जिस ‘स्वराज सीरियल’ की पीएम से लेकर गृहमंत्री कर रहे तारीफ उसका संघ से जुड़े लोगों ने किया शोध

दूरदर्शन पर 14 अगस्त से शुरू हुए कार्यक्रम “स्वराज” को भाजपा व आरएसएस से जुड़े लोगोंं ने तैयार किया है.

   bookmark_add
जिस ‘स्वराज सीरियल’ की पीएम से लेकर गृहमंत्री कर रहे तारीफ उसका संघ से जुड़े लोगों ने किया शोध
  • whatsapp
  • copy

प्रफुल्ल केतकर

आखिरी सदस्य जो इस शोध कमेटी में शामिल हैं वह हैं, संघ के मुखपत्र ऑर्गनाइज़र के संपादक प्रफुल्ल केतकर. साल 2013 में वह ऑर्गनाइज़र के एडिटर बने थे. ऑर्गनाइज़र मैगजीन की वेबसाइट के मुताबिक, उन्हें पत्रकारिता, रिसर्च और अकादमिक क्षेत्र में 20 साल से ज्यादा का अनुभव है.

सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की दिलचस्पी

जवाहर लाल कौल न्यूज़लॉन्ड्री से बातचीत में कहते हैं, “शो पर रिसर्च करने के लिए हमें कुछ रिसर्चर्स भी मुहैया कराए गए थे. जिन्हें सीधे मंत्रालय से पेमेंट हुआ.”

दूरदर्शन के कर्मचारी कहते हैं, “भारत एक खोज सीरियल पहले से ही था, जिसमें प्राचीन भारत से लेकर भारत की आजादी के आंदोलन तक का किस्सा दर्ज है. लेकिन एक नया सीरियल बनाकर नया इतिहास बताने की कोशिश की जा रही है.”

‘भारत एक खोज’ सीरियल का आधार देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की किताब ‘डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ थी.

गौरतलब है कि लॉकडाउन में जब कई सारे पुराने सीरियल दूरदर्शन पर दोबारा से दिखाए जा रहे थे, उस समय कांग्रेस सांसद दिग्विजय सिंह ने तत्कालीन सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावेड़कर को पत्र लिखकर ‘भारत एक खोज’ सीरियल को भी दिखाने की मांग की थी. लेकिन उसे नहीं दिखाया गया.

डीडी के एक अन्य कर्मचारी कहते हैं, “सब कुछ सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय से निर्धारित होता है कि कौन सा सीरियल बनाना है और कब बनाना है. प्रसार भारती सिर्फ एक रबर स्टांप की तरह उपयोग हो रहा है.”

प्रसार भारती के कर्मचारी बताते हैं, “ठाकुर (अनुराग) के मंत्री बनने के बाद कुछ खास बदलाव नहीं आया है. एक ही आदमी को तीन पद दिए गए तो आप समझ सकते हैं कि मंशा क्या है. ऐसा नहीं है कि प्रसार भारती में लोग नहीं हैं.”

यहां जिस आदमी की ओर इशार कर रहे हैं वो प्रसार भारती के सीईओ मयंक अग्रवाल हैं. अग्रवाल सीईओ के साथ ही, प्रसार भारती के चेयरमैन का भी अतिरिक्त काम देख रहे हैं और वह डीडी के डीजी भी हैं.

हमने शो और शोध कमेटी की नियुक्ति से जुड़े कुछ सवाल मयंक अग्रवाल को भेजे हैं. अभी तक उनका जवाब नहीं मिला है.

इतिहास बदलने की कोशिश

'स्वराज - भारत के स्वतंत्रता संग्राम की समग्र गाथा' सीरियल में 1498 से लेकर 1947 तक का समयकाल लिया गया है. सरकार का कहना है कि यह सीरियल स्वतंत्रता सेनानियों और स्वतंत्रता संग्राम के गुमनाम नायकों के योगदान के बारे में बताएगा. 1498 वह समय था जब वास्को-डि-गामा भारत आया. उस समय वह भारत में व्यापार करने आए थे. तब भारत अंग्रेजों का गुलाम नहीं था. पूरा भारत छोटे-बड़े राजवाड़ों में बंटा हुआ था.

