सिद्धू मूसेवाला हर साल अपने गांव में कैंसर बीमारी की जांच के लिए निशुल्क कैंप लगवाते थे, जहां दूर-दूर से लोग जांच के लिए आते हैं.
वह कहते हैं, “जनवरी 2016 में मानसा के एक प्राइवेट अस्पातल में जांच के दौरान पता चला कि मेरे पिता को कैंसर है. इसके बाद हम उन्हें फरीदकोट लेकर गए, जहां उनका ऑपरेशन हुआ.”
मूसा गांव से फरीदकोट की दूरी ज्यादा होने के कारण और अपने पिता के स्वास्थ्य को देखते हुए, सेवक सिंह तीन महीने फरीदकोट में ही रुक गए. वह वहां एक गुरुद्वारे में रहते थे. परिवार में इकलौते कमाने वाले सेवक सिंह जब फरीदकोट गए तो घर चलाने और इलाज के लिए उन्होंने एक लाख 70 हजार जमींदार से कर्ज लिया. वह मजहबी सिख हैं.
मई 2016 में बीरा सिंह का फरीदकोट में ऑपरेशन हुआ जिसके बाद उन्हें घर लाया गया. सिंह के अनुसार, ऑपरेशन के बाद दवा खरीदने और जांच करवाने के लिए फरीदकोट जाने पर, एक बार में उनके करीब 12,000 रुपए खर्च हो जाते थे. उन्होंने कहा, “हमें कार लेनी पड़ती थी क्योंकि हम उन्हें बस या ट्रेन से ले जाने का जोखिम नहीं उठा सकते थे”.
ऑपरेशन के तीन महीनों बाद जून 2016 में बीरा सिंह की मौत हो गई. पिता के जाने का दुख झेल रहे सेवक सिंह की पत्नी की 2017 में किडनी फेल होने के कारण मौत हो गई. वहीं साल 2020 में बारिश के कारण उनका घर बर्बाद हो गया. जिसके बाद से वह धीरे-धीरे कुछ पैसे इकट्ठा करके पक्का मकान बना रहे हैं.
सेवक सिंह के दोनों बच्चे अभी स्कूल में पढ़ रहे हैं. सेवक अपने परिवार का पेट पालने के लिए जमींदार के खेत में मजदूरी करते हैं और उनकी मजदूरी में से ही जमींदार अपने कर्ज के पैसे काट लेता है. वह कहते हैं, “मुझे मिलने वाली मजदूरी में से हर महीने एक निश्चित राशि वह (जमींदार) काट लेते हैं. जब तक मैं पूरा कर्ज चुका नहीं देता मुझे उनके खेत में ही काम करना पड़ेगा.”
सिंह ने एक बार सिद्धू मूसेवाला द्वारा लगाए जाने वाले कैंसर कैंप में जांच कराई और उन्हें उस समय फरीदकोट नहीं जाना पड़ा. वह कहते हैं, “एक महीना अस्पताल के चक्कर काटने में लग गए. अगर पास में अस्पताल होता तो समय बचता और सही से इलाज करवा पाते”.
सिंह के बगल में ही 56 वर्षीय सुखदेर कौर बैठी हैं. वह मूसा के पड़ोसी गांव दलेल सिंघवाला की रहने वाली हैं. दो दिन पहले उनके भाई की भी कैंसर से मौत हो गई थी.
सुखचैन सिंह बताते हैं कि इस बीमारी से प्रभावित गांव के अन्य परिवारों के तुलना में अनुसूचित जाति के परिवारों पर ज्यादा आर्थिक असर पड़ता है. वह कहते हैं, “इन लोगों का ज्यादातर जीवन जमींदार के कर्ज को चुकाने में बीत जाता है और इसलिए वे इलाज का खर्च नहीं उठा पाते.”
सेवक सिंह के घर से कूछ दूरी पर 36 वर्षीय गुरप्यार सिंह का घर है. उनके पिता लाभ सिंह की मौत 2019 में कैंसर से हो गई थी. वे खेतों में मजदूरी का काम किया करते थे. नवंबर 2018 में पेट में दर्द होने के बाद मानसा के एक प्राइवेट अस्पताल में दिखाने पर कैंसर का पता चला.
गुरप्यार सिंह भी अनुसूचित जाति के मजहबी सिख हैं. वह बेलदारी का काम करते हैं और कुछ समय खेतों में भी मजदूरी करते हैं. वह कहते हैं, ”प्राइवेट अस्पताल में जांच के बाद कैंसर का पता चला और उन्होंने बठिंडा के कैंसर अस्पताल में रेफर कर दिया. जहां इलाज के दौरान उनकी मौत हो गई.”
गुरप्यार ने इलाज के लिए अपने रिश्तेदारों से डेढ़ लाख रुपए का कर्ज लिया है. उन्हें 300 रूपए मजदूरी मिलती है जिससे पांच लोगों के परिवार का खर्च चलता है. सिंह की मां की भी 20 साल पहले ब्रेस्ट कैंसर से मौत हो गई थी.
गुरप्यार के घर से कुछ दूरी पर 55 वर्षीय गुरजीत कौर का घर है. वह घर के आंगन में चारपाई पर लेटी थीं. वह बेहद कमजोर हो गई हैं इसलिए हमेशा लेटी रहती हैं. उन्हें अप्रैल 2021 में कैंसर का पता चला. वह कहती हैं, “खाने वाली नली में कैंसर होने के कारण केवल जूस, दलिया और दाल का पानी पीती हूं. खाना नहीं खा पाती.”
