा नगर योजनाकार्स को विभिन्न विकास प्राधिकरणों, इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट अथॉरिटी, स्पेशल एरिया डेवेलोपमेंट अथॉरिटी, रीजनल प्लानिंग बोर्ड, नगरीय निकायों में उचित प्रकिया का पालन करते हुए भर्ती नहीं किया जा सकता?

लोकहित को ध्यान में रखते हुए भारतीय राज्य सरकारों एवं यूनियन टेरिटरीज को शहर के उचित, सुनियोजित, समग्र, सर्वांगीण विकास हेतु नगर योजनाकार्स अथवा अर्बन प्लानिंग ग्रैजुएट्स को सर्विस रिक्रूटमेंट रूल में संशोधन एवं विभागीय प्रकिया का पालन करते हुए संबंधित विभाग में उचित स्थान देते हुए मास्टर प्लान, जोनल प्लान, सिटी डेवलपमेंट प्लान, लोकल एरिया प्लान आदि तैयार करने पर बल देना चाहिए.

(डाउन टू अर्थ से साभार)

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