इन दोनों एक्ट का मकसद था कि इससे आदिवासियों और अन्य पिछड़ी जातियों की जमीनें संरक्षित और सुरक्षित होंगी.
सुप्रीम कोर्ट में चुनौती
सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने वाली याचिका में एक्ट के इन प्रावधानों को लेकर कहा गया है कि इसके चलते बैंकों के जरिए इन जमीनों पर किसी भी तरह का ऋण नहीं दिया जा सकता है. और 70 से ज्यादा फीसदी जमीनें एक्ट के विरुद्ध अवैध तरीके से खरीदी और बेची जा रही हैं. इसकी रोकथाम के लिए भी कोई प्राधिकरण नहीं है.
याचिका में कहा गया है कि ब्रितानिया कानून को खत्म कर देना चाहिए. यह गुलामी का प्रतीक है. संबंधित क्षेत्रों के लोग खुद की आजादी नहीं महसूस करते हैं. विकास कार्यों के लिए सरकरी योजनाएं इन क्षेत्रों में लागू नहीं हो सकती, जिसके कारण यह क्षेत्र अविकसित और गरीब बने हुए हैं. सरकार ने रांची को एक स्मार्ट सिटी घोषित किया है ऐसे में जब तक एक्ट को रेक्टिफाई नहीं किया जाता तब तक यह सब कार्य नहीं हो सकते.
कम से कम सरकार को जमीन अधिग्रहित करने का अधिकार होना चाहिए, ताकि वह विकास कार्य कर सके.
क्या है छूट से डर
इस मामले के वकील राम लाल राय खुद मानते हैं कि यदि एक्ट खत्म करके पूरी तरह से खरीद-फरोख्त शुरू कर दिया जाए तो व्यावसायिक हित वाले बाहरी लोग इन जमीनों को खरीद लेंगे. यह ज्यादा विनाशकारी होगा. ऐसे में सीमित छूट का प्रावधान एक विकल्प है, जिसकी हम मांग करेंगे.
(डाउन टू अर्थ से साभार)
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