साम-दाम-दंड-भेद से पतंजलि ने खरीदी दलितों की सैकड़ों एकड़ जमीन

उत्तराखंड के हरिद्वार समेत अन्य जगहों पर रामदेव के पास करोड़ों की जमीन है.

WrittenBy:बसंत कुमार
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मजबूरी में जमीन बेच दी

पतंजलि ने तेलीवाला में कुछ लोगों से छल से तो कुछ लोगों से जबरदस्ती जमीन ली है. कुछ को अपनी जमीन मजबूरी में देनी पड़ी. गांव के लोग ऐसी कहानियों का जिक्र करते हैं.

42 वर्षीय श्याम सिंह न्यूज़लॉन्ड्री को बताते हैं, ‘‘जिन लोगों ने पतंजलि को जमीन नहीं बेंची. उन्हें बेचने के लिए मजबूर किया गया. मान लीजिए पतंजलि की जमीन के बीच मेरा खेत है. उन्होंने चारों तरफ से बाड़बंदी कर दी. जिसके बाद आप अपनी खेत में नहीं जा सकते हैं. सारे रास्ते बंद हो गए थे. ऐसे में लोगों ने मजबूरन अपनी जमीन बेच दी.’’

तहलका की रिपोर्ट ‘योग से उद्योग’ तक में ऐसी ही एक घटना का जिक्र है. 2011 में प्रकाशित इस रिपोर्ट के मुताबिक एक सीनियर अधिकरी पतंजलि के फूड पार्क में निरीक्षण के लिए गए थे. वहां फूड पार्क के बीचों-बीच एक खेत में फसल लहलहा रही थी. जिसे देखकर अधिकारी ने पूछा कि यह किसकी जमीन है. इसके जवाब में आचार्य बालकृष्ण ने कहा, “कुछ अनाड़ी किसानों की जमीन है, जो बेचने को तैयार नहीं हैं, लेकिन जाएंगे कहा, झक मारकर हमारे पैरों में आएंगे.’’

गांव में जहां कुछ लोग पतंजलि को लेकर खुलकर बोलते हैं तो बहुत से लोग चुप्पी साध लेते हैं.

जमीन खरीदने में देवेंद्र चौधरी का नाम बार-बार आता है. न्यूज़लॉन्ड्री ने चौधरी से बात की. वे ऐसी किसी भी जानकारी से इनकार करते हुए कहते हैं, ‘‘हम क्यों जमीन खरीदेंगे. हमें इससे क्या काम. हम अपने काम में व्यस्त हैं.’’ हमने पूछा कि चाहे महेंद्र सिंह हो या देवेंद्र कुमार, जिन्होंने भी पतंजलि की जमीन खरीदी वे यह दावा करते हैं कि जमीन के पैसे आपने ही दिए हैं. क्या यह सच नहीं है. वे दोबारा ना में ही जवाब देते हैं.

चौधरी, तेलीवाला गांव में गुलाब सिंह के अलावा किसी और को जानने से इनकार करते हैं. वे राजू वर्मा को भी नहीं जानने की बात कहते हैं, हालांकि वर्मा ने बातचीत में चौधरी से अपनी कई मुलाकातों का जिक्र किया था. हमें उनका पता दिया.

दान करा ली तकरीबन 600 बीघा जमीन

जमीन को लेकर पतंजलि यही तक सीमित नहीं रहा. तेलीवाला हो या औरंगाबाद हरेक जगह ग्रामसभा की जमीन कब्जाने का आरोप भी पतंजलि पर लगा. तेलीवाला में तो तत्कालीन प्रधान अशोक सैनी के साथ मिलाकर तकरीबन 600 बीघा जमीन पतंजलि ने दान में ले ली थी लेकिन ग्रामीणों की कोशिश से वो जमीन वापस ली गई.

संघर्ष करने वालों में एक हरी सिंह भी थे. वे न्यूज़लॉन्ड्री को एक डॉक्यूमेंट दिखाते हैं जो उन्होंने आरटीआई के जरिए हासिल किया था. इस डॉक्यूमेंट में सैनी का हरिद्वार के जिलाधिकारी को लिखा गया पत्र है, जिसे 2 फरवरी, 2008 को लिखा गया था.

