दिन ब दिन की इंटरनेट बहसों और खबरिया चैनलों के रंगमंच पर संक्षिप्त टिप्पणी.
दिल्ली सरकार के पूर्व समाज कल्याण मंत्री राजेंद्र पाल गौतम को पिछले हफ्ते इस्तीफा देना पड़ा. इसके साथ ही भाजपा और आप दोनों की कलई खुल गई. बाबा साहब भीमराव आंबेडकर से जुबानी जमा प्रेम दर्ज करवा रही भाजपा ने गौतम पर हमला बोला. बदले में बाबा साहब की फोटो लगाकर उनकी विरासत पर टकटकी लगाए बैठी आप ने उनका इस्तीफा ले लिया. इसके साथ ही नोएडा फिल्मसिटी की बैरकों से जाहिलियत, कमअक्ली और फिरकापरस्ती का नया नाला बह निकला. इसकी दुर्गंध खबरिया चैनलों के जरिए देश के घर-घर तक पहुंची.
गौतम ने विजयादशमी के मौके पर अपने हजारों समर्थकों के साथ जो शपथ ली वह 14 अक्टूबर, 1956 को हिंदू धर्म छोड़कर बौद्ध धर्म अख्तियार करने के अवसर पर डॉ. भीमराव आंबेडकर ने अपने अनुयायियों को दिलाई थी. गौतम वही 22 दीक्षाएं दोहरा रहे थे. नागपुर की ऐतिहासिक दीक्षा भूमि पर ये बाइसों शपथ आज भी पत्थर पर खुदी हुई हैं. खुद भारत सरकार ने इनका प्रकाशन आंबेडकर समग्र में किया है.
खबरिया चैनलों के हुड़कचुल्लुओं ने आस्था जैसी पवित्र चीज को चिरकुटई में बदल दिया है. खिलजी लगभग हजार साल पहले पैदा हुआ. वह कैसा दिखता था, कैसा नहीं यह कल्पना की बात हो सकती. रावण, हनुमान या राम कैसे दिखते थे वह तो काल से परे की बात है. इसे बावजूद यह नरक फैल चुका है कि रावण को कैसा दिखना चाहिए और हनुमान जी को कैसा दिखना चाहिए.
इस बार की टिप्पणी में बात राजा रवि वर्मा की. साल 1848 में पैदा हुए राजा रवि वर्मा. कागज पर सबसे पहले राजा रवि वर्मा ने ही भारतीय देवी देवताओं की तस्वीरें उकेरी, फिर बड़े पैमाने पर अपने प्रिटिंग प्रेस में उनकी छपाई की. इससे 19वीं सदी के अंत तक आम भारतीयों के घर-घर में तमाम देवी देवताओं की तस्वीरें कैलेंडर के जरिए पहुंचने लगीं.
इसके अलावा इस बार की टिप्पणी में दो नफरती चिंटुओं की कहानी जिन्होंने टेलीविज़न के परदे को अपने घामड़, अनपढ़ और अहंकार से भर दिया है.
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