दिल्ली विकास प्राधिकरण ने कस्तूरबा नगर के घरों को तोड़ने का नोटिस जारी किया है. यहां करीब 800 मतदाता हैं. इनमें से ज्यादातर लोग वोट देने का बहिष्कार कर रहे हैं.
"हम वोट किसी को नहीं देंगे. क्या सिर्फ हमारे वोट की कीमत है हमारी कोई कीमत नहीं?. जब चुनाव आता है और वोट लेना होता है तब हम ऑथराइज्ड हो जाते हैं और जब चुनाव चला जाता है तब हम अनऑथराइज्ड हो जाते हैं. मोदी ने कहा था "जहां झुग्गी वहीं मकान" तो फिर हमारे मकान क्यों तोड़े जा रहे हैं. अब तो दो ही रास्ते हैं या तो मोदी हमें हमारे घर में रहने दें या फिर हम पर बुलडोजर चला दें."
यह कहना है कस्तूरबा नगर की रहने वाली 70 वर्षीय शांति देवी का. वह सवालिया लहजे में कहती हैं, "क्या गरीब का घर-घर नहीं होता, उसका परिवार नहीं होता, क्या वह सिर्फ चुनाव में वोट देने के लिए बना है."
शांति देवी अपने तीन बच्चों और उनके परिवार के साथ पिछले 50 वर्षों से कस्तूरबा नगर में रह रही हैं. वह बताती हैं कि जब उनका तीन माह का बच्चा उनकी गोद में था तभी उनके पति की मौत हो गई थी. उन्होंने मजदूरी करके और लोगों के घरों में झाड़ू पोछा करके पाई-पाई जोड़ कर कस्तूरबा नगर में पक्का मकान बनाया है. जिसे अब दिल्ली विकास प्राधिकरण द्वारा तोड़ा जा रहा है.
जब वह हमसे मिलीं तो उनके हाथ में एक पम्पलेट भी था जिसमें लिखा था "घर नहीं तो वोट नहीं".
दरअसल दिल्ली में एमसीडी चुनाव चल रहा है. इस बीच शाहदरा जिले के कस्तूरबा नगर के करीब 300 लोग इस चुनाव में मतदान का बहिष्कार कर रहे हैं.
बहिष्कार का कारण दिल्ली विकास प्राधिकरण द्वारा जुलाई महीने में इनके घरों को तोड़ने का दिया गया नोटिस है.
इसी वर्ष जुलाई महीने में दिल्ली विकास प्राधिकरण ने कस्तूरबा नगर में एक नोटिस लगाया था, जिसमें लिखा था कि यह झुग्गी एक अनाधिकृत झुग्गी है. यहां से एक सड़क बनने वाली है जिसके लिए कुछ झुग्गियों को तोड़ा जाएगा. इसके विरोध में कस्तूरबा नगर के निवासियों ने मोहल्ले में पोस्टर भी लगाएं हैं. पोस्टर में साफ शब्दों में लिखा है "क्यों करें मतदान, जब कोई नहीं बचा रहा हमारे मकान."
इसके अलावा पोस्टर में लिखा है कि “घर नहीं तो वोट नहीं. 300 से 500 दलित परिवारों का घर छीना जा रहा है. 800 लोगों को बेरोजगारी में धकेला जा रहा है. जनता को जरूरत है तो न पीएम सुनता है, न सीएम सुन रहा है."
बता दें कि कस्तूरबा नगर कहने को तो झुग्गी है लेकिन यहां सबके पक्के मकान हैं. यहां पर रहने वाले करीब 95% लोग दलित सिख समुदाय के हैं. यह लोग 1947 में देश के विभाजन के बाद पाकिस्तान के पंजाब प्रांत से दिल्ली आए थे. और तभी से यहीं रह रहे हैं.
उस दौर को याद करते हुए 90 वर्षीय गुरु सिंह कहते हैं, "उस वक्त तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरु ने करीब 25 एकड़ जमीन में 300 परिवारों को बसाया और 145 लोगों को पक्का मकान भी दिया. बाकी लोगों को भी मकान देने का वादा किया गया लेकिन वह फिर बन नहीं पाया. हम पहले यहां पर टेंट लगाकर रहे फिर 1960 के करीब हमने घर बना लिया. मैंने 1960 में हाऊस टैक्स भी दिया है. उसके बाद हमारे राशन कार्ड बने, बिजली के कनेक्शन हुए पानी के कनेक्शन हुए और तब से लेकर अब तक हम रह रहे हैं. 70 साल में आज तक किसी भी सरकार ने हमसे नहीं कहा कि यह जगह अनाधिकृत है. न ही किसी ने हमें यहां से जाने को कहा. लेकिन अब हमें यहां से जाने को कहा जा रहा है और हमारे घरों को तोड़ने की बात हो रही है. क्या इसी दिन के लिए हमें आजादी मिली थी? क्या हम इस देश के नागरिक नहीं हैं?"
