यूपी वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन ने पत्रकारिता के नाम पर 'ब्राह्मण पत्रकारिता' को सम्मानित किया

आजादी के 75 साल पूरे होने पर यूपी वर्किंग जर्नलिस्ट यूनियन (यूपीडब्ल्यूजेयू) ने लखनऊ में एक तरफ से सवर्ण पत्रकारों व सेवानिवृत्त अधिकारियों को दिया अमृत सम्मान.

WrittenBy:अवधेश कुमार
Date:
Article image

क्या इस कार्यक्रम में डायवर्सिटी नहीं होनी चाहिए थी? सम्मान पाने वालों में महिला, दलित, अल्पसंख्यक या ओबीसी नहीं होने चाहिए थे? इस पर तिवारी कहते हैं, “मुझे तो नहीं लगता है कि पत्रकारों में भी महिला, दलित और ओबीसी ढूंढे जा सकते हैं. यह बात आप कार्यक्रम के आयोजकों से ही पूछिए.”

अक्सर इस तरह के सम्मान समारोहों में ददिए जाने वाले भाषणों और कार्यक्रमों में समानता, न्याय और सत्य की बात जोर-शोर से होती है, लेकिन वह जमीन पर दिखाई नहीं देती है.

जिन पत्रकारों को सम्मानित किया गया उनका पत्रकारिता क्या विशेष योगदान रहा, या उन्हें चुनने का पैमाना क्या था? इस सवाल का संक्षिप्त जवाब देते हुए सिंह कहते हैं इन सभी ने अच्छा काम किया है.

वह आगे कहते हैं कि हमने महिलाओं को ढूंढने की काफी कोशिश की लेकिन हमें कोई रिटायर्ड महिला नहीं मिलीं.

इस कार्यक्रम के आयोजन को लेकर लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार शरत प्रधान कहते हैं, “यह सब एजेंडा है. यह पत्रकारों के भले के लिए कम और व्यक्तिगत लाभ के लिए ज्यादा होता है.”

शरत प्रधान के मुताबिक आजकल यह ट्रेंड बन गया है. लोग अपना-अपना एजेंडा चलाते हैं. इसमें मेरिट ढूंढ़ना बेवकूफी है. ऐसे कार्यक्रम व्यक्तिगत एजेंडे पर चलते हैं. ऐसे समारोह लोगों को खुश करने के लिए होते हैं. इसमें हम डायवर्सिटी ढूंढेंगे तो यह नादानी है. आजकल ऐसे लोगों की भरमार है जो इस तरह के कार्यक्रम करते रहते हैं, ऐसे लोगों का ऑब्जेक्टिव जर्नलिज्म से भी कोई ताल्लुक नहीं है.

यह कार्यक्रम राजधानी लखनऊ के होटल गोमती में आयोजित किया गया था. इनमें सम्मानित होने वाले पत्रकारों में जेपी शुक्ला, वीर विक्रम बहादुर मिश्र, प्रदीप कुमार, मुकुल मिश्रा, आशीष मिश्रा, अशोक त्रिपाठी, राम सागर शुक्ला, विजय उपाध्याय, दिनेश ठाकुर व राहुल ठाकुर शामिल हैं.

कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के तौर पर आए नवनीत सहगल ने यूपीडब्ल्यूजे के प्रयासों को सराहते हुए कहा कि आजादी के बाद के 75 सालों में उल्लेखनीय काम करने वाले पत्रकारों व अधिकारियों को सम्मानित करना गौरव की बात है. ऐसे कार्यक्रमों से भावी पीढ़ी को एक संदेश भी मिलता है.

Also see
article imageलखनऊ में दलित पत्रकार ने उच्च जाति के पत्रकार के खिलाफ दर्ज कराया मुकदमा
article image5 सालों में भारत सरकार ने प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को दिए 3,305 करोड़ रुपए के विज्ञापन

Comments

We take comments from subscribers only!  Subscribe now to post comments! 
Already a subscriber?  Login


You may also like