पीएफआई बैन: शाहीन बाग प्रदर्शन की नेता शाहीन कौसर पुलिस हिरासत में

दिल्ली में मंगलवार को शाहीन कौसर समेत करीब 30 लोगों को हिरासत में लिया गया है. वहीं बुधवार की सुबह पीएफआई को पांच साल के लिए बैन कर दिया.

WrittenBy:अबान उस्मानी
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शाहीन कौसर, सरकार के विवादित नागरिकता कानून के खिलाफ आयोजित शाहीन बाग विरोध प्रदर्शन का जाना- माना चेहरा हैं. देशभर में पीएफआई के खिलाफ चल रही दूसरे दौर की छापेमारियों के दौरान मंगलवार की सुबह दर्जनों सामाजिक- राजनैतिक कार्यकर्ताओं समेत शाहीन को भी हिरासत में ले लिया गया.

कौसर जो कि शाहीन बाग में एक स्कूल चलाती हैं, उन 30 लोगों में से एक हैं जिन्हें दिल्ली के जामिया नगर, निज़ामुद्दीन और रोहिणी से गिरफ़्तार किया गया है. वो पीएफआई की राजनैतिक शाखा, सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया से जुड़ी हुई थीं.

इसी तरह की कई छापेमारियों को मध्य प्रदेश, कर्नाटक, असम, दिल्ली, महाराष्ट्र, तेलंगाना, और उत्तर प्रदेश में भी अंजाम दिया गया. राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की अगुवाई में की गई पहले दौर की छापेमारियों में कम से कम 22 लोगों को केरल, कर्नाटक और मध्य प्रदेश से 20-20 लोगों को, तमिलनाडु से 10, असम से 9, उत्तर प्रदेश से 8, आंध्र प्रदेश से 5, मध्य प्रदेश से 4 को और पुडुचेरी व दिल्ली से 3-3 लोगों को जबकि राजस्थान से 2 लोगों को हिरासत में लिया गया है.

पीएफआई पर आतंकवाद की फंडिंग, मुसलमान नौजवानों को हथियारों का प्रशिक्षण देने और उन्हें कट्टरपंथी बनाकर आतंकी संगठनों में शामिल कराने के आरोप हैं. संगठन के वरिष्ठ कार्यकारियों और उनके परिवारजनों ने इस तरह के आरोपों से इंकार करते हुए इसे सरकार की नीतियों का विरोध करने वाले लोगों को चुन- चुनकर प्रताड़ित करने की कार्रवाई कहा है.

साल 2018 की एक आंतरिक रिपोर्ट के अनुसार, एनआईए ने पीएफआई पर आरोप लगाया था कि इस संगठन द्वारा भारतीय राजनीति के सांप्रदायिकरण के प्रयास किए जा रहे थे और साथ ही यह अपने सदस्यों को हिंसा के लिए भी तैयार कर रहा था.

पीएफआई के महासचिव अनीस अहमद ने उनके संगठन के खिलाफ चल रहे मामलों को "मनगढंत" कहा है और इस सबको राजनैतिक बदले की कार्रवाई का एक उदाहरण करार दिया है.

मंगलवार को हिरासत में लिए गए लोगों के परिवारजन इस कार्रवाई और इसको अंजाम देने के तरीके, दोनों के ही प्रति हैरानी जाहिर कर रहे हैं.

शोएब अहमद उन लोगों में से एक हैं जिन्हें उसके घर से हिरासत में ले लिया गया. उनके पिता वक़ार अहमद का कहना है, "मेरा बेटा बेगुनाह है. उसके खिलाफ कोई शिकायत नहीं थी. अब कोई सुनवाई नहीं होती इस मुल्क में. कोई नोटिस नहीं दिया गया. मुझे नहीं समझ आ रहा है कि ये सब क्यों हो रहा है."

करीब 45 साल के वक़ार पेशे से प्रॉपर्टी डीलर हैं. छापेमारी के दौरान पुलिस ने उनका फोन भी जब्त कर लिया.

शोएब दिल्ली विश्वविद्यालय के ज़ाकिर हुसैन कॉलेज के स्नातक छात्र हैं. उनके परिवार के अनुसार पीएफआई से उसका किसी तरह का कोई संबंध नहीं था.

शोएब की मां मुमताज ने हमें बताया, "हमारे घर के बाहर के शोर-शराबे से मेरी नींद खुली और मैंने देखा कि बहुत सारे पुलिस वाले हमारा दरवाजा पीट रहे थें. वो उसकी किताबें, उसका लैपटॉप, उसका फोन सब कुछ ले गए. उन्होंने ये भी नहीं बताया कि वो शोएब को लेकर कहां जा रहे हैं. बेटे की सलामती को लेकर न जाने कितने परेशान करने वाले ख्याल आते रहते हैं. उसने कभी कुछ गलत नहीं किया."

शोएब का परिवार पुलिस तक पहुंचने के लिए कानूनी मदद पाने की कोशिश कर रहा है.

शोएब सोशल मीडिया पर मानवाधिकार समूहों के एक छात्र संगठन नेशनल कंफेड्रेशन ऑफ ह्यूमन राइट्स ऑर्गेनाइजेशन्स (एनसीएचआरओ) के पोस्ट्स शेयर करता रहा होगा. इन पर टिप्पणी करने वाले हिंदू राष्ट्रवादी इस पर पीएफआई से जुड़े होने के आरोप लगाते हैं. एनसीएचआरओ के महासचिव पी कोया व सचिव मोहम्मद युसुफ भी उन लोगों में से एक हैं जिनको पिछले हफ़्ते पीएफआई के सदस्यों की बड़े पैमाने पर गिरफ़्तारियों के दौरान जांच एजेंसी अपने साथ ले गई है.

