रवीश कुमार का इस्तीफा, दैनिक जागरण की कारस्तानी और डंकापति

दिन ब दिन की इंटरनेट बहसों और खबरिया चैनलों के रंगमंच पर संक्षिप्त टिप्पणी.

WrittenBy:अतुल चौरसिया
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डंकापति का दरबार दो हफ्ते से स्थगित था क्योंकि गुजरात और हिमाचल प्रदेश में चुनाव चल रहे थे. धृतराष्ट्र आर्यावर्त की खबरों से अनजान थे. इसलिए एक अनजान बेचैनी से परेशान थे. संजय की वापसी के बाद एक बार फिर से दरबार सजा. क्या बात हुई, आप स्वयं देखिए.

इसी दौरान पत्रकारिता की दुनिया में एक बड़ा उलटफेर हुआ. एनडीटीवी की बहुमत हिस्सेदारी प्रणव रॉय के हाथों से निकल कर अडानी समूह के पास चली गई. इसके साथ ही एक और उलटफेर हुआ. एनडीटीवी के प्राइम टाइम का पर्याय बन चुके रवीश कुमार ने भी चैनल के बदले हालात को देखते हुए एनडीटीवी से इस्तीफा दे दिया.

रवीश कुमार के इस्तीफे के बाद दरबारी हुड़कचुल्लुओं में चुल्ल मच गई. नफरती चिंटुओं ने उल्लास में ट्विटर पर नारेबाजी की. नीचताओं की नई सीमा निर्धारित की गई. पाया गया कि नीचता की पुरानी सीमाएं अब उतनी नीच नहीं रह गईं कि आज के कुछ दरबारी एंकर-एंकराओं की नीचता को छू सकें.

इसके अलावा बात हुई दैनिक जागरण की उस सुपर एक्सक्लूजिव ख़बर की जो सिर्फ और सिर्फ जागरण के पास ही थी.

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