सेस को श्रमिकों के कल्याण की विभिन्न योजनाओं पर खर्च नहीं किया जा रहा है.
लंबित मामले और मुआवजों में अनियमितता
कैग ने अपनी रिपोर्ट में आगे बताया है कि साल 2016-19 के बीच श्रमिकों के कल्याण पर 121.27 करोड़ रुपए खर्चा किया गया, वहीं इस अवधि में सरकार को 1056.55 करोड़ रुपए का सेस मिला. यानी की कुल सेस का मात्र 11.50 प्रतिशत ही खर्च हुआ.
जुलाई 2019 तक करीब 3,919 आवेदन मुआवजे के लिए अलग-अलग जिलों में लंबित हैं लेकिन अभी तक इन पर कोई कार्रवाई नहीं हुई. 2015 की कैग रिपोर्ट में भी इस बात का जिक्र किया गया था लेकिन फिर भी सरकार ने आवेदनों के निपटारे में कोई तत्परता नहीं दिखाई.
साल 2016-19 के बीच कुल श्रमिकों के लिए 19 कल्याणकारी योजनाओं में से छह में कोई भी खर्च नहीं किया गया है. तीन सालों में कुल 121.47 करोड़ नौ अलग-अलग योजनाओं पर खर्च किए गए. जिसमें से 104.74 करोड़ रुपए श्रमिकों के बच्चों को पढ़ाई के लिए आर्थिक मदद के तौर पर दिए गए. हालांकि बोर्ड के पास कितने श्रमिकों के बच्चों को आर्थिक मदद दी गई इसका कोई आंकड़ा नहीं हैं.
जिन मामलों में मदद दी भी गई वह भी संदेह में हैं. ऐसे ही कैग की रिपोर्ट में बताया गया कि मृत्यु के बाद श्रमिकों के परिवार को दिए जाने वाली मदद में भी कई तरह की अनियमितताएं हैं. उदाहरण के लिए 54 मृत श्रमिक, जिनके परिजनों को 46.94 लाख रुपए की मदद दी गई, इन श्रमिकों के पास रजिस्ट्रेशन कराने से पहले से ही आईडी कार्ड था. लेकिन इनमें से सात ऐसे श्रमिकों को मदद दी गई जिनका रजिस्ट्रेशन उनकी मौत के बाद हुआ था.
ऐसा ही कुछ पेंशन स्कीम में भी हुआ. योजना के मुताबिक पेंशन 60 साल की उम्र पूरा करने के बाद ही दी जाती है. लेकिन रिपोर्ट के मुताबिक सात ऐसे श्रमिकों को पेंशन दी गई जिनका रजिस्ट्रेशन ही 60 साल की उम्र के बाद किया गया. वहीं चार श्रमिक ऐसे भी थे जिनको 60 साल पूरा किए बिना ही पेंशन जारी कर दी गई.
अनियमितताओं के अलावा कैग की रिपोर्ट में बताया गया कि डीबीओसीडब्ल्यू अधिनियम के मुताबिक एक स्टेट एडवाइजरी बोर्ड का गठन होना चाहिए, जो सरकार को सुझाव देने का काम करे. लेकिन रिपोर्ट में पाया गया कि 2002 में एक एडवाइजरी बोर्ड का गठन हुआ था, जिसका कार्यकाल 2005 में समाप्त हो गया. साल 2005 से खाली पदों को 14 साल बाद जून 2019 में भरा गया. साथ ही इस दौरान बोर्ड की कोई बैठक भी नहीं हुई.
कैग ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि बोर्ड का गठन जिस उद्देश्य से किया गया, वह उसे पूरा नहीं कर पा रहा है. इसलिए सरकार बोर्ड के कामकाज की समीक्षा करे और साथ ही श्रमिकों की सुरक्षा, स्वास्थ्य और उनके सामाजिक संरक्षण को लेकर कदम उठाए.
बोर्ड के चेयरमैन श्रम मंत्री होते है. इस समय श्रम मंत्रायल मनीष सिसोदिया के पास है. हमने उनसे बात करने की कोशिश की और कुछ सवाल भी भेजे हैं. अगर उनकी तरफ से कोई जवाब जाता है तो खबर में जोड़ दिया जाएगा.
(इस रिपोर्ट को बुधवार 7 बजकर 25 मिनट पर अपडेट किया गया है)
General elections are around the corner, and Newslaundry and The News Minute have ambitious plans together to focus on the issues that really matter to the voter. From political funding to battleground states, media coverage to 10 years of Modi, choose a project you would like to support and power our journalism.
Ground reportage is central to public interest journalism. Only readers like you can make it possible. Will you?