शो में रानी अब्बक्का, बख्शी जगबंधु, तिरोट सिंग, सिद्धू मुर्मू और कान्हू मुर्मू, शिवप्पा नायक, कान्होजी आंग्रे, रानी गैदिनल्यू, तिलका मांझी, रानी लक्ष्मीबाई, महाराज शिवाजी, तात्या टोपे, मैडम भीकाजी कामा आदि नायकों के बारे में बताया जाएगा.

दिल्ली विश्वविद्यालय में हिस्ट्री के प्रोफेसर सौरभ बाजपेयी कहते हैं, “यह जो नाम है वह गुमनाम नायक नहीं हैं. अगर अभी तक यह गुमनाम थे तो इनके नाम कैसे लोग जानते हैं? यह असल में हिस्ट्री से नामों को हटाना चाहते हैं. सरकार का प्रोजेक्ट नेहरू, कांग्रेस और गांधी विरोधी है. सब जानते हैं कि सरकार की मंशा क्या है.”

वह आगे कहते हैं, “1757 में प्लासी का युद्ध हुआ. उसमें पहली बार ईस्ट इंडिया कंपनी ने बंगाल के नवाब को हरा दिया. राष्ट्रवाद की कोई भावना उस समय तक लोगों में नहीं थी. 1857 के बाद के समय को असल में स्वतंत्रता की लड़ाई का समय माना जाता है. जब लोगों में अंग्रेजों से आज़ादी का विचार आया.

‘डिक्शनरी ऑफ मार्टर्स’ जिसे भारत सरकार ने आज़ादी की लड़ाई में शहीद हुए लोगों के नाम दर्ज करने के लिए बनाया था, उसका भी समय 1857 से 1947 तक रखा गया है. यानी की भारत सरकार भी खुद देश की लड़ाई को 1857 से ही मानती है. बता दें कि इस लिस्ट में करीब 15 हजार से ज्यादा शहीदों के नाम हैं. इस डिक्शनरी के आखिरी खंड को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस साल 11 अगस्त को लॉन्च किया था.

बाजपेयी आगे कहते हैं, “जब तक भारत गुलाम नहीं हो गया तब तक अंग्रेज, पुर्तगाली, फ्रेंच भारत में अलग-अलग व्यापारिक ताकत के रूप में काम करते थे. 1498 से आज़ादी की लड़ाई को मापने का कोई मतलब ही नहीं है.”

“पुर्तगाली से जो लड़ रहा है वह देश की आजादी के लिए लड़ रहा, यह ऐसी बात हो गई कि देश है नहीं और देश की आजादी की लड़ाई चल रही है,” बाजपेयी कहते हैं.

जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में भारतीय आधुनिक इतिहास की प्रोफेसर और ‘भारत का स्वतंत्रता संघर्ष’ किताब की को-ऑथर सुचेता महाजन कहती हैं, “देश की स्वतंत्रता की लड़ाई को 1857 के बाद माना जाता है. उससे पहले जो लड़ाइयां हुईं वह स्वतंत्रता की विचारधारा से प्रेरित नहीं थी. राष्ट्रवाद की विचारधारा बाद में विकसित हुई."

वह आगे कहती हैं कि वास्को-डि-गामा के आने से पहले से ही विदेशी भारत से व्यापार कर रहे थे. पुर्तगाली, फ्रेंच व्यापारी जो देश में आए उन्होंने देशी रजवाड़ों के मामलों में दखल दिया. यह भी सच है कि भारत उस समय यूरोप और पश्चिमी देशों से कहीं ज्यादा संपन्न देश था.

सीरियल में जो कहा गया है की पुर्तगाली और स्पेनिश व्यापारी ईसाई धर्म के प्रचार के लिए भेजे गए उस पर महाजन कहती हैं, “वह समय धर्म के प्रचार-प्रसार का नहीं मुख्यतौर से व्यापार का समय था. जो ईसाई धर्म को लेकर शो में दिखाया जा रहा है उससे दर्शकों को कुछ और ही संदेश देने की कोशिश हो रही है.”

