पत्रकारों की यूनियन के आंकड़ों के अनुसार पिछले 8 महीनों में 126 पत्रकार कोविड-19 से जान गंवा चुके हैं.
'पत्रकार जनता के लिए रिपोर्ट करते हैं'
25 वर्षीय मल्हार पवार ने पिछले साल 9 सितंबर को माथेरान में अपने पत्रकार पिता को खो दिया था. संतोष पवार 1993 से पत्रकारिता कर रहे थे और उन्होंने मराठी दैनिक साकाल के लिए दो दशक तक काम किया. 2017 से वह अपना ही एक न्यूज़ पोर्टल चला रहे थे.
मल्हार कहते हैं, "उन्हें उसके एक रात पहले शरीर में दर्द था और 9 सितंबर को उन्हें सांस लेने में दिक्कत महसूस होने लगी. हम उन्हें कर्जत के उप जिला अस्पताल में ले गए. उनका ऑक्सीजन का स्तर तेजी से नीचे गिर गया था लेकिन वहां पर कोई वेंटिलेटर उपलब्ध नहीं था."
लाचार होकर परिवार ने संतोष को 42 किलोमीटर दूर, नवी मुंबई के डीवाई पाटिल अस्पताल ले जाने का प्रयास किया. मल्हार ने बताया, "हम एक एंबुलेंस लाए. लेकिन वह कार्डियक एम्बुलेंस नहीं थी. जब तक हम अस्पताल पहुंचे, वे मर चुके थे."
मल्हार बताते हैं, राजेश टोपे के द्वारा पत्रकारों के लिए दुर्घटना की परिस्थिति में 50 लाख रुपए के अनुदान की घोषणा कुछ महीने पहले किए जाने के बावजूद भी उन्हें सरकार की तरफ से कोई मदद नहीं मिली.
उन्होंने कहा, "सरकार अब यू-टर्न लेने की कोशिश कर रही है. पत्रकार अपने संपादकों के द्वारा कहे जाने के बाद जमीन पर काम करते हैं, यह उनका काम है और वे जाने से मना नहीं कर सकते. बाहर रिपोर्ट करते हुए कई युवा पत्रकार अपनी जान गंवा चुके हैं. सरकार पत्रकारों के लिए कुछ नहीं कर रही है. उन्हें समझना चाहिए कि यह काम बहुत ज़रूरी है और पत्रकार अपनी जान दांव पर लगा रहे हैं."
मराठी पत्रकार परिषद के प्रमुख एसएम देशमुख ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि यूनियन 4 महीने से मुख्यमंत्री ठाकरे से गुजारिश कर रही है, कि वे पत्रकारों को फ्रंटलाइन कर्मचारी घोषित कर दें.
वे बताते हैं, "हमारी मांगे बहुत जायज़ थीं. महाराष्ट्र में कई पत्रकार इसलिए गुजर गए क्योंकि उन्हें ऑक्सीजन या वेंटिलेटर नहीं मिल पाए. इसीलिए हमने यह मांग की कि अस्पतालों में दो बिस्तर पत्रकारों के लिए सुरक्षित किए जाएं."
मंत्री टोपे की 50 लाख बीमा की घोषणा पर देशमुख कहते हैं, "हम जानते हैं कि वह इस वादे को पूरा नहीं करेंगे. इसीलिए हमने 5 लाख के मुआवजे की मांग की (पत्रकारों के परिवारों के लिए). लेकिन सरकार वह भी देने को राजी नहीं है. हमारी आखिरी मांग पत्रकारों को वैक्सीन दिए जाने की थी. अब बताइए हमारी कौन सी मांग नाजायज है? सभी मांगे साधारण और वाजिब हैं जिन्हें सरकार आसानी से पूरा कर सकती है."
देशमुख यह भी बताते हैं कि महामारी के असर और आर्थिक मंदी की वजह से कई पत्रकार कम वेतन पर काम कर रहे हैं, "इनमें से बहुत से स्ट्रिंगर हैं जो जमीन पर काम करते हैं और उन्हें तनख्वाह भी नहीं मिलती. सरकार को इन सारे आयामों को ध्यान में रखकर पत्रकारों की सलामती के हित में निर्णय लेना चाहिए."
मुंबई में टीवी जर्नलिस्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष विनोद जगदाले ने कहा कि अगर दूसरे राज्य, पत्रकारों को फ्रंटलाइन कर्मचारियों या "कोविड योद्धाओं" में शामिल कर उन्हें वैक्सीन लगवाने में प्राथमिकता दे सकते हैं, तो महाराष्ट्र ऐसा क्यों नहीं कर सकता?
कोविड संबंधित पाबंदियों को लेकर वह कहते हैं, "मान्यता प्राप्त पत्रकार भी मुंबई की लोकल ट्रेनों में नहीं चल सकते. वे रिपोर्ट करने के लिए दुपहिया वाहनों पर लंबी दूरियां तय करते हैं. यह सरासर अन्याय है."
जगदाले ने यह भी कहा कि उद्धव ठाकरे खुद एक "पत्रकार और अच्छे फोटोग्राफर" हैं, और वे बाल ठाकरे के द्वारा शुरू किए गए मराठी अखबार सामना के प्रमुख भी हैं. वे पूछते हैं, "इसके बावजूद वह पत्रकारों के साथ ऐसा बर्ताव कैसे कर सकते हैं? पत्रकार जमीन पर काम करते हैं और फिर वह अपने घरों को वापस जाते हैं, जहां पर उनके बच्चे और परिवार वाले होते हैं. वे अपने परिवार वालों की जान खतरे में डालने से डर रहे हैं और अपना काम भी कर रहे हैं."
मुंबई की एक वरिष्ठ पत्रकार गीता सेषु ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि पत्रकार व्यक्तिगत लाभ के लिए नहीं बल्कि जनता के लिए रिपोर्ट करते हैं. "सरकार ने स्वास्थ्य कर्मचारियों, जन सुविधा कर्मचारियों और कानून व्यवस्था चलाने वालों को फ्रंटलाइन कर्मचारी की मान्यता दी है. उन्हें यह समझने की आवश्यकता है कि पत्रकार भी इस असाधारण परिस्थिति में एक सेवा ही प्रदान कर रहे हैं."
न्यूजलॉन्ड्री ने महाराष्ट्र के स्वास्थ्य मंत्री राजेश टोपे को एक विस्तृत प्रश्नावली, पत्रकारों को 50 लाख रुपए के बीमा और उन्हें फ्रंटलाइन कर्मचारियों के रूप में मान्यता दिए जाने को लेकर भेजी. जिसका कोई जवाब नहीं आया है. उनकी तरफ से कोई भी जवाब आने पर उसे इस रिपोर्ट में जोड़ दिया जाएगा.