पत्र का विषय था, ‘‘पतंजलि योगपीठ ट्रस्ट को ग्राम शिवदासपुर उर्फ तेलीवाला की ग्रामसभा की भूमि दिए जाने के संबंध में.’’

पत्र में सैनी ने लिखा है, ‘‘ ग्रामसभा की अकृषि भूमि को शासन स्तर से पतंजलि योगपीठ को दिए जाने की जानकारी मिली. हमें इस समाज एवं जनहित कार्य के लिए आपत्ति नहीं है, बल्कि हम उक्त कार्य में जितना सहयोग हो करेंगे.’’

सैनी ने इस पत्र में दावा किया कि ग्रामसमाज पतंजलि को जमीन देने को लेकर खुश है.

दरअसल हकीकत इससे उलट थी. ग्रामसभा के बाकी सदस्यों को इस बात की भनक तक नहीं थी कि पतंजलि को जमीन दी जा रही है. जबकि दान में या किसी रूप में देने से पहले ग्राम समाज के दूसरे लोगों से पूछा तक नहीं गया था. ग्राम समाज की जमीन किसी भी काम के लिए देने की प्रक्रिया होती है. ग्रामसभा में प्रधान के अलावा 11 सदस्य होते हैं. इनसे भी इसके लिए राय लेनी होती है.

जान मोहम्मद भी उन चंद लोगों में शामिल थे, जिन्होंने इसकी लड़ाई लड़ी थी. वे कहते हैं, ‘‘अशोक सैनी ने खुद ही पतंजलि को जमीन दान में करने का फैसला कर लिया था. ऐसे तो किया नहीं होगा, जरूर पैसों की लेनदेन हुई होगी. हालांकि हमारे विरोध के बाद जमीन की दान की प्रक्रिया रुक गई. वह अभी ग्रामसभा के पास है.’’

सैनी जमीन दान करने से साफ इंकार करते हैं. उन्होंने बताया, ‘‘मेरे पहले जो प्रधान (कुरड़ी सिंह) थे, उन्होंने मुहर लगाकर मेरा फर्जी हस्ताक्षर कर दिया था.’’

यह बात हैरान करती है. सैनी 2005 में गांव के प्रधान बने थे और 2010 तक रहे. जबकि सैनी के द्वारा जिलाधिकारी को पत्र साल 2008 में लिखा गया.

सैनी के लिखे पत्र के बाद 12 फरवरी, 2008 को बालकृष्ण ने अपर जिलाधिकारी को तेलीवाला में 40.422 हेक्टेयर यानी लगभग 600 बीघा जमीन ग्रामसभा की मांग का पत्र दिया. सब कुछ किस तरह मिलीभगत से हो रहा था, इसकी बानगी यहां नजर आती है. सबकुछ 18 दिनों के भीतर होता है.

न्यूज़लॉन्ड्री के पास हरिद्वार के अपर जिलाधिकारी द्वारा 18 फरवरी, 2008 को जिलाधिकारी को लिखा गया पत्र मौजूद है.

पत्र में लिखा है, ‘‘उक्त (पतंजलि योगपीठ) ट्रस्ट के आचार्य बालकृष्ण एवं क्षेत्रीय लेखपालों के साथ, क्षेत्र का मेरे द्वारा भ्रमण किया गया. भ्रमण एवं निरीक्षण के दौरान ट्रस्ट के महामंत्री आचार्य बालकृष्ण द्वारा, उनके द्वारा पूर्व में केंद्रीय भूमि के स्थान पर सम्मुख पत्र में अंकित 12 फरवरी 2008 ग्राम औरंगाबाद में ग्राम सभा की 110 हेक्टेयर एवं तेलीवाला में ग्राम सभा की 40.422 हेक्टेयर भूमि दिए जाने हेतु आवेदन किया गया.’’

