शहरी नियोजन से लेकर निर्माण कार्य में प्रयोग की जाने वाली वस्तुएं, जैसे कि नीले और हरे रंग की कवर शीट आदि, अर्बन हीट आइलैंड बनने में अपना योगदान देती हैं. यही वजह है कि एक शहर के अंदर और आसपास के तापमान में भिन्नता पाई जाती है.
शहरों के भीतर तापमान को नियंत्रित करने में वनस्पति और जल निकायों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है. इन हरे और नीले आवरण में कमी अर्बन हीट आइलैंड प्रभाव का कारण बन सकता है. स्कूल ऑफ एनवायरनमेंट एंड सस्टेनेबिलिटी, इंडियन इंस्टीट्यूट फॉर ह्यूमन सेटलमेंट्स के एसोसिएट डीन अमीर बजाज, शहरी क्षेत्रों में प्राकृतिक आवरण के नुकसान पर प्रकाश डालते हैं. “नौकरियां शहरों में हैं. लोग शहरों में चले जाते हैं, और इसलिए ग्रामीण आय में पर्याप्त बढ़ोतरी नहीं हुई है. समय के साथ लोगों की इच्छाएं भी बदली हैं.
लोग कृषि को आगे बढ़ाने के बजाय अधिक आय के लिए शहरों में आना पसंद कर रहे हैं.” वे कहते हैं, “शहरों में मौके ज्यादा हैं, जहां नई समझ विकसित होती है. यह बताते हुए कि इससे शहरों का विस्तार हो रहा है और शहर की हरियाली तथा पानी के स्रोत पर कब्जा बढ़ रहा है, उन्होंने सवाल किया, “इस तरह लोग अपनी आय बढ़ाते हैं. यदि लोग इसी तरह शहरों की ओर भागते रहे, तो हम अपने घर कहां बनाएंगे?”
मुंबई के लिए चुने गए दो इलाके (महाराष्ट्र नेचर पार्क और बांद्रा कुर्ला कॉम्प्लेक्स) मीठी नदी के दोनों किनारों पर एक-दूसरे के करीब हैं, लेकिन दोनों की विशेषताएं अलग-अलग हैं. महाराष्ट्र नेचर पार्क एक मानव निर्मित जंगल है, जिसे एक डंपिंग ग्राउंड पर विकसित किया गया है. यह मीठी नदी पर मैंग्रोव वन से घिरा हुआ है. जबकि बांद्रा कुर्ला कॉम्प्लेक्स एक चहल-पहल वाला वाणिज्यिक और सरकारी परिसर है. इसे जमीन की निचली सतह पर बनाया गया है जिसमें मीठी नदी में उचित सतह के जल निकासी की कमी है.
यूएन के इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) के अनुसार, अर्बन हीट आइलैंड का असर उन शहरों में और बढ़ गया है जिनमें वनस्पतियों और जल निकायों की कमी है. आईपीसीसी की विशेष रिपोर्ट ग्लोबल वार्मिंग 1.5 डिग्री सेल्सियस बढ़ने की भविष्यवाणी करती है. “अर्बन हीट आइसलैंड अक्सर गर्मी के प्रभाव को बढ़ाता है.”
बर्धन, अर्बन हीट आइलैंड पर विकास से जुड़े इस प्रभाव की व्याख्या करते हुए कहते हैं, “हमें पहले यह स्वीकार करना चाहिए कि शहरीकरण हमारे शहरों को सघन करेगा, यह तय है. हम इससे लड़ ही नहीं सकते और लड़ना गलत भी है, नहीं तो विकास कैसे होगा? हम इमारतों को बनाते वक्त उनके डिजाइन पर काम कर सकते हैं. हम अपने आस-पड़ोस को इस तरह से डिजाइन कर सकते हैं कि हम गर्मी का असर कुछ कम हो सके.”
बिल्डिंग मेटेरियल से 10 प्रतिशत गर्मी का उत्सर्जन होता है जबकि 50 प्रतिशत उत्सर्जन ऑपरेशनल एनर्जी से होता है. बर्धन, हमारे शहरों में गर्मी के बोझ को कम करने में मदद करने के लिए मेटेरियल और डिजाइन दोनों के मिश्रित तरीके से रास्ता निकालते हैं. “भौतिकी न केवल बाहर से अंदर तक आने वाली गर्मी को रोकने के लिए है बल्कि घर के अंदर खाली जगह भी बनाती है या घर के अंदर वेंटिलेशन की रणनीतियां बनाती है ताकि इनडोर गर्मी को बाहर निकाला जा सके.”
(साभार- MONGABAY हिंदी)