कथित तौर पर भाजपा नेता नुपुर शर्मा के द्वारा पैगंबर मोहम्मद पर की गई टिप्पणी का समर्थन करने के लिए दो कट्टरपंथी मुसलमान व्यक्तियों के द्वारा हिंदू दर्जी की हत्या के बाद से शहर में कर्फ्यू लगा हुआ है.
2004 में जब वे उदयपुर के एसपी थे, तब उन पर सोहराबुद्दीन के एनकाउंटर का इल्जाम लगा था. 2017 में मुंबई अदालत में दिनेश को बरी कर दिया. 28 जून की हत्या के बाद उदयपुर के आला अधिकारी एक कदम पीछे हो गए हैं और दिनेश के नियंत्रण में सब कुछ हो रहा है. जहां भी वह जाते हैं, युवक दौड़कर उनके साथ सेल्फी लेने के लिए आते हैं. गुरुवार को जब मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कन्हैयालाल के घर गए, तब वहां एकत्रित भीड़ ने "दिनेश एमएन जिंदाबाद" के नारे लगाए, जबकि दिनेश उस समय वहां मौजूद नहीं थे. इससे एक दिन पहले जब गुस्साई भीड़ ने उस कब्रिस्तान का बोर्ड हटाने का प्रयास किया, जिसके बगल वाले श्मशान में कन्हैयालाल का अंतिम संस्कार हुआ था, तब भी दिनेश ने उन्हें शांत कर दिया था.
पुलिस बंदोबस्त
शाम 4:30 बजे शुरू हुई यात्रा के ऊपर ड्रोन उड़ रहा था और पुलिस के आला अधिकारी अपनी सुनिश्चित जगहों से नजर रख रहे थे. करीब 2000 पुलिसकर्मी आंसू गैस के गोले और ढाल लिए हुए किसी भी अप्रिय घटना से निपटने के लिए तैयार खड़े थे. रथ पर भगवान जगन्नाथ की मूर्ति के साथ बड़े डीजे उपकरणों पर संगीत बजने लगा. साथ ही शंख, डमरू की आवाज और बढ़ा दी. भीड़ नारे लगा रही थी, "हाथी घोड़ा पालकी, जय कन्हैयालाल की", जगदीश चौक बॉलीवुड के भजनों की धुनों से गूंज रहा था.
जैसे-जैसे रथ आगे बढ़ा डीजे पर बैठे हुए एक आयोजक ने अचानक आवाज कम की और घोषणा की, "तलवार लिए हुए यह युवक कौन है? इसे हटाइए. हमें इतने संघर्ष के बाद यात्रा आयोजन करने की मंजूरी मिली है. कृपया इसे शांतिपूर्ण बनाए रखें."
शहर के अन्य इलाकों के लोग अपने अपने जुलूसों के साथ मुख्य यात्रा में मिल गए. जीप मैं बैठे हुए सेना के जवानों को दिखाती झांकी भी शामिल हुई. कई अलग-अलग संस्थाओं ने उदयपुर के अन्य हिस्सों से देवी और देवताओं का भी चित्रण किया.
शहर में कर्फ्यू लगा होने की वजह से, पुलिस ने पहले की तरह यात्रा को मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों से गुजरने की मंजूरी नहीं दी. छोटी यात्राओं की संख्या में भी बड़ी कमी आई थी. करीब छह घंटे बाद जब यात्रा सूरजपोल पहुंची, तो दो किलोमीटर तक उसका अंत ही दिखाई नहीं पड़ रहा था. करीब 5.5 किलोमीटर की यात्रा के बाद भगवान जगन्नाथ आधी रात के बाद मंदिर लौटे. दिन की शुरुआत में कई हिंदुत्ववादी संगठनों के करीब 500 लोगों ने बाजार में कन्हैया लाल के लिए न्याय की मांग करते हुए जुलूस निकाला था. शाम के लगभग 7:00 बजे करीब 200 लोग शहर के मुख्य चौराहे पर एकत्रित हुए और उन्होंने पाकिस्तान और मुसलमानों के खिलाफ भड़काऊ नारेबाजी की.
एक गाइड सत्यनारायण सिंह तंवर कहते हैं, "यहां मुसलमान प्रबल हो गए हैं. जो भी हमारे धर्म पर सवाल उठाएगा, उसे छोड़ा नहीं जाएगा. हम अपनी जान देने के लिए तैयार हैं."
'पुलिस पर विश्वास करें'
मालदास स्ट्रीट पर कन्हैयालाल की दुकान "सुप्रीम टेलर्स" से कुछ ही दूरी पर स्थित भोरावाड़ी मोहल्ला वह इलाका था, जहां हत्या की रात लोगों का गुस्सा सबसे पहले फूटा. दोनों समुदायों ने एक दूसरे के ऊपर पत्थरबाजी की. 50 वर्षीय मोहम्मद फिरोज कहते हैं, "सारे पत्थर बस शहर के दूसरे इलाकों से थे. मेरी दो बाइक जला दी गईं और एक स्कूटी जर्जर हालत में बची है. यह व्यापारी बोहरा समुदाय का इलाका है. लेकिन हम प्रशासन और पुलिस में विश्वास रखते हैं कि वे हमारी सुरक्षा करेंगे. हम तनाव और डर में रह रहे हैं."
कुछ किलोमीटर दूर अत्तारी और गौस के निवास खांजीपीर में, वहां की सभासद 60 वर्षीय शम्मा खान हत्या की भर्त्सना करती हैं, "धर्म हमें एक दूसरे से नफरत करना नहीं सीखाता. अमन और चैन को तोड़ा गया है. दोनों समुदाय तनाव में हैं."
उदयपुर में पहले भी इस प्रकार की लड़ाईयां हुई हैं. लेकिन शांति बनाए रखने की जारी लड़ाई कठिनतम लड़ाईयों में से एक है. सांप्रदायिक सद्भाव को कितनी हानि पहुंची है यह तो कर्फ्यू हटने के बाद ही पता चल पाएगा.
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)