जलवायु संकट: पाकिस्तान में बाढ़, यूरोप में सूखा और भारत में विनाश की आहट

जलवायु परिवर्तन के प्रभाव इतने व्यापक हो गए हैं कि दुनिया के किसी सुदूर कोने में होने वाली घटना को कुछ ही महीनों में आप अपने आसपास होता देख सकते हैं. यही क्लाइमेट क्राइसिस या जलवायु संकट है.

WrittenBy:हृदयेश जोशी
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जलवायु परिवर्तन के मामले में भारत दुनिया के सबसे संकटग्रस्त देशों में है. यहां उत्तर में संवेदनशील हिमालयी ग्लेशियर हैं जिन्हें थर्ड पोल (तीसरा ध्रुव) कहा जाता है. ये 10 हज़ार छोटे बड़े ग्लेशियर और यहां स्थित जंगल, देश की कम से कम 40 करोड़ लोगों की पानी की जरूरत को पूरा करते हैं. इसी तरह 7,500 किलोमीटर लंबी समुद्र तट रेखा पर करीब 25 करोड़ लोगों की रोजी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में निर्भर है. इसी तरह हमारी कृषि भूमि का 50 प्रतिशत से अधिक हिस्सा अभी भी बरसात के पानी में निर्भर है. जलवायु परिवर्तन ने लंबे सूखे के साथ-साथ असामान्य बाढ़ और कई बीमारियों के खतरे को बढ़ा दिया है.

गौर करने की बात है कि जलवायु परिवर्तन के प्रभाव इतने व्यापक हो गये हैं कि दुनिया के किसी सुदूर कोने में होने वाली घटना को कुछ ही महीनों में आप अपने आसपास होता देख सकते हैं. जानकार कहते हैं कि यही असामान्य व्यवहार क्लाइमेट क्राइसिस या जलवायु संकट है, जिसकी सबसे अधिक चोट भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान और कई अफ्रीकी देशों पर पड़ेगी. अभी भारत उत्तर-पूर्व में बाढ़ की मार से उबरा भी नहीं था कि पाकिस्तान की भयानक बाढ़ का असर गुजरात के सीमावर्ती इलाके कच्छ के रण तक दिख रहा है.

एशियन डेवलपमेंट बैंक का कहना है कि भारत में आधी से अधिक जलवायु जनित आपदाएं बाढ़ के रूप में ही आती हैं. पिछले 60 सालों में भारत को बाढ़ से करीब 5 लाख करोड़ की क्षति हो चुकी है. गर्म होते समुद्र के कारण आने वाले दिनों में अगर चक्रवाती तूफानों की संख्या या मारक क्षमता बढ़ी, तो पूर्वी और पश्चिमी तट पर संकट कई गुना बढ़ जायेगा. असम, बिहार और पूर्वोत्तर के कई हिस्सों में हर साल बाढ़ से होने वाली तबाही किसी से छिपी नहीं है.

जलवायु संकट के खिलाफ लड़ाई में अमीर और विकासशील देशों के बीच एक क्रूर विरोधाभास भी दिखता है. जहां अमेरिका, यूरोप (और अब चीन भी) सबसे अधिक ग्लोबल कार्बन एमिशन के लिये ज़िम्मेदार हैं, वहीं क्लाइमेट क्राइसिस की सबसे बड़ी मार विकासशील और गरीब देशों को झेलनी पड़ती है, क्योंकि उनकी आबादी अधिक है और इस संकट से लड़ने के लिये संसाधनों की कमी है.

अकेले पाकिस्तान की आबादी 22 करोड़ है, जबकि पूरे यूरोप की आबादी मात्र 45 करोड़ ही है. आर्थिक स्थिति को देखें तो यूरोप की प्रति व्यक्ति जीडीपी पाकिस्तान की तुलना में 26 गुना है. आर्थिक संसाधनों और टेक्नोलॉजी की उपलब्धता का अंतर बताता है कि गरीब और विकासशील देशों के लिये क्लाइमेट प्रभावों से लड़ना आसान नहीं होगा.

जलवायु संकट की मार ऐसी है कि एक प्रतिष्ठित जर्नल, प्रोसीडिंग्स ऑफ नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेस में छपी रिसर्च बताती है कि जलवायु परिवर्तन वैश्विक असमानता बढ़ा रहा है. और अगर पिछले 50 सालों में आपदाओं की मार न होती, तो भारत का जीडीपी वर्तमान से 30 प्रतिशत अधिक होता. इस रिसर्च में कहा गया है कि क्लाइमेट चेंज के प्रभाव गरीब देशों को और पीछे धकेल रहे हैं और कुछ अमीर देशों को इस आपदा में अवसर मिल रहे हैं. एक अन्य रिसर्च के मुताबिक साल 2100 तक ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण सालाना जीडीपी में 3-10 प्रतिशत तक गिरावट हो सकती है, और 2040 तक देश की गरीबी में साढ़े तीन प्रतिशत की बढ़ोतरी हो सकती है.

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