पुराने दिनों को याद करते हुए गुरु दयाल सिंह भावुक हो जाते हैं. वह कहते हैं, "इतने सालों तक कांग्रेस की सरकार रही लेकिन किसी नेता ने हमें जाने को नहीं कहा बल्कि हमारा सपोर्ट किया. लेकिन जब से बीजेपी और आम आदमी पार्टी की सरकार बनी है तब से हमें तरह-तरह से परेशान किया जा रहा है. हमें हमारे घर से उजाड़ने की कोशिश की जा रही है."
कस्तूरबा नगर में रहने वाले 26 वर्षीय विक्रम दिल्ली यूनिवर्सिटी से पढ़ाई करने के बाद एक कंपनी में सेल्स मैनेजर का काम कर रहे हैं. उनके दादा बंटवारे के बाद पाकिस्तान के पंजाब प्रांत से यहां आए थे और यहीं बस गए थे. विक्रम कहते हैं कि हम यहीं की मिट्टी में पैदा हुए यहीं बड़े हुए हमें कभी नहीं लगा कि कभी हमारा घर तोड़ दिया जाएगा.
वह आगे कहते हैं, "एक तरफ भारतीय जनता पार्टी प्रधानमंत्री मोदी की तस्वीर और जहां झुग्गी वहीं मकान के नारे के साथ एमसीडी चुनाव में प्रचार कर रही है. और खुद को झुग्गी वासियों के हितैषी के रूप में पेश कर रही है लेकिन दूसरी तरफ बुलडोजर चलाकर हम झुग्गी वासियों का दमन कर रही है."
दिल्ली विकास प्राधिकरण द्वारा लगाए गए नोटिस में साफ लिखा है कि यहां से 60 फुटा रोड बनना है इसलिए झुग्गियों को तोड़ा जाएगा. लेकिन विक्रम कुछ और बताते हैं. वह कहते हैं, "पहले जो सड़क पास हुई थी वह कस्तूरबा नगर झुग्गी और उसके बगल में बने डीडीए फ्लैट्स के बीच से जा रही थी लेकिन अब डीडीए फ्लैट के लोगों ने बीच की खाली जगह पर अवैध पार्किंग बना ली है जिसकी वजह से सड़क नहीं बन पा रही है.”
यहां के स्थानीय बीजेपी विधायक डीडीए फ्लैट्स वालों के साथ हैं इसलिए उस अवैध पार्किंग को हटाने के बजाय हमारे मकानों को तोड़ा जा रहा है. हमने दिल्ली के मुख्यमंत्री से भी मुलाकात की और उन को ज्ञापन दिया लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई और जब हम बीजेपी विधायक ओमप्रकाश शर्मा के पास गए तो उन्होंने धमकाते हुए कहा कि झुग्गी तो टूटेगी ही जो करना है कर लो.
फिलहाल मामला कोर्ट में है. हाईकोर्ट ने डीडीए से कहा था कि वह झुग्गी वासियों के साथ मिलकर कोई रास्ता निकालें. लेकिन अभी तक डीडीए द्वारा किसी भी तरह की कोई मीटिंग झुग्गी वासियों के साथ नहीं की गई है. जिसकी वजह से यहां के लोगों के बीच घर टूटने का भय बढ़ता जा रहा है. विक्रम बताते हैं कि हाईकोर्ट ने साफ कहा है कि अगर डीडीए और झुग्गीवासी आपस में कोई रास्ता निकालते हैं तो वह बेहतर होगा.
कस्तूरबा नगर एमसीडी के वार्ड नंबर 207 में आता है. यहां कुल 800 के करीब वोटर हैं. इनमें से ज्यादातर लोग वोट देने का बहिष्कार कर रहे हैं. मोहल्ले में लगे पोस्टरों और लोगों के गुस्से को देखते हुए सभी पार्टियों के प्रत्याशी यहां पर चुनाव प्रचार करने से बच रहे हैं.
यहां पर रहने वाली 80 वर्षीय कांता देवी कहती हैं, "अब चुनाव आया तो सब लोग हाथ पैर जोड़ रहे. माताजी का पैर छू रहे थे. लेकिन पिछले 4 महीनों से हम अपना घर बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं तब कोई हमारा साथ देने नहीं आया. तो फिर हम किसी को वोट क्यों दें. हमने सबसे साफ शब्दों में कह दिया है कि जो हमारा घर बचाने के लिए हमारी लड़ाई में साथ आएगा हम उसी को वोट देंगे नहीं तो किसी को नहीं देंगे."
