दिन ब दिन की इंटरनेट बहसों और खबरिया चैनलों के रंगमंच पर संक्षिप्त टिप्पणी.
इस हफ्ते धृतराष्ट्र-संजय संवाद में बात डंकापति के विज्ञापन से वैराग्य की और साथ में बात उनकी गालियों से मुठभेड़ की. डंकापति ने पहले गाली देने वाली सेना बनाई, इसके बाद जब दूसरों ने भी देखा-देखी गालियों की फैक्ट्री लगा ली तब डंकापति ने उन गालियों को पौष्टिक आहार में बदलने वाली फैक्ट्री लगा ली, जहां गालियों को गला-पचा कर विटामिन और मिनरल की पौष्टिक गोलियां तैयार होती है.
इसी दौरान भारत विश्वकप के सेमीफाइनल में हार गया. हुड़कचुल्लू एंकर एंकराओं ने खेल को खलिहान बना दिया. बनाने को तो वो श्मशान भी बना सकते थे लेकिन उन्होंने थोड़ा लिहाज रखा, देश उनका शुक्रगुजार है. इसी हड़बोंग के बीच से हम भारतीय टेलीविज़न पत्रकारिता का एक कोहिनूर चुनकर लाए हैं. इसमें अंधविश्वास, पाखंड, फरेब, पोंगापंथ और लोगों को गुमराह करने वाले सभी तत्व मौजूद हैं. टेलीविज़न पत्रकारिता में यह उल्लेखनीय ऐतिहासक योगदान एबीपी न्यूज़ ने किया है.