इन बीमारियों के खिलाफ लड़ने के लिए गांव के लोगों ने एक कमेटी भी बनाई हुई है जो पंजाब के मुख्यमंत्री से लेकर संबंधित अधिकारियों तक कई पत्र लिख चुकी है, लेकिन आज तक कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए.
लीवर के कैंसर से ही झूझ रही सिमरनजीत कौर पर उस समय पहाड़ टूट पड़ा जब उन्हें तीन साल पहले पता चला कि उनको भी लीवर का कैंसर है. 37 वर्षीय सिमरनजीत के पति चार एकड़ के किसान थे, लेकिन अपनी पत्नी के इलाज के लिए उन्हें दो एकड़ जमीन बेचनी पड़ी. सिमरनजीत ने हमें बताया, “मुझे पहले काला पीलिया था, जो धीरे-धीरे कैंसर बन गया. अब थोड़ी ठीक हूं. अब दवाई सिरसा (हरियाणा) से चल रही है.”
हमने गांव और जिले से इलाज के बारे में सवाल किया तो उन्होंने एकटख जवाब दिया, “हमारे गांव में तो कोई अस्पताल ही नहीं है. मानसा शहर में एक अस्पताल है, लेकिन वहां डॉक्टर हमें बाहर से ही इलाज की सलाह देते हैं. इसलिए हम हरियाणा से दवाई ले रहे हैं. वहां हमारा कार्ड (आयुष्मान) भी नहीं चलता. पर मरता आदमी क्या करे.”
पास खड़े उनके पति हरदीप सिंह बीच में ही बोल पड़ते हैं, “चलो हमारे पास तो थोड़ी बहुत जमीन थी, कुछ बेचकर काम चल गया. जिनके पास बिल्कुल जमीन नहीं है, वो क्या बेचें. मैं आपको ले चलता हूं हमारे गांव के ही एक मजदूर परिवार में. मियां-बीवी दोनों को दिक्कत है” हरदीप हमें अपने दोस्त बलदेव सिंह और राजकौर के घर ले गए. पशुओं का चारा लेकर आई राजकौर ने हमें बताया, “मेरे और मेरे घरवाले दोनों को ही काला पीलिया है जी. पर इलाज के लिए पैसे नहीं हैं. प्राइवेट में इलाज महंगा है, सरकारी अस्पताल में हम जैसे गरीबों को कोई पूछता नहीं. हम तो आराम भी नहीं कर सकते. दिहाड़ी करने नहीं गए तो भूख से मर जाएंगे.”
काले पीलिया के बारे डॉ केपी सिंह ने हमें बताया, “हेपेटाइटिस सी को देसी भाषा में काला पीलिया कहते हैं. यह बीमारी मालवा बेल्ट के कई इलाकों में फैली हुई है, जिनमें मानसा और मोगा जिले मुख्य हैं. इस बीमारी के पकने के कारण ही लीवर के कैंसर का जन्म होता है. यह बीमारी असुरक्षित स्वास्थ्य संबंध और झोलाछाप डॉक्टरों द्वारा एक ही सुई से सारे गांव को इंजेक्शन लगा देने जैसी गलतियों से होती है. इस बीमारी को किसी गांव से तभी जड़ से खत्म किया जा सकता है, जब सही ढंग से स्वास्थ्य विभाग की टीम पूरे गांव को मॉनिटर करे और पूरा इलाज चलाए. छिटपुट प्रयासों से तो यह नहीं रूकती.”
इस बीमारी के खिलाफ लड़ने के लिए गांव के नौजवानों ने एक कमेटी भी बनाई हुई है जो पंजाब के मुख्यमंत्री से लेकर संबंधित अधिकारियों तक कई पत्र लिख चुकी है, लेकिन आज तक कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए. इस कमेटी के मेम्बर बलकार सिंह ने मुझे कई पत्र दिखाते हुए कहा, “ये देखो सर. चिट्ठियां लिख-लिखकर थक चुके हैं, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई. अब चुनाव चल रहे हैं, तो जो भी नेता आता है, वो कहता है कि नाली बनवालो-गली बनवालो. हमें नहीं चाहिए नालियां. हमें तो बस इस बीमारी से छुटकारा चाहिए, ताकि कम से कम जिंदा तो रह सकें.”