जेएनयू में पढ़ाने के साथ-साथ कई महत्वपूर्ण सरकारी संस्थानों के सदस्य रह चुके एक शख्स नाम नहीं छापने की शर्त पर सीरियल के लिए बनी कमेटी के सदस्यों के बारे में कहते हैं, “हिंदू राष्ट्रवालों की बहुत पुरानी समझ है कि गुलामी जो है वह अंग्रेजों से नहीं बल्कि उससे पहले से शुरू होती है. यह लोग अपने तरह से हिस्ट्री को लिख रहे है.”

रिसर्च और कंटेंट

शोध कमेटी के सदस्य जवाहर लाल कौल कहते हैं, “हमने इस शो में उन सभी नायकों को दिखाया है जिन्होंने देश की आजादी में योगदान दिया है. फिर चाहे वह वीर सावरकर हों, हिंदू महासभा के लोग हों या जवाहर लाल नेहरू.”

वे कहते हैं, “यह सीरियल उन नायकों के बारे में भी है जिनके बारे में लोगों ने सुना है लेकिन ज्यादा जानकारी नहीं है. इसलिए हम शो में ऐसे नायकों के बारे में बताएंगे जिन्होंने अपने-अपने स्तर पर देश के लिए लड़ाई लड़ी.”

सीरियल के शोध में कमेटी के साथ बतौर रिसर्चर काम करने वाली अंकिता कुमार नायकों की कहानियों के चयन के पैमाने को लेकर कहती हैं, “हमने हर नायक को लेकर गहन शोध किया. हमने कोशिश की, कि देश के हर कोने से ऐसे नायकों के बारे में बताया जाए जिन्होंने देश की आजादी की लड़ाई लड़ी.”

कौल कहते हैं, “कमेटी ने ही तय किया कि किन नायकों की कहानियां हमें दिखानी हैं और यह सब प्रोडक्शन कंपनी, प्रसार भारती और मंत्रालय की साझा बैठक में निर्धारित किया गया.”

वह बताते हैं कि हमारी टीम शोध करके देती है. प्रोडक्शन कंपनी के रिसर्चर और कंटेंट राइटर फिर स्क्रिप्ट लिखते हैं. जिसे वह जांच के लिए प्रसार भारती को भेजते हैं. फिर वह स्क्रिप्ट हम देखते हैं ताकि शो में कोई गलती ना जाए.

प्रोडक्शन हाउस के मालिक और शो के निर्माता अभिमन्यु सिंह कहते हैं, “इस शो के प्रोडक्शन का काम फरवरी 2020 में शुरू किया था. अभी इसे बनाने में एक साल और लगेगा. हम शो पर लगातार काम कर रहे हैं.”

शो के कंटेंट और शोध पर वह कहते हैं, “हम जो भी काम करते हैं वह प्रसार भारती के साथ सलाह-मशविरे के बाद ही करते हैं. बाकी आप ज्यादा जानकारी के लिए प्रसार भारती के सीईओ से बात करें.”

अभिमन्यु की कॉन्टिलो प्रोडक्शन कंपनी रानी लक्ष्मीबाई, महाराणा प्रताप, अशोक सम्राट और भी कई ऐतिहासिक नायकों पर शो बना चुकी है. शो से जुड़े कुछ और सवाल करने पर अभिमन्यु ने हमें प्रसार भारती से बात करने को कहा.

subscription-appeal-image

Support Independent Media

यह एक विज्ञापन नहीं है. कोई विज्ञापन ऐसी रिपोर्ट को फंड नहीं कर सकता, लेकिन आप कर सकते हैं, क्या आप ऐसा करेंगे? विज्ञापनदाताओं के दबाव में न आने वाली आजाद व ठोस पत्रकारिता के लिए अपना योगदान दें. सब्सक्राइब करें.

Subscribe Now
Also see
लिलिपुटियन नेताओं के बीच गुलीवर जैसे नेहरू
क्या पंजाब में पत्रकारों की हो रही जासूसी?
subscription-appeal-image

Press Freedom Fund

Democracy isn't possible without a free press. And the press is unlikely to be free without reportage on the media.As India slides down democratic indicators, we have set up a Press Freedom Fund to examine the media's health and its challenges.
Contribute now

Comments

We take comments from subscribers only!  Subscribe now to post comments! 
Already a subscriber?  Login


You may also like