ईडब्ल्यूएस कोटे पर अंग्रेजी अख़बारों के संपादकीय: 'स्वागत योग्य' लेकिन 'अपने पीछे असहज कर देता है’

सुप्रीम कोर्ट ने ईडब्ल्यूएस कोटे पर तीन-दो से विभाजित फैसला सुनाया और इसकी संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा.

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सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को 103वें संवैधानिक संशोधन की वैधता को बरकरार रखा, जो आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश और सरकारी नौकरियों में 10 प्रतिशत आरक्षण प्रदान करता है.

पांच न्यायाधीशों की पीठ ने इस पर 3:2 से विभाजित फैसला दिया और चार अलग-अलग फैसले सुनाए. प्रमुख अंग्रेजी अखबारों ने आज इस फैसले पर संपादकीय प्रकाशित किए.

द हिंदू ने कहा कि "सिर्फ आय के मापदंड पर आधारित होने के कारण यह संदेहास्पद है और समावेशी नहीं है. संपादकीय की सलाह है कि सरकार ईडव्ल्यूएस का दायरा बाकी समूहों के लिए भी खोले और इसमें आय की सीमा को और कम करना चाहिए. शायद इसे उस स्तर पर लाया जाना चाहिए जिस स्तर पर सरकार इनकम टैक्स वसूलती है. क्रीमी लेयर की पहचान करके इसमें उन गरीब तबकों को शामिल किया जा सकता है जो ओबीसी और एससी-एसटी समूहों में शामिल तो हैं पर किसी तरह का लाभ नहीं पा रहे हैं, उनको EWS कोटे के तहत लाभान्वित किया जा सकता है."

टाइम्स ऑफ इंडिया ने कहा कि ईडब्ल्यूएस कोटा "स्वागत" योग्य था और सुप्रीम कोर्ट ने आर्थिक आरक्षण को "वैधता की मुहर" प्रदान की. लेकिन समाचार पत्र ने आगाह किया कि "फैसले के अल्पमत और बहुमत के बीच 50% की सीमा के सवाल पर गहरी असहमति ने शायद भविष्य के विवादों के लिए मंच तैयार कर दिया है."

टीओआई ने कहा, "ओबीसी, एससी और एसटी को ईडब्ल्यूएस कोटे से बाहर करना राजनीतिक दृष्टि से जरूरी समझा गया था, क्योंकि भारत सरकार ने अनारक्षित समूहों के बीच काफी नाराजगी महसूस की थी… लेकिन जैसे-जैसे चुनाव कार्यक्रम व्यस्त होता जाएगा, ईडब्ल्यूएस के फैसले के बाद एक और तरह की राजनीति शुरू हो सकती है."

इंडियन एक्सप्रेस अपने विचार को लेकर बेबाक था. उसने चेतावनी दी कि ईडब्ल्यूएस कोटा "जाति के साथ वर्ग को रखकर, केंद्र के एक नया कल्याणकारी ढांचा तैयार करने के प्रयास का एक हिस्सा है.”

संपादकीय में कहा गया, "सरकार को असहमति के फैसले में जताई गई चिंताओं को सामने रखकर, दलितों के साथ-साथ सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के डर को दूर करना चाहिए... हालांकि गरीबी को भेदभाव की वजह के रूप में शामिल करने और उसके निवारण का प्रस्ताव स्वागत योग्य है, लेकिन अब भी इस आर्थिक हिस्सेदारी का विस्तार ही प्रमुख अनिवार्यता है."

हिंदुस्तान टाइम्स ने "ईडब्ल्यूएस निर्णय कोटा कानून को गढ़ेगा" शीर्षक वाले संपादकीय में कहा कि ये फैसला एक "महत्वपूर्ण निर्णय" था जो "पिछड़ेपन की मिसालों और पुरानी परिभाषाओं को तोड़ता है, जो हमेशा सामाजिक आर्थिक स्थितियों और उत्पीड़न के इतिहास पर आधारित होती हैं.”

लेख में आगे कहा गया, "ईडब्ल्यूएस कोटा के साथ, देश की एक बड़ी जनसंख्या अब किसी न किसी रूप में आरक्षण की पात्र है. यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या यह विस्तार आरक्षण के आसपास की राजनीति को बदलेगा, ख़ास तौर पर अगड़ी जाति समूहों के मुखर विरोध और अब खारिज हो चुके कोटे व योग्यता के संबंधों के बीच.”

टेलीग्राफ के संपादकीय में कहा गया कि ईडब्ल्यूएस कोटा "सुखद" है, लेकिन "अपने पीछे असहज कर देता है" क्योंकि यह "निश्चित रूप से उन लोगों के लिए नहीं है, जो आरक्षण की अन्य छतरियों के नीचे आते हैं.”

संपादकीय में कहा गया, "अब 2024 आ रहा है, इसमें कोई संदेह नहीं है कि उच्च जाति बहुसंख्यक समुदाय आभारी होगा. बड़ी गैर-उच्च जाति की आबादी शायद काम मोहित हो. उनमें से भी जो गरीब हैं, जिन्हें अक्सर आरक्षण का लाभ मिलना मुश्किल हो जाता है, वे महसूस कर सकते है कि अगड़ी जातियों को आधिकारिक तौर पर एक अतिरिक्त लाभ दिया जा रहा है; व्यापक रूप से दलित, बहिष्कार करने वाली इस गरीब हित नीति के महत्व को समझने में विफल हो सकते हैं."

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