गुरजीत का परिवार भी अनूसूचित जाति से है. वह रामदासिया सिख हैं. कौर के परिवार में उनका बेटा कमाता है जो गैरेज पर काम करता है. कौर का ऑपरेशन लुधियाना के एक प्राइवेट अस्पातल में हुआ क्योंकि परिवार के लोग सरकारी अस्पताल में जोखिम नहीं लेना चाहते थे. दवाओं और अन्य खर्चों के लिए गुरजीत और उनकी बेटी को गहने बेचने पड़े. परिवार के पास पंजाब सरकार द्वारा चलाए जा रहे भगत पूरन सिंह बीमा योजना का कार्ड भी था लेकिन प्राइवेट अस्पताल में वह कार्ड नहीं चला.
हर महीने दो बार कौर और उनका बेटा जांच और दवाओं के लिए फरीदकोट जाते हैं. कौर अब तक एक बार कीमोथेरेपी करवा चुकी हैं. वे कहती हैं, “फरीदकोट एक बार जाने में हमें कम से कम 20,000 रुपए का खर्च आता है. अकेला सिद्धू ही था जिसने कैंसर के बारे में बोला और हमारे लिए कुछ सोचा.”
गांव में जट्ट सिख बलजीत सिंह की पत्नी भी कैंसर की मरीज हैं. 36 वर्षीय सर्वजीत कौर छह महीने से अपना इलाज करवा रही हैं. उनकी कीमोथेरेपी बठिंडा के एडवांस कैंसर इंस्टीट्यूट में चल रही है. उनके पति को उम्मीद है कि वह जल्द ही पूरी तरह से ठीक हो जाएंगी.
सर्वजीत कहती हैं, "जब मुझे पता चला कि कैंसर है तो मैं बहुत डर गई थी. क्योंकि यह बहुत खतरनाक बीमारी है और उससे हमारे गांव के ज्यादातर लोग उबर नहीं पाए हैं और उनके परिवार के लिए यह आर्थिक बोझ बन गया है.”
बलजीत सिंह कहते हैं, “गांव में कैंसर से लोगों में डर है. कैंसर कभी चुनावी मुद्दा नहीं बना. केवल सिद्धू ही थे जिन्होंने हमारे गांव में कैंसर का मुद्दा उठाया. बाकी नेता तो चुनाव से पहले गांव तक नहीं आते हैं.”
मूसा गांव में न्यूज़लॉन्ड्री ने जितने भी परिवारों से बात की, सभी का पंजाब सरकार द्वारा चलाई जा रही भगत पूरन सिंह बीमा योजना के तहत कार्ड बना हुआ था. सिर्फ सर्वजीत के पास आयुष्मान भारत कार्ड है. इस योजना की शुरूआत, तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने 2015 में की थी. इसके तहत नीले कार्ड धारकों को मुफ्त में इलाज दिया जाता है.
2019 में, राज्य सरकार ने भगत पूरन सिंह बीमा योजना को केंद्र सरकार द्वारा चलाई जा रही आयुष्मान भारत योजना के अंतर्गत ले लिया. मूसा गांव के ग्रामीण, कैंसर की समस्या को लेकर कहते हैं, “किसी भी अस्पताल में जाते हैं तो सबसे ज्यादा मानसा जिले के मरीज मिलते हैं.”
बलजीत कहते हैं, ”अगर कैंसर का अस्पताल मानसा जिले में होता तो यहां से लोगों को बठिंडा या दूसरे जिले में जाने की जरूरत नहीं पड़ती.”
बलजीत आगे कहते हैं, “हमारे जिले और गांव में मूलभूत सुविधाएं भी नहीं हैं इसलिए जब भी कोई विधायक, सांसद या मंत्री आते हैं तो हम उनसे सड़क, बिजली और पानी की मांग करते हैं. कैंसर की समस्या को अब उठाने लगे हैं.”
सुखचैन कहते हैं, ”मूसा जिले में कई थर्मल पावर प्लांट्स लगे हैं साथ ही कई फैक्ट्रियां भी हैं. इनसे निकलने वाले प्रदूषण का भी लोगों की सेहत पर गलत असर पड़ रहा है लेकिन सरकार इस पर ध्यान ही नहीं देती.”
सिद्धू मूसेवाला ने कैंसर के मरीजों के परिवारों की भी मदद की है. उनकी मां चरणकौर मूसा गांव की सरपंच भी हैं. उनके चुनाव जीतने के बाद गांव में बंद पड़े दवाखाने को शुरू किया गया. इसके साथ ही वह गांव के विकास के लिए सड़के और नालियों का निर्माण भी करवा रही हैं.
मौजूदा मुख्यमंत्री और तत्कालीन संगरूर सांसद भगवंत मान ने कहा था कि “बतौर सांसद उन्होंने कई सौ कैंसर मरीजों की इलाज में मदद की है. इस बीमारी को जड़ से खत्म करना होगा. जो कांग्रेस और अकाली सरकार नहीं कर पाई.” अब देखना होगा की बतौर सीएम, भगवंत मान कैंसर की इस समस्या को मालवा क्षेत्र से कैसे दूर कर पाएंगे?
General elections are around the corner, and Newslaundry and The News Minute have ambitious plans together to focus on the issues that really matter to the voter. From political funding to battleground states, media coverage to 10 years of Modi, choose a project you would like to support and power our journalism.
Ground reportage is central to public interest journalism. Only readers like you can make it possible. Will you?