डंकापति से नैना लड़ाते और बिलकीस बानो से नज़रें चुराते हुड़कचुल्लू

दिन ब दिन की इंटरनेट बहसों और खबरिया चैनलों के रंगमंच पर संक्षिप्त टिप्पणी.

WrittenBy:अतुल चौरसिया
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पिछले हफ्ते नोएडा फिल्मसिटी, बैरक नंबर 16-ए में दैवीय हस्तक्षेप हुआ. डिवाइन इंटरवेंशन. इस बार की टिप्पणी में उस पर विशेष चर्चा. एक साथ, एक वक्त में पांच चैनलों पर बिलकुल उसी तरह से ज्ञान का अवतरण हुआ जैसे कुरुक्षेत्र के मैदान में शस्त्र छोड़कर भगवान कृष्ण की शरण में पड़े अर्जुन पर हुआ था.

क्या पांच अलग-अलग चैनलों के पांच संपादक एक ही समय में एक ही ख़बर पर कूदने का फैसला एक साथ कर सकते हैं. जैसे सबका मालिक एक है वैसे ही इन चैनलों का सुपर संपादक भी एक हैं. 19 अगस्त को खबरिया चैनलों पर घटी यह घटना चीख-चीख कर कहती है कि इस देश के खबरिया चैनलों ने अपनी संपादकीय स्वायत्तता उस अदृश्य शक्ति के पास गिरवी रख दी है.

15 अगस्त को, आज़ादी की 75वीं सालगिरह के मौके पर बिलकीस बानो के साथ जो हुआ वह किसी मुसलमान, किसी धर्म या किसी जाति के साथ हुआ अन्याय नहीं है. यह इस देश की लाखों-करोड़ों गरीब, बेसहारा महिलाओं के साथ हुआ अन्याय है. बिलकीस बानो को न्याय से वंचित कर किसी मुसलमान या किसी धर्म को सजा नहीं दी गई है. बल्कि उन लाखों करोड़ों महिलाओं को सजा दी गई है जिनके लिए बिलकीस का जीवट और साहस एक प्रेरणा था. बिलकीस को सजा देकर किसी मुसलमान को सजा नहीं दी गई है बल्कि इसके जरिए इस देश की मौजूदा न्याय व्यवस्था से इस देश की आधी आबादी के भरोसे को कमजोर करने का काम किया गया है.

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