एक रिपोर्ट के मुताबिक कुल 13 राज्यों में 2015-2020 के बीच 108 मौतें भुखमरी से हुई हैं.
अंडर रिपोर्टिंग का संकट
सुप्रीम कोर्ट में भुखमरी के ताजा मामले में संबंधित जनहित याचिका की पैरवी करने वाली अधिवक्ता आशिमा मांडला ने बताया कि भूख से मौत की पहचान को लेकर मुख्य समस्या इनके बारे में जानकारी सामने आने के बाद भी रिपोर्ट न किए जाने की है. झारखंड-बिहार में ऐसे कई मामले सामने आए हैं जब मृतक के पोस्टमार्टम में यह साफ हुआ है कि उनके पेट में अनाज का एक दाना तक नहीं था, फिर भी इसकी रिपोर्टिंग सरकारी एजेंसियों के जरिए नहीं की गई.
राइट टू फूड कैंपेन से जुड़ी आयशा खान ने 2015 से लेकर मई, 2020 के बीच भुखमरी से मरने वालों की सूचनाओं को कार्यकर्ताओं और मीडिया रिपोर्ट्स के आधार पर तैयार किया है. इसके मुताबिक 13 राज्यों में कुल 108 मौतें भूख के कारण हुई हैं. मृतकों की इस सूची में 05 से 80 आयु वर्ग के दलित, पिछड़ा, आदिवासी और सामान्य वर्ग के लोग शामिल हैं. इन आंकड़ों के मुताबिक झारखंड में सर्वाधिक 29 मौतें, उत्तर प्रदेश में 22 मौतें, ओडिशा में 15 मौतें, बिहार में 8 मौतें, कर्नाटक में 7, छत्तीसगढ़ में 6, पश्चिम बंगाल में 6, महाराष्ट्र में 4, मध्य प्रदेश में 4, आंध्र प्रदेश में 3, तमिलनाडु में 3, तेलंगाना में 1, राजस्थान में 1 मौत शामिल है.
क्रानिक पॉवर्टी रिसर्च सेंटर और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन के तहत प्रकाशित हंगर अंडर न्यूट्रिशन एंड फूड सिक्योरिटी नाम के वर्किंग पेपर में एनसी सक्सेना बताते हैं कि भूख और भुखमरी क्षेत्रीय व भौगोलिक आयाम वाली होती है. भारत के किसी भी राज्य में गैर आदिवासी क्षेत्र के मुकाबले आदीवासी क्षेत्र ज्यादा खाद्य असुरक्षा वाले क्षेत्र हैं.
राइट टू फूड कैंपेन की पहल से पिछले पांच वर्षों में दर्ज की गई भूख से मौतों में लॉकडाउन और पलायन के घटनाक्रम भी शामिल हैं. इसके अलावा ऐसे भी मृतक रहे जिनके पास आधार कार्ड नहीं था जिसके कारण उनका राशन कार्ड काम का नहीं रहा और वे अनाज हासिल करने में नाकामयाब रहे.
हमने देश में जब सख्त राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के दौरान दिल्ली से श्रावस्ती तक की यात्रा की थी, उस दौरान पाया था कि मुंबई से श्रावस्ती तक पहुंचे इंसाफ अली ने गांव के क्वारंटीन सेंटर पर पहुंचकर दम तोड़ दिया. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में मौत का कारण स्पष्ट नहीं हो सका लेकिन परिवार और गांव वालोें ने यह स्पष्ट किया था कि श्रमिक की मौत भूख और थकान से हुई है.
पीपुल्स विजिलेंस कमेटी ऑन ह्यूमन राइट्स के संस्थापक सदस्य व मानवाधिकार कार्यकर्ता लेनिन रघुवंशी ने बताया कि पूरी तरह से भुखमरी (एब्सल्यूट स्टार्वेशन) की स्थिति मनरेगा जैसी योजना के बाद सुधरी थी लेकिन कोविड-19 ने एब्सलूट स्टार्वेशन को लौटा दिया है. कोविड-19 में कुपोषण के कारण भी अधिक मौतें हुई हैं. सरकार को इन चीजों से छिपना नहीं चाहिए बल्कि स्थितियों को स्वीकार करना चाहिए.
रघुवंशी बताते हैं कि कुपोषण की स्थितियां लगातार बनी हुई हैं. लोगों तक प्रोटीन और माइक्रोन्यूट्रिएंटस नहीं पहुंच रहा है. पैकेट्स पर फ्रंट लेबलिंग भी नहीं है ऐसे में यदि कोई अपने बच्चे को आज पैकेट फूड देता है तो वह यह नहीं जानता कि चीनी और नमक की कितनी अधिक मात्रा उसके शरीर में चली गई.
एनसी सक्सेना के वर्किंग पेपर के मुताबिक माइक्रोन्यूट्रिएंट्स की कमी एक छुपी हुई भूख है. यदि कोई व्यक्ति पर्याप्त भोजन नहीं करता है तो माइक्रोन्यूट्रिएंट्स काम नहीं करते हैं.
1970-80 के बाद से लगातार उठ रहा भुखमरी का मामला पहली बार 2001 में सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था. उसके बाद से अब तक न ही इसके पहचान और न ही इसे रोकने को लेकर कोई स्थायी समाधान खोजा जा सका है.
(साभार- डाउन टू अर्थ)
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