छत्तीसगढ़: 121 आदिवासियों ने उस अपराध के लिए 5 साल की जेल काटी जो उन्होंने किया ही नहीं

कैद के दौरान उन्होंने अपने प्रियजनों और आजीविका को खो दिया. अब वे आगे का जीवन चलाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं.

WrittenBy:प्रतीक गोयल
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हंगा बताते हैं, "पुलिस तड़के मेरे घर आई. वे मुझे और कई अन्य ग्रामीणों को बुर्कापाल कैंप में ले गए और हमले के बारे में हमसे पूछताछ की. जब मैंने उन्हें बताया कि मुझे इसके बारे में कोई जानकारी नहीं है, तो उन्होंने मुझे प्रताड़ित किया. मुझे उल्टा लटका दिया गया और पीटा गया. मेरे शरीर पर अभी भी चोट के निशान हैं."

हंगा आगे बताते हैं, "जिस शाम मुझे रिहा किया गया. उसी दिन पुलिस ने मेरे भाई को उठा लिया और उसे मार डाला."

पुलिस से बचने की उम्मीद में हंगा और गांव के कुछ अन्य लोग भाग गए. उन्होंने कहा, "जब सुरक्षा बल हमें नहीं ढूंढ पाए, तो उन्होंने हमारे घर की महिलाओं से कहा कि वे अपने पति और पिता से संपर्क करें और उन्हें आश्वासन दें कि पुलिस कोई नुकसान नहीं करेगी. लेकिन यह एक साजिश थी."

हंगा और अन्य लोग गांव लौट आए और 2 मई, 2017 को उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. उन्हें पहले बुर्कापाल में सीआरपीएफ कैंप ले जाया गया. उसी दिन उन्हें दोरनापाल थाने और फिर सुकमा थाने ले जाया गया. उस शाम, उन्हें दंतेवाड़ा अदालत में पेश किया गया और दंतेवाड़ा जेल में कैद कर दिया गया. पांच दिन बाद, उन्हें सुकमा जेल ले जाया गया इसके 20 दिन बाद उन्हे जगदलपुर सेंट्रल जेल भेज दिया गया.

हंगा ने कहा, "जेल में रखने के दौरान, मुझे केवल दो बार अदालत में पेश किया गया. अगर मुकदमे की सुनवाई तेज होती तो हम पहले रिहा हो जाते"

हालांकि, हंगा की रिहाई दर्द भरी है. उन्होंने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, "मेरी पत्नी ने पिछले साल किसी और से शादी कर ली और मेरी दो बेटियों को मेरी मां के पास छोड़ दिया, वह स्थिति का सामना नहीं कर सकी. मुझे ऐसा होने की उम्मीद नहीं थी."

हंगा अपनी मां और बच्चों से मिलकर खुश हैं, लेकिन उन्होंने कहा, "फर्जी मामले ने मेरे परिवार को नष्ट कर दिया है. मेरा घर जर्जर है. मेरे पास इसकी मरम्मत के लिए पैसे भी नहीं हैं. मैं जंगल में जाने से बचता हूं. मुझे डर है कि सुरक्षा बल हम पर किसी अन्य फर्जी मामले में मामला दर्ज कर सकते हैं."

न्यूज़लॉन्ड्री ने 2020 में हंगा की मां आयते का साक्षात्कार किया था. उस समय, उन्होंने कहा, "मेरे पास अब बहुत दिन नहीं बचे हैं और मुझे नहीं पता कि मैं अपनी हंगा को आखिरी बार देख पाऊंगी या नहीं."

हंगा की रिहाई के बाद, आयते ने फोन पर न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, "मैं बीमार थी और सोच रही थी कि क्या मैं अपने बेटे को आखिरी बार देखूंगी. भगवान की कृपा से वह वापस आ गया. हम एक दूसरे को गले लगाकर रोए. मुझे खुशी है कि मेरा बेटा वापस आ गया है. अब, यदि मैं मर भी जाऊं, तो मुझे इसका पछतावा नहीं होगा. ”

जेल ने तोड़ा पारिवारिक संबंध

रिहा किए गए आदिवासियों में से कई ने अपने परिवार के सदस्यों को उनकी कैद के बाद से नहीं देखा, क्योंकि उनके परिवार के लोग जेल में उनसे मिलने नहीं जा सकते थे.

26 वर्षीय सन्ना मडकम ने कहा कि वह उन भाग्यशाली लोगों में से एक हैं जो जेल में रहने के दौरान लोगों से मिल पाए. सन्ना मडकम बताते हैं, "मेरे परिवार के पास जमीन थी. उन्होंने जेल के दौरे और वकीलों की फीस का खर्च वहन करने के लिए इसका एक हिस्सा बेच दिया. लेकिन कई परिवारों के पास कुछ भी नहीं था. उनके लिए अपने प्रियजनों को जेल में देखना संभव नहीं था."

25 वर्षीय नुप्पू मंगू ने अपनी मां को आखिरी बार मई 2017 में गिरफ्तार किए जाने और जेल भेजे जाने से ठीक पहले देखा. सात महीने बाद उनकी मां की मृत्यु हो गई.

नुप्पू मंगू ने बताया, "मुझे मां के निधन के बारे में दो महीने बाद पता चला." उन्होंने रुककर कहा, "जब पुलिस बल मुझे ले गए तो मेरी मां ने बहुत विरोध किया. वह लगभग उनसे लड़ीं."

नुप्पू घर पर खुश हैं, हालांकि उन्हे अफसोस है कि बिना किसी गुनाह के उनके जीवन के पांच साल बर्बाद हो गए. उन्होंने कहा, "अगर हमारे मामले में पूरे पांच साल की अवधि में सिर्फ दो के बजाय अधिक बार सुनवाई होती तो हम पहले ही रिहा हो जाते."

बुर्कापाल हमले के मामले में गिरफ्तार किए गए सभी आदिवासियों को रिहा नहीं किया गया है. 35 वर्षीय सोदी लिंगा को अदालत ने बरी कर दिया था, लेकिन तीन अन्य मामलों में आरोपित होने के कारण वह अभी भी जेल में हैं. इस बीच उनकी पत्नी गांव छोड़कर चली गईं. उन्होंने दूसरी शादी कर ली है और वह अपने दो बच्चों को छोड़ गई हैं.

लक्ष्मण इस बारे में कहते हैं "उन दो बच्चों की हालत बहुत खराब थी. लेकिन हम पत्नी को दोष नहीं दे सकते क्योंकि उसने बहुत संघर्ष किया. उसने आखिरकार हार मान ली. वे गांव में सबसे गरीब थे."

जेल भेजे गए आदिवासियों में से एक डोडी मंगलू की पिछले साल जेल में मौत हो गई.

अदालत में आदिवासियों का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील बिकेम पोंडी ने कहा, "मंगलू गोंडपल्ली के 11 ग्रामीणों में से थे, जिन्हें इस मामले में 2017 में गिरफ्तार किया गया था."

पोंडी के मुताबिक, "मंगलू मवेशी लाने के लिए ओडिशा गए थे. वापस आते समय सुकमा के नयापारा में मवेशियों को चरा रहे थे. पुलिस ने उन्हें वहीं से गिरफ्तार कर सीधे जेल भेज दिया. अगर पुलिस ने ठीक से जांच की होती या इन लोगों को अदालत में ठीक से पेश किया होता, तो मंगलू जीवित होता"

अनुवाद- अनमोल प्रितम

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)

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