नाम न जाहिर करने की शर्त पर शोएब के एक दोस्त ने कहा, "इसमें कुछ भी भड़काऊ नहीं है. बदकिस्मत से, पीएफआई का ठप्पा भर लग जाने से आम जनता के बीच काम करने वाले बुद्धिजीवी और उदारवादी लोग भी समर्थन में नहीं आ रहे हैं."

एनसीएचआरओ ने अपने शीर्ष नेताओं की गिरफ्तारी और शोएब के साथ कथित जुड़ाव के बारे में हमारे सवालों का कोई जवाब नहीं दिया. अगर हमें उनकी तरफ से कोई प्रतिक्रिया मिलती है तो इस रिपोर्ट को अपडेट कर दिया जाएगा.

शाहीन बाग के निवासी एन अहमद आधी रात को हुई छापेमारी के चश्मदीद हैं, हालांकि वो तब तक बाहर नहीं निकले जब तक कि "वे चले नहीं गए". “वहां 20-25 वर्दीधारी पुलिसकर्मी और तीन सादे कपड़ों में थे. मैंने कई टीमों को देखा."

पीएफआई के शीर्ष नेतृत्व पर हो रही छापेमारियों और गिरफ्तारियों के बाद से दिल्ली में पीएफआई का कार्यालय बंद है. पिछले सप्ताह गिरफ्तार किए गए लोगों में संगठन के अध्यक्ष ओएमए अब्दुल सलाम, उपाध्यक्ष ईएम अब्दुल रहमान, राष्ट्रीय सचिव नसरुद्दीन अल मरम और दिल्ली प्रमुख परवेज अहमद शामिल हैं. एसडीपीआई के संस्थापक ई अबूबकर के साथ भी ऐसा ही हुआ.

पीएफआई के एक पदाधिकारी ने नाम न जाहिर करने की शर्त पर कहा, "पूरे भारत के शीर्ष नेतृत्व और दिल्ली में कैडर को उठा लिया गया है. हमें यह भी नहीं पता कि मंगलवार को कितने लोगों को गिरफ्तार किया गया है. अराजकता पसरी हुई, हर किसी ने होंठ सिल रखे हैं और लोग सिमट कर बैठ गए हैं. यह और कुछ नहीं बल्कि तानाशाही ही है."

पीएफआई के सूत्रों ने कहा कि जल्द ही मीडिया को एक बयान जारी किया जाएगा.

दिल्ली पुलिस के पीआरओ ने न्यूज़लॉन्ड्री द्वारा इस मामले पर टिप्पणी करने के अनुरोधों का कोई जवाब नहीं दिया. अगर हमें कोई प्रतिक्रिया मिलती है तो इस रिपोर्ट में अपडेट कर दिया जाएगा.

हालांकि समाचार एजेंसी एएनआई ने दिल्ली पुलिस के हवाले से कहा है कि दिल्ली पुलिस का यह आरोप है कि मंगलवार को हिरासत में लिए गए लोग "देशव्यापी हिंसक विरोध" की योजना बना रहे थे.

पहले से ही ऐसे कयास लगाए जा रहे थे कि केंद्रीय गृह मंत्रालय गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत पीएफआई पर प्रतिबंध लगाने के लिए कमर कस चुका है.

उत्तर प्रदेश और कर्नाटक की सरकारों से इस संगठन को प्रतिबंधित करने की मांग की जा चुकी थी. झारखंड ने एक कदम आगे बढ़ते हुए 2018 में ही इस समूह पर प्रतिबंध लगा दिया था और यह आरोप लगाया था कि इसके सदस्य इस्लामिक स्टेट से "प्रभावित" थे. लेकिन राज्य के उच्च न्यायालय द्वारा यह प्रतिबंध हटा दिया गया था. मद्रास उच्च न्यायालय में इस "कट्टरपंथी" संगठन पर प्रतिबंध लगाने की मांग करने हेतु दायर एक जनहित याचिका को भी खारिज किया जा चुका है.

इसी साल जुलाई में मीडिया द्वारा यह रिपोर्टिंग की गई थी कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के नेतृत्व में संपन्न हुई एक अंतरधार्मिक बैठक में पीएफआई के खिलाफ एक प्रस्ताव पारित किया गया था.

हालांकि प्रमुख मुस्लिम मौलवी मौलाना सलमान नदवी जो कि बैठक में डोभाल के साथ मौजूद थे, ने बाद में कहा कि उन्हें ऐसी किसी भी मांग के बारे में पता नहीं था और इस बात से भी इनकार किया कि इस तरह का प्रस्ताव उनकी सहमति से पारित किया गया था.

एक अन्य प्रमुख इस्लामी विद्वान ने नाम न बताने की शर्त पर न्यूज़लॉन्ड्री से कहा, “मुझे सिर्फ इतना बताया गया था कि यह एक अंतरधार्मिक बैठक है. पीएफआई कभी भी एजेंडे में शामिल नहीं था.”

बता दें कि भारत सरकार ने बुधवार की सुबह ही पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया, यानी पीएफआई को पांच साल के लिए बैन कर दिया है. इसके अलावा आठ और संगठनों पर कार्रवाई की गई है. गृह मंत्रालय की ओर से इन संगठनों को बैन करने का नोटिफिकेशन जारी कर दिया गया है. केंद्र सरकार ने यह कार्रवाई (अनलॉफुल एक्टिविटी प्रिवेंशन एक्ट) यूएपीए के तहत की है. सरकार ने कहा कि पीएफआई और उससे जुड़े संगठनों की गतिविधियां देश की सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा हैं.

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