डीयू के स्वामी श्रद्धानंद कॉलेज में बतौर सहायक प्रोफेसर संतोष राय पर आरोप है कि उन्होंने वर्धा विश्वविद्यलय में पीएचडी के दौरान एक लड़की को आत्महत्या करने के लिए उकसाया था. क्या है सच? और उनकी नियुक्ति को लेकर क्यों उठ रहे हैं सवाल?
दिल्ली विश्वविद्यालय में नियुक्ति के लिए चयन समिति के सभी सदस्यों की अनुमति होनी चाहिए. नियुक्ति पत्र उसके बाद ही दिया जाता है. गवर्निंग बॉडी, जिसमे दिल्ली सरकार, यूजीसी और डीयू के कुल 15 सदस्य बैठते हैं, वह बाद में मीटिंग के दौरान ही इस पर हस्ताक्षर करते हैं. मार्च 2021 में गवर्निंग बॉडी की अध्यक्ष कुमुद शर्मा थीं. उस समय गवर्निंग बॉडी ने संतोष राय के नाम पर अपनी मंजूरी देने से मना कर दिया था. जिसके बाद से अंकित पांडेय गवर्निंग बॉडी की अध्यक्षता संभाल रहे हैं.
डीयू के एक प्रोफेसर ने इन नियुक्तियों को लेकर राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग में शिकायत की थी. इसमें संतोष राय पर चल रहे आपराधिक मामले का जिक्र किया गया था. आयोग ने इसका संज्ञान लिया और 22 दिसंबर को एक आदेश जारी किया. इसमें कहा गया था कि इंटरव्यू में रोस्टर फॉलो न करने और आरक्षण प्रावधानों को नजरअंदाज करने के चलते सभी नियुक्तियों को रद्द किया जाए. 5 मई 2022 को अंकित पांडेय ने मामले में जांच समिति का गठन करने के आदेश दिए.
यह आश्चर्य की बात है कि आदेश के बावजूद, संतोष राय समेत सभी प्रोफेसर कॉलेज आ रहे हैं और उन्हें वेतन भी मिल रहा है.
हमने अंकित पांडेय से बात की. क्या उन्हें संतोष राय के मामले के बारे में पता था? अंकित कहते हैं, "नहीं. जांच समिति जांच कर रही है. मुझे दो दिन पहले ही पता चला कि संतोष राय इस तरह के किसी मामले में गिरफ्तार हुए थे."
न्यूज़लॉन्ड्री ने संतोष राय और प्रवीण गर्ग से भी बात की लेकिन दोनों ने इस मामले पर चुप्पी साधे रखी और कहा कि वह वर्धा विश्वविद्यालय में हुई ऐसी किसी भी घटना से अनजान हैं.
क्या संतोष राय की नियुक्ति गलत है?
बता दें कि संतोष राय पर वर्धा कोर्ट में मामला अभी भी चल रहा है. श्रद्धानंद कॉलेज के कई प्रोफेसरों का मानना है कि संतोष राय यदि बतौर प्रोफेसर पढ़ाते हैं तो यह नैतिक आधार पर महिला अध्यापकों और छात्राओं के लिए असुरक्षित है. डीयू में एडहॉक टीचरों की भर्ती के लिए योग्यता के आधार निश्चित किए गए हैं, लेकिन किसी को अयोग्य बताकर उसे सेवा से निकालने के लिए कहीं नहीं लिखा.
दिल्ली यूनिवर्सिटी टीचर एसोसिएशन के एक सदस्य ने हमें बताया, "जब तक संतोष आरोपी से मुजरिम करार न दिए जाएं, वह विश्वविद्यालय में काम कर सकते हैं. हालांकि उन्हें नैतिक आधार पर विश्वविद्यालय में रखें या नहीं, इसका फैसला गवर्निंग बॉडी ले सकती है."
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