इस पत्र में उपजिलाधिकारी ने ग्रामसभा की उन जमीनों की डिटेल भी दी हुई थी. प्रशासन अपनी प्रक्रिया पूरी करके ग्रामसभा की जमीन देता उससे पहले ही इसकी भनक गांव वालों को लग गई.

हरी सिंह कहते हैं, ‘‘बाबा रामदेव तब तक बड़ी ताकत बन चुके थे. मुख्यमंत्रियों के साथ उनका उठना बैठना था. ऐसे में जिलाधिकारी और दूसरे अधिकारीयों की क्या बिसात. हमें जैसे ही इसकी जानकारी मिली हमने ग्रामसभा की बैठक बुलाई और एफिडेविट तैयार किया कि हम अपनी जमीन पतंजलि को नहीं देना चाहते हैं.’’

औरंगाबाद जहां पतंजलि ने मांगी थी 110 हेक्टेयर जमीन

तेलीवाला के लोगों ने संघर्ष करके अपनी जमीन तो वापस ले ली, लेकिन उसके पास के गांव औरंगाबाद में क्या हुआ, यह जानने के लिए न्यूज़लॉन्ड्री की टीम मौके पर पहुंची. रास्ते में जगह-जगह पतंजलि योगग्राम का बोर्ड नजर आता है. दरअसल इसी गांव में पतंजलि का योगग्राम बना हुआ है.

तेलीवाला के लोगों की तरह ही औरंगाबाद के लोगों ने भी अपनी जमीन की लड़ाई लड़ी. लड़ाई लड़ने वालों में गांव के चरण सिंह चौहान काफी आगे थे. वे न्यूज़लॉन्ड्री से कहते हैं, ‘‘हमने सैकड़ों बीघा ग्रामसभा की जमीन बचाई है, लेकिन आज भी तकरीबन 150 बीघा जमीन पर पतंजलि का कब्जा है. पतंजलि ने इसी गांव में योग आश्रम बनाया है. वो पतंजलि की नहीं है.’’

औरंगाबाद में पतंजलि ने ग्रामसभा की 110 हेक्टेयर यानी 1,650 बीघा जमीन मांगी थी. इस पर चौहान कहते हैं, ‘‘सरकार के अधिकारी आए और मौके पर खाली जमीन देखने के बाद लिखकर दे दिया कि जमीन दी जा सकती है. शासन ने हमें पत्र लिखकर जमीन पतंजलि को देने की बात कही. तब मैं क्षेत्र पंचायत सदस्य था. हमारे यहां की ग्रामसभा ने साफ तौर पर जमीन देने से इनकार दिया.’’

हरिद्वार में ज्यादातर पत्रकार ऑन रिकॉर्ड पतंजलि के बारे में कुछ बोलते से कतराते हैं. जो बोलते हैं वो तारीफों के पुल ही बांधते हैं. इसका कारण है, उनके मीडिया संस्थानों को मिलने वाला विज्ञापन. इसी कारण स्थानीय पत्रकार रामदेव से जुड़ी खबरों को हाथ नहीं लगाते हैं.

बीते दिनों हरिद्वार के प्रेस क्लब में दिल्ली निवासी नवीन सेठी ने पतंजलि विश्वविद्यालय के पास स्थित जमीन पर जबरन कब्जाने का आरोप लगाते हुए एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी, लेकिन ज्यादातर अखबारों ने उसे छापा तक नहीं.

प्रेस क्लब के एक सदस्य कहते हैं, ‘‘हम तो लिखकर या वीडियो बनाकर भेज भी दें, लेकिन एडिटर ही नहीं चलने देंगे. हम बाबा और उनके शागिर्दों के हरेक काम के बारे में जानते है, लेकिन लिखकर क्यों दुश्मन बने. सब चुप हैं.’’

यह ग्राउंड रिपोर्ट सीरीज एनएल सेना प्रोजेक्ट के तहत की जा रही है. यदि आप इस सीरीज को समर्थन देना चाहते हैं तो यहां क्लिक करें.

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