बता दें कि अगस्त महीने में दिल्ली विकास प्राधिकरण ने दिल्ली से अनाधिकृत कालोनियों को हटाने के लिए डेमोलिशन अभियान चलाया था. इसके विरोध में जगह-जगह पर प्रदर्शन भी हुए. कस्तूरबा नगर के लोगों ने भी डेमोलिशन के विरोध में कई बार जंतर-मंतर पर प्रदर्शन किया. कस्तूरबा नगर के युवाओं ने नई दिल्ली यूनिवर्सिटी के छात्रों के साथ मिलकर एक कमेटी भी बनाई है जिसका नाम है "कस्तूरबा नगर युवा संघर्ष समिति."
इस समिति का काम कस्तूरबा नगर के लोगों के अधिकारों के लिए कोर्ट और सड़क पर लड़ाई लड़ना है. एक तरफ यह समिति डीडीए के फैसले को कोर्ट में चुनौती दे रही है तो वहीं दूसरी तरफ यह कमेटी प्रदर्शन भी कर रही है.
कस्तूरबा नगर युवा संघर्ष समिति की सदस्य और दिल्ली यूनिवर्सिटी की छात्रा संगीता गीत ने बताया, "हमारा एक साथी जो दिल्ली यूनिवर्सिटी में पढ़ता है वह यहीं का रहने वाला है. जब डीडीए का नोटिस आया तो उसने हमें बताया. फिर हम सब छात्रों ने मिलकर कस्तूरबा नगर के लोगों से बात की और यह कमेटी बनाई. हमने एक लीगल टीम भी बनाई है जो कोर्ट में लड़ाई लड़ रही है. हमारा मकसद सिर्फ इतना है कि जो लोग यहां पर पिछले 70 सालों से रह रहे हैं उनको वैसे ही रहने दिया जाए. हमने इसके लिए मुख्यमंत्री से भी मुलाकात की लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हो रही है."
न्यूज़लॉन्ड्री ने इस संबंध में स्थानीय भाजपा विधायक ओमप्रकाश शर्मा से भी बात की. उन्होंने चुनावी व्यस्तता और समय के अभाव को कारण बताते हुए इस मुद्दे पर टिप्पणी करने से मना कर दिया.
इस मुद्दे पर हमने वार्ड नं 207 से चुनाव लड़ रहे भाजपा, आप और कांग्रेस प्रत्याशियों से भी बात की. कांग्रेस प्रत्याशी सुनिता देवी कहती हैं, “कांग्रेस हमेसा झुग्गीवीलों के साथ खड़ी रहने वाली पार्टी है. हम लोगों से बात कर रहे हैं और उन्हे समझा रहे हैं कि वो कांग्रेस पर भरोसा रखें. हम किसी का घर नहीं टूटने देंगे”
वहीं भाजपा प्रत्याशी डॉ चैरी सेन कहते हैं, “ऐसा नहीं है कस्तूरबा नगर के सभी लोग मतदान का बहिष्कार कर रहे हैं. कुछ लोग ऐसा कर रहे हैं. वहां कि जनता मोदी जी के साथ है क्योकि वह सबका साथ और सबका विकास कर रहे हैं”
इस पूरे मामले पर आप प्रत्याशी ज्योति रानी तो बात नहीं करती हैं लेकिन उनके प्रतिनिधि और पति सुभाष लाला समस्या के लिए भाजपा को जिम्मेदार मानते हैं. वे कहते हैं, “कस्तूरबा नगर के लोग काफी नाराज हैं और उनकी नाराजगी भाजपा विधायक ओम प्रकाश शर्मा से है. हमारी पार्टी ने डीडीए के नोटिस के बावजूद लोगों का घर टूटने का विरोध किया है इसकी वजह से अभी तक घर नहीं टूटे लेकिन बीजेपी के विधायक बार-बार एप्लीकेशन लगाकर नोटिस भिजवा देते हैं.”
दिल्ली में 4 दिसंबर को एमसीडी के लिए मतदान होना है जिसके लिए चुनाव आयोग दिल्ली के प्रत्येक मतदाता को मतदान करने के लिए प्रोत्साहित कर रहा है. ऐसे में कस्तूरबा नगर के दलित सिख समुदाय द्वारा मतदान का बहिष्कार करना कई तरह के सवाल खड़े करता है.