दिन ब दिन की इंटरनेट बहसों और खबरिया चैनलों के रंगमंच पर संक्षिप्त टिप्पणी.
धृतराष्ट्र संजय संवाद में इस हफ्ते चर्चा एक नए वाद की. इसका नाम है मार्क्सवादी आम जनता पार्टी कांग्रेस. यह नया वाद छोटे नवाब ने ईजाद किया है. इस वाद का तर्क है कि राजनीति व्यावहारिक होनी चाहिए. किसी भी कीमत पर जीत मिलनी चाहिए, लेकिन इस नए वाद की अपनी एक मजबूरी है. यह एक किस्म का अवसरवाद है. सच यही है कि यह स्लिपरी स्लोप है. यानी एक ढलान वाली सड़क जिस पर फिसलन वाली काई भी मौजूद है. तो यहां गिरने का खतरा यह है कि आप जब गिरते हैं तो आपके लुढ़कने की गति चक्रवद्धि ब्याज की तरह बढ़ती है.
दूसरी तरफ एक बार फिर से स्वर्ग की उसी चाय की टपरी पर अल सुबह एक नई अड़ी जमी. नेहरू भी थे, पटेल भी थे, और साथ में थे विंस्टन चर्चिल.
रेडियो की एक खबर सुनकर चर्चिल के नथुने फड़कने लगे. फनफनाते हुए कहा ये कौन-कौन से सपेरे-भूखे-नंगे बीबीसी पर खबर पढ़ने लगे हैं. लेकिन पूरी खबर सुनकर चर्चिल को मूर्छा आने लगी. गश खाकर गिरने को हो आए. उन्होंने नेहरू से पूछा मिस्टर नेहरू क्या यह सच है. इस मौके पर नेहरू ने पटेल से कनखियां मिलाई, मुस्कराए और अश्वत्थामा हतो, नरो वा कुंजरो वाले अंदाज में जवाब दिया मिस्टर चर्चिल, ग़ज़ियों में बू रहेगी जब तलक ईमान की, तख़्ते लंदन तक चलेगी तेग हिंदुस्तान की. यह सुनकर चर्चिल का दिल पूरी तरह बैठ गया.