स्वर्ग में बुलबुल: नेहरू-ज़फ़र-सावरकर संवाद वाया चायवाला

दिन ब दिन की इंटरनेट बहसों और खबरिया चैनलों के रंगमंच पर संक्षिप्त टिप्पणी.

WrittenBy:अतुल चौरसिया
Date:
   

धृतराष्ट्र-संजय संवाद की वापसी, साथ में इस हफ्ते एक कहानी. यह कहानी साल 2047 में लिखी गई है. आज़ादी के ठीक सौ साल बाद. कहानी का शीर्षक है ‘स्वर्ग में बुलबुल’. हमारा सनातन चाय वाला तमाम लवाज्मे और गाजेबाजे के साथ स्वर्ग पहुंच चुका है. वहां पहुंचते ही उसने सबसे पहला काम किया चाय की एक टपरी डाल दी. सल्तनते हिंदुस्तान के तख्त पर कई साल तक राज करने के बाद भी उसकी फकीरी गई नहीं.

हर सुबह की कसरत के बाद नेहरू, पटेल, आज़ाद, भगत सिंह, बहादुर शाह जफ़र, सावरकर, गोलवलकर आदि उसी चाय की टपरी पर चाय पीने और तफरीह के लिए पहुंचते थे. टपरी पर चाय वाले ने तीन मुख्तसर सी चीजें रख रखी थीं. चाय बनाने के बर्तन, टूटे-फूटे लकड़ी के कुछ स्टूल और एक रेडियो. रेडियो पर समाचार और हिंदी फिल्मी गाने अपनी रेडियोचित किरकिराहट के साथ चलते रहते थे. स्वर्ग में हुई इस बातचीत की एक झलक इस बार की टिप्पणी में.

इसके अलावा दरबारी खबरिया चैनलों की खबरों, वाद-विवाद का तीन मुख्तसर सा पैटर्न है. या तो मोदीजी कोई इवेंट करेंगे फिर पूरे हफ्ते दरबारी उस पर मय झाल-मजीरा कीर्तन करेंगे. दूसरा है मोदीजी के खिलाफ कुछ मुद्दा मसला आ गया तब दरबारी घोघाबसंत उसका खंडन करने में अपनी जान लड़ाएंगे. तीसरा है, जब इन दोनों में से कुछ न हो तब इतिहास का अंड बंड संस्करण प्रसारित करेंगे. बीता हफ्ता इतिहास के अंड बंड संस्करण को समर्पित रहा.

Also see
article imageक्या पंजाब में पत्रकारों की हो रही जासूसी?
article imageयूपी वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन ने पत्रकारिता के नाम पर 'ब्राह्मण पत्रकारिता' को सम्मानित किया

Comments

We take comments from subscribers only!  Subscribe now to post comments! 
Already a subscriber?  Login


You may also like