हिंदी पॉडकास्ट जहां हम हफ्ते भर के बवालों और सवालों पर चर्चा करते हैं.
एनएल चर्चा के इस अंक में संसद के मॉनसून सत्र की कार्यवाही और सांसदों के निलंबन पर विशेष रूप से बातचीत हुई. इसके अलावा चर्चा में कांग्रेस सांसद अधीर रंजन चौधरी द्वारा राष्ट्रपति के असंसदीय संबोधन पर मचे बवाल और म्यांमार में चार लोकतंत्र समर्थकों को फांसी दिए जाने पर भी बातचीत हुई. साथ ही बॉलीवुड अभिनेता रणवीर सिंह के न्यूड फोटोशूट और उसके बाद उन पर हुई एफआईआर का भी ज़िक्र हुआ.
चर्चा में इस हफ्ते वरिष्ठ पत्रकार स्मिता शर्मा, न्यूज़लॉन्ड्री के स्तंभकार आनंद वर्धन और सह संपादक शार्दूल कात्यायन शामिल हुए. चर्चा का संचालन कार्यकारी संपादक अतुल चौरसिया ने किया.
इस चर्चा का आग़ाज़ संसद में चल रहे मानसून सत्र और इस दौरान दोनों सदनों में हो रही उठापठक से हुआ. इस सत्र के शुरुआत से ही सरकार और विपक्ष के बीच एक गतिरोध बना हुआ है. पहले लोकसभा में कांग्रेस के चार सांसदों को पूरे सत्र के लिए निलंबित किया गया, इसके बाद राज्यसभा के 23 सांसद हफ्ते भर के लिए सदन से बाहर कर दिए गए.
चर्चा की शुरुआत करते हुए अतुल संसद की वर्तमान स्थिति पर आनंद से प्रश्न करते हैं, “संसद में पीठासीन अधिकारियों चाहे वह लोकसभा अध्यक्ष हों या उपसभापति, इनके द्वारा सांसदों के निलंबन में जो रवैया अपनाया गया क्या वह समस्या से ज्यादा सज़ा देने का मामला है?”
जवाब में आनंद कहते हैं, “विवेक पर आधारित मामलों में लोकसभा अध्यक्ष और राज्यसभा के सभापति को काफी अधिकार प्राप्त हैं. लोकसभा के सन्दर्भ में संसदीय पद्धति और प्रक्रिया के नियम संख्या 373 और 374 ए, जो 2001 में लाया गया, लोकसभा अध्यक्ष को काफी ज़्यादा अधिकार देते हैं. राज्यसभा के सभापति के लिए भी लगभग एक ही जैसे नियम हैं लेकिन यहां बात शक्तियों और अधिकारों की नहीं है, एक बार निलंबित सदस्यों की संख्या 63 तक जा चुकी है. 1989 में 63 सांसदों को एक ही दिन में निलंबित किया गया था. यहां बात यह है कि जो आज सत्तारूढ़ दल के सदस्य हैं, वह इतनी जल्दी खेमा कैसे बदल लेते हैं? यही सांसद जब 2012-13 में विपक्ष में बैठते थे और तब इन्होंने निलंबन का काफी विरोध किया.”
इस मुद्दे पर अपने विचार रखते हुए स्मिता कहती हैं, “एक नागरिक के रूप में मुझे ऐसा लगता है कि सत्तापक्ष और विपक्ष के बीच में एक खाई है और वह दिन प्रतिदिन और ज़्यादा गहरी होती जा रही है. उसे पाटना बड़ा मुश्किल लग रहा है. गत वर्ष नवंबर में 12 विपक्षी सांसदों को निलंबित कर दिया गया था पूरे सत्र के लिए. इस बार यह संख्या और बढ़ाकर 23 कर दी गई है. भले ही सत्तापक्ष को सदन में बहुमत प्राप्त है, लेकिन इसका यह अर्थ हरगिज़ नहीं कि वह विपक्ष से बातचीत ही न करे.”
सांसदों के निलंबन पर शार्दूल टिप्पणी करते हैं, “ऐसा नहीं है कि पहले की सरकारें बड़ी उदारवान थीं, पहले भी मतभेद होते थे लेकिन मतभेद आपसी वैमनस्य तक नहीं पहुंचते थे. आज जो वैमनस्य की स्थिति बन रही है उसका एक कारण मुझे लगता है कि संसद चलाने को लेकर अब सरकार की कोई जवाबदेही नहीं रह गई है. पूर्व में, संसद के कामकाज को चलाना यह सरकार की ज़िम्मेदारी थी. इस सन्दर्भ में अरुण जेटली की वह बात जो भारत के संसदीय इतिहास में दर्ज हो गई है कि संसद में सरकार की विरोध करना विपक्ष का मौलिक अधिकार है. तो संसद चलाना अब अगर सरकार की जवाबदेही का हिस्सा नहीं रहा तो सरकार को उससे फ़र्क़ नहीं पड़ता.”
चर्चा में आगे इस विषय के विभिन्न पहलुओं पर विस्तार से बातचीत हुई. साथ ही म्यांमार में लोकतांत्रिक संघर्ष पर भी विशेष रूप से चर्चा की गई. पूरी चर्चा सुनने के लिए यह पॉडकास्ट अंत तक सुनें और न्यूज़लॉन्ड्री को सब्सक्राइब करना न भूलें.
टाइम कोड
00:00:00 - 00:01:24 — परिचय और ज़रूरी सूचना
00:01:25 - 00:09:39 — हेडलाइंस
00:09:40 - 00:53:33 — सांसदों का निलंबन
00:53:34 - 01:10:19 — म्यांमार में लोकतांत्रिक संघर्ष
01:10:20 - 01:18:37 — रणवीर सिंह का न्यूड फोटोशूट
01:18:38 - 01:27:31 — सलाह और सुझाव
पत्रकारों की राय, क्या देखा, पढ़ा और सुना जाए
आनंद वर्धन
डी सुब्बाराव का फ्रीबीज़ कल्चर पर लेख
राहुल सागर की किताब - टु रेज़ अ फालेन पीपल
शार्दूल कात्यायन
डीडब्ल्यू पर प्रकाशित लेख- बड़ी आपदा बन गई है बिजली गिरना
इंडियन एक्सप्रेस द्वारा एस्प्लेनेड- कैसे म्यांमार की सेना चीनी फेस रेकग्निशन तकनीक का इस्तेमाल कर रही है
प्रतीक गोयल की रिपोर्ट- छत्तीसगढ़: 121 आदिवासियों ने उस अपराध के लिए 5 साल की जेल काटी जो उन्होंने किया ही नहीं
स्मिता शर्मा
आंग सान सूची पर आधारित किताब - द लेडी एंड द पीकॉक
जॉर्ज ऑरवेल की किताब - बर्मीज़ डेज
प्रताप भानु मेहता का लेख - बाई अपहोल्डिंग पीएमएलए सुप्रीम कोर्ट पुट्स इट्स स्टाम्प ऑन काफ़्काज़ लॉ
अतुल चौरसिया
प्रतीक गोयल की रिपोर्ट - बार पर बवाल: स्मृति ईरानी के दावे और कागजों की हकीकत में इतना अंतर क्यों है?
नेटफ्लिक्स डॉक्यूमेंट्री - द बुचर ऑफ़ दिल्ली
पारोमिता वोहरा का लेख - अ नेकेड मैन एंड बेयर ट्रुथ अबाउट मोरल्स
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प्रोड्यूसर- रौनक भट्ट
एडिटिंग - उमराव सिंह
ट्रांसक्राइब - तस्नीम फ़ातिमा
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