ऑल्ट न्यूज़ के सह-संस्थापक की गिरफ्तारी के बाद 'पुलिस के सूत्रों' के हवाले से संदिग्ध खबरें फिर से चलने लगी हैं.
जहां एक ओर इंडिया टुडे ने सूत्र-आधारित खबरें छापीं, वहीं रिपब्लिक के हाथ पुलिस की रिमांड कॉपी लग गई. इस कॉपी के हवाले से चैनल ने दावा किया कि जुबैर को जांच में शामिल होने के लिए कहा गया था लेकिन उन्होंने मना कर दिया. ट्विटर पर सिन्हा ने आश्चर्य जताया कि “जब जुबैर के वकीलों के कई बार संबंधित पुलिस अधिकारियों से अनुरोध करने के बावजूद इस आदेश की प्रति उपलब्ध नहीं कराई गई”, तो रिपब्लिक के पास यह नोट कैसे पहुंच गया.
लेकिन जल्द ही हर जगह यही दावे किए जाने लगे कि जुबैर जांच में सहयोग नहीं कर रहे हैं.
शाम तक टाइम्स नाउ ने सूत्रों के हवाले से खबरें चलना शुरू कर दिया. चैनल ने बताया, "सूत्रों ने बताया है कि ऑल्ट न्यूज़ के सह-संस्थापक मोहम्मद जुबैर ने जांच में अधिकारियों के साथ सहयोग करने से इनकार कर दिया", और कहा कि "जुबैर ने अपने उन इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को सौंपने से इनकार कर दिया जिनका इस्तेमाल उन्होंने 2018 में संबंधित ट्वीट करने के लिए किया था.”
एक बार फिर रिपोर्ट से महत्वपूर्ण जानकारियां गायब थीं, मसलन ज़ुबैर ने किस तरह के और कितने गैजेट्स का इस्तेमाल किया? उन्होंने गैजेट्स सौंपने से “इंकार” क्यों किया? यह विवरण महत्वपूर्ण हैं क्योंकि दिल्ली पुलिस का दावा है कि जुबैर को जांच में सहयोग न करने के कारण गिरफ्तार किया गया था. इंडिया टुडे की तरह ही इस रिपोर्ट में भी ज़ुबैर या ऑल्ट न्यूज़ का पक्ष नदारद था.
हिंदुस्तान टाइम्स ने इस खबर को “दिल्ली के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी” के हवाले से रिपोर्ट किया. रिपोर्ट में कहा गया कि “न जुबैर और न ही उनके वकीलों ने इस पर अभी तक कोई टिप्पणी की है”, लेकिन यह नहीं बताया कि अखबार ने उनका पक्ष जानने के लिए उनसे संपर्क किया था या नहीं.
न्यूज़लॉन्ड्री ने जुबैर की जांच में सहयोग न करने के आरोप पर ऑल्ट न्यूज़ के संपादक प्रतीक सिन्हा की टिप्पणी जानने के लिए उनसे संपर्क किया. यदि हमें उनकी प्रतिक्रिया मिलती है तो उसे इस रिपोर्ट में जुड़ दिया जाएगा.
सूत्रों के हवाले से किसी पर गंभीर आरोप लगाने की बीमारी नई नहीं है.
फरवरी 2020 में दिल्ली में हुई सांप्रदायिक हिंसा के बाद ज़ी न्यूज़ जैसे समाचार चैनलों ने सूत्र-आधारित एकतरफा ख़बरें चलाईं, जिनमें उमर खालिद, मीरन हैदर और आसिफ इकबाल तन्हा जैसे सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों के खिलाफ गंभीर आरोप लगाए गए. यह पुलिस द्वारा लीक किए गए दावे थे, जिनमें दावा किया गया था कि इन कार्यकर्ताओं ने स्वीकार किया कि वह हिंसा के मास्टरमाइंड हैं, उन्हें पीएफआई से पैसे मिले हैं, वह नरेंद्र मोदी सरकार से नफरत करते हैं और अन्य कई दावे.
इन आरोपों का हमेशा उनके वकीलों ने खंडन किया लेकिन मीडिया रिपोर्ट्स ने कभी उन्हें बताना ज़रूरी नहीं समझा.
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