वर्तमान समय में जब समाज के विकास और उन्नति की बड़ी-बड़ी बातें की जा रही हैं, तब पौष्टिक भोजन औसत भारतीय की थाली से गायब हो चुका है.
भोजन का अधिकार हर नागरिक का मौलिक अधिकार है. सामान्य रूप से न तो यह कोई प्रिविलेज है और न ही किसी तरह की विलासिता, लेकिन क्या सच में ऐसा ही है? क्या वाकई भारत के शत प्रतिशत लोग जब रात को सोते हैं, तो उनका पेट भरा होता है? पिछले वर्ष ग्लोबल हंगर इंडेक्स डाटा में भारत 116 देशों की सूची में 94वें स्थान से खिसक कर 101वें स्थान पर पहुंच गया. 27.5 जीएचआई (वैश्विक भूख सूचकांक) स्कोर के साथ भारत में ‘भूख’ अभी भी एक गंभीर समस्या है.
एक ऐसा देश, जहां हर दिन पांच साल से कम उम्र के लगभग चार हजार पांच सौ बच्चे, भूख और कुपोषण के कारण मर जाते हैं, वहां पौष्टिक आहार की कल्पना कर पाना भी मुश्किल है. विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट ने एक रिपोर्ट जारी की. यह रिपोर्ट बताती है कि भारत के 71 फीसदी लोग पौष्टिक आहार खरीदने में असमर्थ हैं. जबकि दुनिया की लगभग 42 प्रतिशत आबादी स्वस्थ आहार नहीं ले सकती.
सारांश के इस एपिसोड में समझिए कि खाद्य व्यवस्था हमारे लिए कितनी महत्वपूर्ण है और इस पर संकट के क्या नतीजे हो सकते हैं.